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में अपनी खोई जमीन को दोबारा अपने क्जे में लेने के लिए जाट और दलित का समीकरण बनाने में जुट गई है और इसके लिए पारटी ने अब दलितों को लुभाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करने का फैसला किया है और इसके लिए प्रयास भी शुरू कर दिया है । रालोद को अच्ी तरह से यह एहसास हो चुका है कि चुनाव में दलितों का बहुत बड़ा वर्ग और खासतौर से जाटव समाज बीजेपी के साथ जुड़ रहा है । दलितों के बीजेपी की तरफ झुकाव को देखते हुए भी रालोद ने अब काउंटर अटैक करते हुए पारटी के विधायकों को दलितों को साधने का जिममा सौंपा है । इसके लिए उनहोंने विधायक निधि का सहारा लिया है । लेकिन यह देखना तदिि्प होगा कि पसशिम में दलित और जाटों के बीच की जो खाई है ्या जयंत के इस कदम से पट पाएगी ।
आम चुनाव से पहले दलित वोट में सेंध की कोशिश
रालोद के मुखिया जयंत चौधरी ने सपा के साथ ग्ठबंधन कर पसशिमी यूपी में विधानसभा की आ्ठ सीटों पर अपना क्जा जमाया था । लेकिन अब उसकी नजरें दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव पर टिक गई हैं । हालांकि सपा के साथ ग्ठबंधन करके रालोद विधानसभा चुनाव में काफी अधिक फायदे में रही लेकिन आगामी लोकसभा में भी वह सपा की कृपा के भरोसे नहीं रहना चाह रही है । यूं तो सपा के साथ रालोद के आपसी रिशतों में अभी खटास की कोई बड़ी खबर सामने नहीं आ रही है लेकिन लोकसभा चुनाव में अपनी ितगों पर सपा के साथ सीटों का समझौता करने की ताकत हासिल करने के लिए रालोद ने दलित मतदाताओं को अपने पाले में खींचने की कवायद आरंभ कर दी है । वैसे भी सपा के साथ ग्ठबंधन में शामिल होने के साथ ही अब रालोद अपना तव्तार भी करना चाहती है इसलिए उसने ये दांव चला है ताकि वह खुद को दलित समुदाय का सबसे बड़ा हितैषी साबित करके समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े शोषित समाज की
संवेदना बटोर सके ।
बैक फायर ना कर जाए दलितों पर दांव
कहा जाता है कि चौबे से ््बे बनने की कोशिश करने वालों को दुबे बन कर रह जाने का खतरा भी मोल लेना ही पड़ता है । ऐसा ही खतरा रालोद के सामने भी दिखाई पड़ रहा है जिसके बारे में खुल कर भले ही कोई भी पारटी कार्यकर्ता या नेता कुछ भी कहने से परहेज बरत रहा हो लेकिन अनौपचारिक बातचीत में जयंत के इस दांव को लेकर रालोद के विधायकों की अपनी चिंताएं साफ तौर से समझ में आ जाती हैं । मिसाल के तौर पर रालोद के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर
कहा कि यदि हम विधायक निधि का 35 फीसदी तह्सा दलितों के क्याण के नाम पर बनने वाली योजनाओं पर ही खर्च कर देंगे तो अपने परंपरागत जाट समुदाय की अपेक्षाओं को कैसे पूरा कर पाएंगे । अलबत्ा दलितों को लुभाने के लिए खुले तौर पर आगे बढ़िे के नतीजे में जाटों को अपनी उपेक्षा महसूस हो सकती है जिससे उनके अंदर पारटी के प्रति नाराजगी बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है । साथ ही रालोद के नेताओं को यह आशंका भी सता रही है कि विधायक निधि का 35 फीसदी खर्च करने के बाद भी दलित समुदाय के मतदाता पारटी के पक्ष में ही वोट देंगे कि नहीं देंगे , इसकी कोई गारंटी भी नहीं है ।
20 vxLr 2022