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मुखयमंरिी इतना दलित / आदिवासी विरोधी काम कर सकता है जो मायावती ने किया ।
आरक्र से वंचित करने की रचमी साजिश
उत्र प्रदेश से उत्राखंड के अलग हो जाने के बाद उत्र प्रदेश में आदिवासियों का लोकसभा , विधानसभा तथा पंचायती राज में आरक्षण खतम हो गया था । इसके बाद किसी भी सरकार ने उत्र प्रदेश के आदिसियों को आरक्षण देने या दिलाने का प्रयास नहीं किया । हालांकि दलित हितैषियों ने अनथक प्रयास करके 2010 में आदिवासियों को पंचायती राज में आरक्षण का आदेश दिलाया परंतु मायावती इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गईं । इस कारण यह आरक्षण 2015 में लागू हो सका । साथ ही आदिवासियों के लिये विधान सभा की दो सीटें आरक्षित कराने की लड़ाई चल रही थी परंतु यह खेद का विषय है की मायावती की बसपा इसका निरंतर विरोध कर रही थीं । उनहोंने यह विरोध न केवल चुनाव आयोग बल्क हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट तक किया । अंतत : तमाम विरोध के बावजूद 2017 में उत्र प्रदेश के आदिवासियों के लिए ओबरा तथा दूदधी विधान सभा को दो सीटें आरक्षित कराने में सफलता मिल ही गई । इससे आप अंदाज लगा सकते हैं की मायावती का दलित हितैषी होने का दावा कितना सही है ।
भूमि अधिकार से रखा वंचित
जैसा कि सर्वविदित है कि ग्रामीण परिवेश में भूमि का बहुत महतव होता है । ्योंकि अधिकतर आदिवासी ग्रामीण क्षेरि में ही रहते हैं , अतः इन सबके लिए भूमि का ्वातमतव अति महतवपूर्ण है । ग्रामीण लोगों में बहुत कम परिवारों के पास पुशतैिी ज़मीन है । अधिकतर लोग जंगल की ज़मीन पर बसे हैं परनतु उस पर उनका मालिकाना हक़ नहीं है । इसी लिए जंगल की ज़मीन पर बसे लोगों को ्थातयतव प्रदान करने के उद्देश से 2006 में वनाधिकार अधिनयम बनाया गया था जिसके अनुसार जंगल में रहने वाले आदिवासियों एवं वनवासियों को उनके क्ज़े वाली ज़मीन का मालिकाना हक़ अधिकार के रूप में दिया जाना था । इस हेतु निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार प्रतयेक परिवार का ज़मीन का दावा तैयार करके ग्राम वनाधिकार समिति की जाँच एवं सं्तुति के बाद राज्व विभाग को भेजा जाना था जहाँ उसका सतयापन कर दावे को ्वीकृत किया जाना था जिससे उनहें उ्त भूमि पर मालिकाना हक़ प्रापत हो जाना था । वनाधिकार अधिनयम 2008 में लागू हुआ , उस समय उत्र प्रदेश में मायावती की बहुत मज़बूत सरकार थी । उसी वर्ष इस कानून के अंतर्गत अकेले सोनभद् जिले में वनाधिकार के 65,300 दावे तैयार हुए परनतु 2009 में इनमे से 53,000 अर्थात 81 % दावे ख़ारिज कर दिए गये । मायावती सरकार की इस कार्रवाही के खिलाफ
आवाज़ उ्ठाई गई परनतु मायावती सरकार ने इस पर कोई धयाि नहीं दिया । अंतत मजबूर हो कर इलाहाबाद हाई कोर्ट की शरण में जाना पड़ा । हाई कोर्ट ने अनुरोध को ्वीकार करते हुए उत्र प्रदेश सरकार को सभी दावों की पुनः सुनवाई करने का आदेश अग्त , 2013 को दिया परनतु तब तक मायवती की सरकार जा चुकी थी और उस का ्थाि अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार ने ले लिया था । अगले 5 साल तक अखिलेश सरकार से इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार कार्रवाही करने का अनुरोध किया जाता रहा परनतु उनहोंने एक भी नहीं सुनी और एक भी दावे का नि्तारण नहीं किया । इससे ्पष्र है कि किस प्रकार मायावती और अखिलेश की सरकार ने सोनभद् के दलितों और आदिवासियों को बेरहमी से भूमि के अधिकार से वंचित रखा ।
अनुसूचितों की होतमी रहमी हकमारमी
उपरो्त विवरण से ्पष्र है कि किस तरह पहले मायावती और फिर अखिलेश यादव की सरकार ने दलितों , आदिवासियों और परंपरागत वनवासियों को वनाधिकार कानून के अंतर्गत भूमि के अधिकार से वंचित रखा है और अब भी उन पर बेदखली की तलवार लटकी हुयी है । यह विचारणीय है कि यदि मायावती और अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में इन लोगों के दावों का विचरण कर उनहें भूमि का अधिकार दे दिया होता तो आज उनकी स्थति इतनी दयनीय नहीं होती । इसी प्रकार यदि मायावती ने अपने शासन काल में भूमिहीनों को ग्रामसभा की ज़मीन जो आज भी दबंगों के क्जे में है , के पट्टे कर दिए होते तो उनकी आर्थिक हालत कितनी बदल चुकी होती । उपरो्त संक्षिपत उदाहरणों से ्पष्र है कि मायावती का आदिवासी हितैषी होने का दावा एक दम झू्ठा है । वा्तव में राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा प्रतयािी का समर्थन करना मायावती की मजबूरी है जैसा कि उनहोंने हाल के चुनाव व उपचुनाव में परोक्ष व प्रतयक्ष रूप से किया भी है और आगे भी करेंगी । �
18 vxLr 2022