eMag_Aug2022_DA | страница 15

प्रताड़ना ’ देने जैसा है और यह तलाक का कारण भी बन सकता है । फैसले में यह भी कहा गया कि पुरुषों के लिए कोई ‘ वैवाहिक चिह्न ’ नहीं है , इसलिए उन पर यह पाबंदी नहीं हो सकती । एक और खबर हैरान करने वाली मिली कि एक सववे में कर्नाटक के लोगों ने महिलाओं के साथ होने वाली ‘ पारिवारिक हिंसा ’ या पति द्ारा पत्ी को पीटने को गैर-वाजिब नहीं बताया । उनका मानना है कि यह अच्छे परिवार के लिए जरूरी है ।
आत्म गौरव का उत्ान
्या राष्ट्रपति पर किसी वर्ग विशेष की नुमाइंदगी सिर्फ राजनीतिक धारणा या संदेश भर के लिए होती है , इसका समाज की बेहतरी या ताकत से सीधा रिशता नहीं होता ? किसी हद तक यह बात सही हो सकती है , लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि इस तरह की नुमाइंदगी भले ही मोरछे तौर पर वोटबैंक को साधने के लिए की गई हो , लेकिन यह उस वर्ग के आतम-सममाि और आतम-गौरव से जुड़ी होती है और उस वर्ग को एक नई ताकत भी देती है या निराशा व पिछडछे़पन से उबारने का काम करती है ।
हिन्ुस्ामनयत की असिमी तस्वमीर
देश में दो-दो दलित राष्ट्रपति के आर नारायणन और रामनाथ कोविंद ने भले ही सीधे तौर पर दलित समाज के उतथाि के लिए कोई बड़ा काम न किया हो , लेकिन सववोच्च सांविधानिक पद पर उनके बै्ठिे से दलित समाज को यह भरोसा जरूर कायम हुआ है कि अब वे कमजोर नहीं हैं । इसमें कहीं घोड़छे पर से दलित दू्हे को उतारने की घटना को अपवाद
के तौर लिया जा सकता है । तीन-तीन मुस्िम राष्ट्रपति होने से मुसलमानों की एक बड़ी आबादी का पिछड़ापन भले ही खतम न हुआ हो , लेकिन इसने उन लोगों का मुंह जरूर बंद किया होगा , जो हिनदु्ताि में मुसलमानों को दूसरे दजवे का नागरिक होने की बात करते रहते हैं । आम मुसलमान समझता है कि हिनदु्ताि में उसके हक और बराबरी को कोई नहीं रोक सकता । नारमी उत्ान का प्रमाण
यही बात महिला प्रतिनिधियों को लेकर कही जा सकती है । पहली महिला प्रधानमंरिी इंदिरा गांधी और एक जमाने में एक साथ पांच-पांच राजयों में महिला मुखयमंरिी , कई राजयों में महिला राजयपाल व बहुत से राजनीतिक दलों के अधयक्ष पद पर महिलाओं के बै्ठिे से आम महिला को ताकत जरूर मिली है । वह दिन दूर नहीं लगता , जब संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देने की बात पुरुष प्रधान सामाजिक और राजनीतिक नेताओं को माननी ही पड़छेगी , ्योंकि देर भले हो जाए , अब उसे मंजिल तक पहुंचने से रोका नहीं जा सकता । महिलाओं के कामकाजी होने को लेकर हमारे घर के दरवाजे भले ही खुले हों , लेकिन इसका एक बड़ा कारण हमारी आर्थिक जरूरतें हैं । इसमें भी पत्ी का पति के मुकाबले जयादा कमाना या जयादा पढ़ा- लिखा होना , हमें हजम नहीं होता है , ्योंकि हमें उसके तेवर बर्दाशत नहीं होते ।
लक्ष्मण रेखा का हो सम्ान
इस राष्ट्रपति चुनाव के दौरान विपक्ष के साझा उममीदवार रहे यशवंत सिनहा की योगयता पर सवाल नहीं उ्ठाया जा सकता , वह एक बेहतर राजनेता और कुशल प्रशासनिक अधिकारी
रहे हैं । सिनहा ने खुद भी कहा कि यह चुनावी लड़ाई दो वयस्तयों के बीच नहीं , दो विचारधाराओं के बीच है । सिनहा ने जब ‘ अंतरातमा की आवाज ’ पर वोट देने की बात की , वहां तक भी ्ठीक था , लेकिन उनहोंने जब ‘ रबर ्रांप ’ राष्ट्रपति होने का सवाल उ्ठाया , तो आपतत् दर्ज कराने की जरूरत लगी । ्या यह सवाल इसलिए उ्ठाया गया , ्योंकि मुर्मू महिला और आदिवासी हैं ? इस मौके पर मैं उन राष्ट्रपति या दूसरे लोगों का जिक्र कर आदिवासी महिला राष्ट्रपति के जीत के जश्न का ्वाद खराब नहीं करना चाहता , जिनहोंने सांविधानिक मर्यादाओं तक को ताक पर रख दिया । दुनिया के किसी भी राष्ट्राधयक्ष के सबसे बड़छे आवास रायसीना हिल पर बने राष्ट्रपति भवन में ऐसे बहुत से तक्सों की फाइलें होंगी , लेकिन एक ताकतवर समाज से जुडछे़ किसी पुरुष उममीदवार के लिए हम ऐसे शक पैदा नहीं करते हैं !
शुभता की शुभकामनाएं अपेसक्त
आखिरी बात , राष्ट्रपति सिर्फ संविधान की शपथ नहीं लेते , वे संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं । सक्रिय राष्ट्रपति या ‘ ऐक्रव प्रेसिडेंट ’ का मतलब प्रधानमंरिी और सरकार से आए दिन तकरार या विवाद करना कतई नहीं होता । उनसे उममीद होती है कि जिस दिन संविधान की अनदेखी हो रही हो , उस दिन या रात कोई राष्ट्रपति किसी द्तावेज पर चुपचाप द्तखत करना जरूरी न समझे । बेशक , राष्ट्रपति की मौजूदगी एक ताकत और भरोसा देती है । हार- जीत पर बहस तो बहुत होगी , लेकिन फिलहाल तो यह भारतीय गणराजय के लिए शुभकामनाओं का समय है । �
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