इंसान और इंसान में कोई भेदभाव होता हो । बल्क आजादी के अमृत वर्ष में सुयोग ऐसा बना है जिसमें देश का नेतृतव सही मायने में समाज के सबसे पी्छे की पंक्त से आने वालों के हाथों में है । चाहे वह प्रधानमंरिी हों , या राष्ट्रपति । सहन नहीं हो रहा वंचितों का वर्चस्व
यह लोकतंरि की ही ताकत है कि बचपन में चाय बेचने वाले , कथित छोटी जाति में पैदा हुए नरेनद् मोदी आज विशव के सबसे बड़छे राजनीतिक दल भाजपा के सर्वमानय अग्रणी नेता हैं और भारत की राजनीति में दूर-दूर तक उनका कोई विक्प दिखाई नहीं पड़ रहा है । इसी प्रकार यह लोकतंरि की ही शक्त है कि सामाजिक वयव्था के सबसे निचले पायदान से आने वाली संथाल वनवासी महिला द्ौपदी मुर्मू निगम पार्षद के तौर पर 25 वर्ष पूर्व राजनीतिक जीवन में कदम रखने के बाद एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए आज देश के सववोच्च पद पर पहुंच गई हैं । ्वाभाविक है कि विरासत की सियासत करने वालों को लोकतांतरिक वयव्था का यह पहलू
रास नहीं आ रहा है । वह भी तक जबकि दशकों तक पंचायत से पार्लियामेंट तक पर एक परिवार का ही एक्रि शासन रहा हो लेकिन अब उस परिवार के युवराज को अपना राजनीतिक अस्ततव कायम रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो । ऐसे में उस युवराज की ही नहीं बल्क उसके सहयोगियों , सलाहकारों और चाटुकारों की खिन्नता , छटपटाहट और बौखलाहट को आसानी से समझा जा सकता है । जिस परिवार ने अब तक इस देश पर हमेशा राज किया हो , जिस खानदान के लोग देश के संचालक , नियंरिक और नियंता रहे हों और जिस खानदान के लोगों की पूंछ पकड़ कर कईयों ने लगातार सत्ा सुख भोगा हो उस खानदान को आम लोगों द्ारा नकार दिया जाना तो ्वाभाविक तौर पर युवराज और उनके सिपहसालारों को लोकतंरि में आम जनता की यह ताकत सहन नहीं होगी । तभी तो अब उस अभिजातय परिवार को लोकतंरि की पूरी वयव्था में ही नहीं बल्क शासन और सत्ा की सभी सं्थाओं में सिर्फ कमियां और खामियां ही दिखाई पड़ रही हैं । ऐसे में अगर मन की तपन , जलन , कुढ़न अ्सर जुबान से
जहर के रूप में प्रवाहित होती दिखे तो इसमें आशिय्य कैसा ? ऐसा ही हुआ है द्ौपदी मुर्मू के मामले में । अववि तो द्ौपदी को राष्ट्रपति पद का उममीदवार बनाया जाना ही उस परिवार के सद्यों , सहयोगियों और चाटुकारों को रास नहीं आया जिसके कारण राष्ट्रपति चुनाव के दौरान द्ौपदी के बारे में कई बार अनाप-शनाप बातें भी कही गईं और हद तो तब हो गई जब मुर्मू के राष्ट्रपति बन जाने के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने उनके बारे में ऐसा ि्द इ्तेमाल किया जिसने ना सिर्फ तमाम महिलाओं के मान-सममाि को ्ठछेस पहुंचाई बल्क वह ि्द राष्ट्रपति पद की गरिमा और मर्यादा के भी पूरी तरह खिलाफ था और इससे वंचितों व वनवासियों का पूरा समुदाय खुद को आहत महसूस कर रहा है ।
जुबान फिसलने का बहाना हुआ पुराना
हालांकि हर तरफ से भारी आलोचना और थु्का-फजीहत होने के बाद अधीर रंजन चौधरी ने लिखित तौर पर भी माफी मांग ली है । अपने लेटर हेड पर लिखा माफीनामा अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्ौपदी मुर्मू को भेजा है जिसमें लिखा है , ‘ मैं आपको ये परि खेद जताने के लिए लिख रहा हूं कि गलती से मैने आपके लिए गलत ि्द का इ्तेमाल किया ... ये जुबान फिसलने से कारण हुआ है ... मैं माफी मांगता हूं - और आपसे आग्रह है कि आप इसे ्वीकार करें ।’ अधीर रंजन ने इस बार भी यही कहकर बचने की कोशिश की कि “ वो बंगाली हैं इसलिए उनके मुंह से अज्ािता में राष्ट्रपति की बजाय राष्ट्रपत्ी निकल गया ।” लेकिन यह पहली बार नहीं है जब अधीर रंजन चौधरी ने विवादा्पद बयान देने के बाद जुबान फिसलने का बहाना बनाकर अपनी गलती का बचाव किया हो । वर्ष 2019 में अधीर रंजन चौधरी ने निर्मला सीतारमण को ‘ निर्बला ’ कहा था । इसके अलावा , उनहोंने सत्ारूढ़ राष्ट्रीय जनतांतरिक ग्ठबंधन ( एनडीए ) को ‘ नॉन-डिलीवरी एजेंसी ’ कहकर उसकी आलोचना भी की थी । अधीर ने
vxLr 2022 11