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इन्सान की मुक्ति संभव नहीं है । अतः ऋषि द्याननद कया दलितोदयार की दृलषट से भी सब से महयान कया््ग यह ्या कि उनहोंने सबके सया् दलितों के लिए भी वेद-विद्या के दरवयाजे खोल
दिए । मध्कयाि मे सत्री-शूद्ों के वेदयाध््न पर जो प्रतिबंध िरया्े गए थे । आर्य समयाज के संस्थापक महर्षि द्याननद ने अपने मेधयावी क्रांतिकयारी चिंतन और व्लकततव से उन सब प्रतिबंधों को अवैदिक लसद कर लद्या । ऋषि द्याननद के दलितोदयार के इस प्रधयान सयाधन और उपया् में ही उनके द्वयारया अपनया्े गए अन् सभी उपया्ों कया समयावेश हो जयातया है । जैसे- दलित सत्री-शूद्ों को रया्त्री मंत्र कया उपदेश देनया , उनकया उपनयन संस्कार करनया , उनहें होम-हवन करने कया अधिकयार प्रदयान करनया , उनके सया् सहभोज करनया , शैलक्क संस्थाओं में शिक्षा वसत्र और खयान पयान हेततु उनहें समयान अधिकयार प्रदयान करनया , गृहस् जीवन में पदयाप्गण हेततु ्तुवक-्तुवतियों के अनतुसयार ( अंतरजयातीय ) विवयाह करने की प्रेरणया देनया आदि ।
डया . आंबेडकर ने भी सवीकयार लक्या है कि स्वामी द्याननद द्वयारया प्रतिपयालदत वर्णव्वस्था बतुलद गम् और निरूपद्वी है । महयाराष्ट्र के सतुप्रलसद वक्ता प्रयािया््ग शिवयाजीरयाव भोसले जी ने अपने एक लेख में लिखया है ,‘ रयाजपथ से
सतुदूर दतुर्गम रयांव में दलित पतुत्र को गोदी में बिठयाकर सयामने बैठी हतुई सतुकन्या को रया्त्री मंत्र पढयातया हतुआ एकयाध नयाररिक आपको दिखयाई देरया तो समझ लेनया वह ऋषि द्याननद प्रणीत
कया अनतु्या्ी होरया । आर्यसमयाजी न होते हतुए भी ऋषि द्याननद की जीवनी के अध््न और अनतुसंधयान में 15 से भी अधिक वर्ष समर्पित करने वयािे बंरयािी बयाबू देवेंद्नया् ने द्याननद की महत्तया कया प्रतिपयादन करते हतुए लिखया है कि वेदों के अनधिकयार के प्रश्न ने तो सत्री जयालत और शूद्ों को सदया के लिए विद्या से वंचित लक्या ्या । इसी ने धर्म के महंतों और ठ़ेकेदयारों की गद्दियां स्थापित की थीं , जिनहोंने जनतया के मलसतषक पर तयािे िरयाकर देश को रसयातल में पहतुंिया लद्या ्या । द्याननद ने इन तयािों को तोड़कर मनतुष्ों को मयानसिक दयासतया से छुडयाए ।
ऋषि द्याननद के कयाशी शयासत्रया््ग में उपलस्त पंडित सत्व्रत सयामश्मी ने भी सपषट रूप से सवीकयार करते हतुए लिखया है ,‘‘ शूद्स् वेदयालधकयारे सयाक्षात् वेदवचनमपि प्रदर्शितं स्वामि द्याननदेन यथेमयां वयािं इति ।” डया . िनद्भयानतु सोनवणे ने लिखया है कि मध्कयाि में पौरयालणकों ने वेदयाध््न कया अधिकयार ब्राह्मण पतुरुष तक ही सीमित कर लद्या ्या । स्वामी द्याननद ने यजुर्वेद के ( 26 / 2 ) मंत्र के आधयार पर
मयानवमयात्र को वेद की कल्याणी वयाणी कया अधिकयार लसद कर लद्या । स्वामीजी इस यजुर्वेद मंत्र के सत्या््गद्ष्टा ऋ़षि हैं ।
ऋषि द्याननद के बलिदयान के ठीक दस वर्ष बयाद उनहें श्दयांजलि देते हतुए दयादया सयाहेब खयापडडे ने लिखया ्या कि स्वामीजी ने मंदिरों में दबया छिपयाकर रखे गए वेद भंडयार समसत मयानव मयात्र के लिए खोल दिए थे । उनहोंने हिंदू धर्म के वृक् को महद् योग्तया से कलम करके उसे और भी अधिक फलदया्क बनया्या । वेदभयाष् पदद्लत को द्याननद सरसवती की देन नयामक शोध प्रबंध के लेखक डया . सतुधीर कुमयार रतुपत के अनतुसयार स्वामी जी ने अपने वेदभयाष् कया हिंदी अनतुवयाद करवयाकर वेदज्ञान को सयाव्गजनिक संपत्ति बनया लद्या । पं . चमूपति जी के शबदों में द्याननद की दृलषट में कोई अछूत न ्या । उनकी द्याबल-बली भतुजयाओं ने उनहें असपृश्तया की गहरी रतुहया से उठया्या और आर्यतव के पतुण्लशखर पर बैठया्या ्या ।
हिंदी के सतुप्रलसद छया्यावयादी महयाकवि सूर्यकयांत त्रिपयाठी निरयािया ने लिखया है कि देश में मलहियाओं , पतितों त्या जयालत-पयांति के भेदभयाव को मिटयाने के लिए महर्षि द्याननद त्या आर्यससमयाज से बढ़कर इस नवीन लवियारों के ्तुर में किसी भी समयाज ने कया््ग नहीं लक्या । आज जो जयाररण भयारत में दीख पड़तया है , उसकया प्रया्ः समपूण्ग श्े् आर्य समयाज को है । महयाराष्ट्र रयाज् संसकृलत संवर्धन मंडल के अध्क् मरयाठी विशवकोश लनमया्गतया तर्क-तीर्थ लक्मण शास्त्री जोशी ऋषि द्याननद की महत्तया लिखते हतुए कहते हैं कि सैकड़ों वषगों से हिंदतुतव के दतुब्गि होने के कयारण भयारत बयारंबयार परयाधीन हतुआ । इसकया प्रत्क् अनतुभव महर्षि स्वामी द्याननद ने लक्या । इसलिए उनहोंने जनमनया जयालतभेद और मूर्तिपूजया जैसी हयालनकयारक रुढ़ियों कया निर्मूलन करनेवयािे विशवव्यापी महत्वाकयांक्षा ्तुकत आर्यधर्म कया उपदेश लक्या । इस श्ेणी के द्याननद यदि हजयार वर्ष पूर्व उतपन्न हतुए होते , तो इस देश को परयाधीनतया के दिन न देखने पड़ते । इतनया ही नहीं , प्रत्युत विशव के एक महयान् राष्ट्र के रूप में भयारतवर्ष देदीप्मयान होतया । �
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 45