eMag_Aug2022_DA | Page 14

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द्रौपदमी मुर्मू प्रमाण :

वंचितों को अग्रणमी स्ान

वंचितों के उत्ान से बढ़ रहा भारत का सम्ान

कई शंकाओ ंऔर सवालों को मिला मुंहतोड़ जवाब

विजय वरिवेदी vk

जादी का अमृत महोतसव मनाते व्त देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्ौपदी मुर्मू का मिलना हमारी लोकतंरिीय वयव्था में न केवल विशवास को जाहिर करता है , बल्क यह उन लोगों के मुंह पर तमाचा भी माना जा सकता है , जो भारत को आजादी देते व्त हमारी लोकतंरिीय समझ पर सवाल उ्ठाने के साथ-साथ मजाक बना रहे थे । हमने इन 75 साल में सववोच्च सांविधानिक पद पर कमोबेश मु्क के सभी वगगों को नुमांइदगी देने की कोशिश की है । इस दौरान देश को तीन-तीन मुस्िम राष्ट्रपति , दो महिला , दो दलित , एक आदिवासी राष्ट्रपति भी मिला और तमिलनाडु से लेकर पसशिम बंगाल तक सभी को प्रतिनिधितव का मौका भी ।
भारत को लेकर दूर हुआ भ्रम
इसके बावजूद यह सवाल वाजिब हो सकता है कि इन सब औपचारिकताओं को भले हमने पूरा कर लिया हो , पर ्या इस नुमाइंदगी का फायदा उन लोगों को मिला , जिनके नाम पर यह मुहर लगाई गई या केवल राजनीतिक तालियां बटोरी गईं ? जवाब थोड़ा हां और थोड़ा ना हो सकता है , ्योंकि बहुत कुछ बदला भी और बहुत कुछ बाकी रह गया । कम से कम इस बात की तस्िी तो हो सकती है कि हम सही रा्ते पर चल रहे हैं । इन नुमाइंदगी ने उन तमाम धारणाओं को गलत साबित किया , जो दुनिया के दूसरे देश और हमारे मु्क में भी कुछ लोग बताते हैं कि भारत सिर्फ एक हिंदू राष्ट्र है ; यह महिला , आदिवासी , दलित विरोधी समाज है ।
महिलाओं को मिलेगमी मजबूतमी
राष्ट्रपति चुनाव में द्ौपदी मुर्मू की जीत को महिलाओं के सि्तीकरण के जश्न के तौर पर भी मनाया जा सकता है , लेकिन यह तम्ठास अधूरी सी लगती है , जब कोई हाईकोर्ट अपने एक फैसले में कहता है कि महिलाओं के लिए मंगलसूरि जैसे ‘ शादी के चिह्न ’ पहनना जरूरी है और उनकों न पहनना पति को ‘ सामाजिक
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