आप देख सकते हैं कि मायावती के 1995 से 2012 तक के मुखयमंरिी रहने के बावजूद उत्र प्रदेश के आदिवासियों की ्या दुर्दशा है । वा्तव में न तो पहले और न ही मायावती के शासनकाल में आदिवासियों के उतथाि के लिए कुछ किया गया । इसके आदिवासी क्षेरिों में न केवल प्राकृतिक संसाधनों बल्क आदिवासियों के निवास वाले जंगलों का बुरी तरह से दोहन किया गया । आदिवासी क्षेरिों का न तो कोई विकास किया गया और न ही आदिवासियों का सशक्तकरण । परिणाम्वरूप आदिवासी तथा आदिवासी क्षेरि अति पिछड़छेपन का शिकार हैं । पिछडे रहे आदिवासमी बहुल इलाके
सबसे अधिक आदिवासी आबादी वाला जनपद सोनभद् न केवल उत्र प्रदेश बल्क देश के अति पिछड़छे जनपदों में से एक है । उत्र प्रदेश के जिन जिलों में आदिवासियों की पर्यापत आबादी है उनमें मूलभूत सुविधाओं जैसे सड़कों , अ्पतालों , विद्ाियों , सुरक्षित पेयजल , बिजली , सिंचाई , पब्िक ट्रांसपोर्ट आदि का सर्वथा अभाव है । सोनभद् जिले के काफी बड़े क्षेरि में पीने के पानी में फिोरेसिस की मारिा खतरनाक ्तर की
है जिसके कारण कई गाँव के निवासियों की हतडियाँ रछेड़ीमेड़ी हो गई हैं । इस जनपद में आदिवासी बाहु्य तहसील दुदधी में लड़कियों की पढ़ाई के लिए एक भी डिग्री कालेज नहीं है । आज भी बहुत से गाँव सड़क द्ारा तहसील मुखयािय से जुड़छे नहीं हैं और मरीजों को चारपाई पर लाद कर अ्पताल लाना पड़ता है जिनका सर्वथा अभाव है । सुरक्षित पेयजल की सपिाई के अभाव में आदिवासी चुआड़ , नदी तथा पोखरे का असुरक्षित जल पीने के लिए अभिशपत हैं । गमटी के दिनों में पानी की घोर तक्ित का सामना करना पड़ता है । इस जनपद द्ारा उतपातदत अरहर , चना तथा टमाटर मंडी के अभाव में कौड़ियों के दाम बेचने पड़ते हैं । यद्तप सोनभद् जनपद बिजली के उतपादन का सबसे बड़ा केंद् है परंतु अधिकतर आदिवासी गाँव में बिजली की पर्यापत उपि्धता नहीं है । ्थािीय बड़छे बड़छे उद्ोगों में आदिवासी केवल ्ठछेका मजदूर की नौकरी ही पाते हैं । अंधाधुंध एवं अवैध खनन के कारण उपजे प्रदूषण से आदिवासियों का जीवन असुरक्षित हो रहा है । सोनभद् के जनपद से सरकार को सबसे अधिक आय होती होती है परंतु उसका बहुत थोड़ा तह्सा जनपद के विकास पर खर्च होता है । इस प्रकार उत्र प्रदेश
के आदिवासी क्षेरिों का दोहन निरंतर हो रहा है और आदिवासी दिन-ब-दिन पिछड़ते जा रहे हैं ।
अनुसूचितों के साथ किया घोर अन्ाय
आइए अब देखें कि मायावती की सरकार ने आदिवासियों के लिए ्या किया । सबसे पहले तो मायावती नें दलित-आदिवासियों के संरक्षण के लिए बनाए गए अनुसूचित जाति / जनजाति अतयािार निवारण अधिनियम 1989 को ही 2001 में यह कह कर रद्द कर दिया था कि इसका दुरुपयोग हो रहा है जबकि उसको ऐसा करने का कोई अधिकार ही नहीं था । उत्र प्रदेश तो वैसे ही दलित उतपीड़न में काफी आगे रहता है । मायावती द्ारा उपरो्त ए्र के पर रोक लगाने से दलितों और आदिवासियों को दोहरी मार झेलनी पड़ी । एक उनपर अतयािार के मामले दर्ज ही नहीं किये गए और दूसरे उनहें जो मुआवजा मिल सकता था वह भी नहीं मिला । आखिरकार दलित संग्ठिों द्ारा मायावती के इस अवैधानिक एवं दलित / आदिवासी विरोधी कानून को हाई कोर्ट में चुनौती देकर रद्द करवाया गया । ्या कोई सोच सकता है कि एक दलित
vxLr 2022 17