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दक्षिण में ताकतवर होते दलित दलितों के खिलाफ हो रही लामबंदी सियासत के बजाय संरषिण की जरूरत

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छले दिनों आंध् प्रदेश के कोनसीमा का जिला मुखयािय अमलापुरम वाकई में जलने लगा था । गु्साई भीड़ ने सबसे पहले सरकारी संपतत्यों को नुकसान पहुंचाया और फिर एक राजय मंरिी और एक विधायक के घरों में आग लगा दी । जगनमोहन सरकार द्ारा कोनसीमा का नाम बदलकर डॉ बीआर आंबेडकर कोनसीमा किए जाने से प्रदशर्नकारी नाराज थे । असल में ,
कोनसीमा की उर्वर भूमि कभी पूवटी गोदावरी जिले का तह्सा हुआ करती थी । यह गोदावरी नदी और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थत है । इसके 17 मंडल हैं , जिनमें से सात में मुखयत : अनुसूचित जाति के लोगों की बहुलता है । नाम बदलने की कवायद के साथ जिले को जाति के आधार पर भी बांटा गया है ।
नाम को लेकर संग्ाम
अपने प्रतिद्ंद्ी चंद्बाबू नायडू को पछाड़ने
के लिए मुखयमंरिी जगनमोहन रेडिी इस जिले का नाम बदलने पर राजी हुए , ्योंकि नायडू ने सत्ा में आने पर ऐसा करने का वादा किया था । इससे जहां दलित खुश थे , ्योंकि उनकी बहुप्रतिक्षित मांग पूरी हो रही थी , वहीं अनय पिछड़ा वर्ग और कापू नाराज हो गए । कापू अगड़ी जाति में आते हैं , यह खेती-बाड़ी का काम करने वाली जाति है । इस समुदाय के लोगों ने पुराने नाम को बहाल करने की मांग करते हुए नारे लगाने शुरू किए- पुराना नाम सुंदर है ,
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