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महर्षि दयानंद और दलितोद्ार

रमेश आर्य यादव

र्णव्वस्था जनमनया है ्या कर्मणया । यदि उसे जनमनया मयानया जया् तो वह जयालतरत भेदभयाव को लनमया्गण करने कया एक महत्तवपूर्ण कयारण लसद होती है । ऋषि द्याननद कर्मणया वर्णव्वस्था के पक्धर हैं । उनकी यह धयारणया थी कि जनमनया वर्णव्वस्था तो पयांच-सयात पीढ़ियों से शतुरु हतुई है , अतः उसे पतुरयातन ्या सनयातन नहीं कहया जया सकतया । अपने तयालक्कक प्रमयाणों द्वयारया उनहोंने जनमनया वर्णव्वस्था कया सशकत खंड़न लक्या । उनकी दृलषट में जनम से सब मनतुष् समयान हैं , जो जैसे कर्तव्-कर्म करतया है , वह वैसे वर्ण कया अधिकयारी होतया है ।

असपृश्-दलित शबद कया विवेचन प्रस्तुत करते हतुए डया . कुशलदेव शास्त्री लिखते हैं कि दलितोदयार से पूर्व दलितों के लिए सयाव्गजनिक सयामयालजक क्ेत्र में असपृश् और अछूत शबद प्रचलित थे , लेकिन जब समयाज-सतुधयार के बयाद समयाज मंक यह धयारणया बनने लगी कि कोई भी असपृश् और अछूत नहीं है , तो धीरे-धीरे असपृश् के स्थान पर दलित शबद रुढ़ हो र्या । स्वाभयालवक रूप से असपृश्ोदयार वया अछूतोदयार कया स्थान भी दलितोदयार ने ले लि्या । मयानसिक परिवर्तन ने पयारिभयालषक संज्ञाओं को भी परिवर्तित कर लद्या ।
प्रदीर्घ समय तक सयामयालजक , आर्थिक आदि दृलषट से जिनकया दलन लक्या र्या , कयाियानतर में उनहें ही दलित कहया र्या । पंडित इनद् विद्यावयािसपलत के अनतुसयार जब यह महसूस लक्या जयाने िरया कि शतुलद और दलितोदयार दोनों चीजें एक सी नहीं हैं । दलितों की हीन दशया के लिए सवर्ण समझे जयाने वयािे लोग ही जिममेदयार हैं , जिनहोंने जयालत के करोड़ों व्लकत्ों को अछूत बनया रखया है । उनहें मयानवतया कया अधिकयार देनया सवणगों कया कर्तव् है । इस लवियार को सयामने रखकर आर्य समयाज के कया््गकतया्गओं ने अछूतों
के लिए दलित और अछूतों के उदयार कया््ग के लिए दलितोदयार की संज्ञा दे दी । तभी से अछूतों की शतुलद के संदर्भ में दलितोदयार संज्ञा प्रचलित हो गयी । यह बयात अविसमरणीय है कि आर्य समयाज के समयाज सतुधयार आंदोलन ने ही दलित- आनदोिन को दलित और दलितोदयार जैसे सक्म शबद प्रदयान किये हैं ।
महर्षि द्याननद अपने ही नही सबके मोक् की चिंतया करने वयािे थे । किसी जयालत-समप्रदया् वर्ग विशेष के लिए नहीं , अपिततु सयारे संसयार के उपकयार के लिए उनहोंने आर्यसमयाज की स्थापनया की थी । 1880 में कयाशी में एक दिन एक मनतुष् ने वर्ण व्वस्था को जनमरत लसद करने के उद्ेश् से महयाभयाष् कया निम्न शिोक प्रस्तुत लक्याः- विद्या तपशि योनिशि एतद् ब्राह्मण कयारकम् । विद्या तपोभ्यां यो हीनो जयालत ब्राह्मण एव
सः ।। 4 / 1 / 48 ।।
अ्या्गत् ब्राह्मणतव के तीन कयारक हैं – विद्या , तप और योनि और जो विद्या और तप से हीन है वह जयात्या ( जनमनया ) ब्राह्मण तो है ही ।
ऋषि द्याननद ने प्रतिखंडन में मनतु कया यह
शिोक प्रस्तुत लक्या- ््या कयाषठमयो हसती , यश्चा चर्ममयो मृगः । यशि विप्रोऽनधी्यानसत्रयसते नयाम बिभ्रति ।। मनतुसमृलत ( 2,157 ) अ्या्गत जैसे कयाषठ कया कटपतुतिया हया्ी और चमड़े कया बनया्या मृग होतया है , वैसे ही बिनया पढया हतुआ ब्राह्मण होतया है । उकत हया्ी , मृग और विप्र ये तीनों नयाममयात्र धयारण करते हैं
ऋषि द्याननद से पूर्व और विशेष रूप से मध्कयाि से ब्राह्मणों के अतिरिकत सभी वर्णस् व्लकत्ों को शूद् समझया र्या ्या । अतः क्मशः मतुरि और आंगि कयाि में महयाराष्ट्र केसरी छत्रपति शिवयाजी महयारयाज , बड़ौदया नरेश स्याजीरयाव रया्कवयाड और कोल्हापतुर नरेश रयाजर्षि शयाहू महयारयाज को उपनयन आदि वेदोकत संस्कार करयाने हेततु आनयाकयानी करनेवयािे ब्राह्मणों के कयारण मयानसिक ्यातनयाओं के बीहड़ जंगल से रतुजरनया पडया ्या ।
ऋते ज्ञानयान्नमतुलकतः अ्या्गत् ज्ञानी हतुए बिनया
44 दलित आंदोलन पत्रिका vxLr 2021