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में वनवासियों की उपेक्ा

कोंड , कोरर्या , को्या , कूलि्या , गोंड , गौड , जयातपू , थोटी , धूलि्या , नक्कला , नया्कपोड , परधयान , पोरजया , भगतया , भील , मलिस , मन्नदोरया , मूकदोरया , ्यानयालद , येरूकिया , रेलड्दोरया , रैनया , बाल्मीकि , सवरया , सतुरयांली ( बंजयारया / लंबयाडया ) कुरूंबया , बडयारया , टोडया , कयाडर , मिया्न , मतुशतुवन , उदयािी , कनिककर , बोडो गऊबया , रतुडोब गऊबया , चेनदू , पूजया्ग , डोंगरर्या , खोंड , चोियानया्कन , कयादर , कट्टयाउनया्कन , इरूिया , पजियन आदि निवयास करते हैं । इन वनवयासी समतुदया्ों कया मतुख् व्वसया् कृषि , खाद्य संग्रहण त्या मछली पयािन रहया ह । जल , जंगल त्या जमीन पर अलतक्मण होने से इन वनवयासी लोगों के जीवन-्यापन कया प्रमतुख सहयारया छिनने िरया है । आदिम जनजयालत्ों की दशया की समीक्षा के लिए भयारत सरकयार ने सन् 1969 में योजनया आयोग के अनतर्गत " शीितु आव समिति " गठित की , जिसने अपने निषकषगों में यह पया्या कि जनजयातीय समयाज के अधिकयांश लोग अत्लधक पिछड़े हतुए हैं और इनमें से कुछ तो अभी भी आदिकयािीन अन्न संचय ्तुर में जी रहे हैं । इस समिति ने इन समतुदया्ों पर विशेष ध्यान देने की आवश्कतया पर बल लद्या । बयाद में सन् 2006 में वनाश्रित समतुदया् के अधिकयारों को मयान्तया
देने के लिए " अनतुसूचित जनजयालत एवं अन् परमपरयारत निवयासी ( वनयालधकयारों को मयान्तया ) कयानून " बनया्या र्या । यह कयानून देश के जंगलों को बियाने त्या वनवयासी वनवयालस्ों को वनयालधकयार प्रदयान करने की दृलषट से अत्लधक महतवपूर्ण है ।
इससे पहले सवतंत्रतया मिलने से पूर्व अनेक रयाजनीतिक चिनतकों एवं समयाज सतुधयारकों कया ध्यान वनवयालस्ों की दयनीय दशया की ओर र्या ्या , किन्तु परयाधीन होने के कयारण उनहें आदिवयालस्सों के कल्याण में कोई रयाजकीय सहया्तया प्रयापत न हो सकी । अंग्रेज़ों ने उनहें एकयाकी और असहया् इसलिये छोड लद्या ्या क्ोंकि वह यह समझते थे कि इन जंगली इियाकों कया प्रशयासन संभयािनया उनके लिए मुश्किल कया््ग है और अंग्रेज़ों के विरूद ्तुद की शतुरूआत करने वयािे वनवयालस्ों के प्रति उनके मन में सहयानतुभूति भी नहीं थी ।
सवतंत्रतया मिलते ही प्रथम प्रधयानमंत्री पलणडत जवयाहर ियाि नेहरू ने आह्वान लक्या कि वनवयासी जीवन एवं संसकृलत को पूर्णतः सम्मान लद्या जयानया ियालहए त्या वनवयासी भयाइयों के सया् प्रेमपूर्ण व्वहयार लक्या जयानया ियालहए । वह ियाहते थे कि वनवयासी नयाररिक भी सयामयान् भयारतीयों
की तरह आधतुलनक जीवन शैली त्या उपलबध सतुलवधयाओं कया इस प्रकयार उपभोग करें कि उनके परमपरयारत जीवन पर कोई प्रतिकूल प्रभयाव न पड़े । उनहोंने वनवयासी भयाषयाओं एवं बोलियों के संरक्ण पर बल लद्या त्या वनवयासी जमीन एवं जंगलों के संरक्ण की अपील की ।
जब किसी जयालत , समयाज ्या समतुदया् पर शयासकीय उपेक्षा , शोषण और अत्याियार कया दंश झेलनया पडतया है । तब कुछ लोग हमददटी कया नयाटक कर अपनया उ्िू सीध करने हेततु ऐसे लोगों के बीच पहतुंच जयाते हैं । सवतंत्रतया मिलते ही लक्लशि्न मिशनरी ऐसे इियाकों में सेवया के नयाम पर धमया्गनतरण कया खेल-खेलने में लग गए हैं और अभी पिछले कुछ वषगों से खयाडी देशों के मुस्लिम नेतयाओं ने इसी लक्् को ध्यान में रखते हतुए इन इियाकों में धमया्गनतरण हेततु धन उपलबध करयानया शतुरू कर लद्या है । उत्तर-पूवटी क्ेत्र के वनवयासी इियाकों में विशेषकर खयासी , ितुशयाइक त्या नयारया समूहों में ईसयाइयों ने भयारत संख्या में धमया्गनतरण किए हैं । ऐसे धमया्गनतरण प्रया्ः बलपूर्वक ्या बहिया-फुसियाकर किए जयाते रहे हैं । वनवयासी इियाकों की दूसरी बडी समस्या उनकया हल््यार उठयानया है । शोषण एवं विस्थापन से त्रसत उत्तर पूवटी त्या मध् क्ेत्र के वनवयालस्ों ने सरकयार के विरूद सशसत्र संघर्ष छेड़ लद्या है त्या वह नकसिवयालद्ों के रूप में केंद् सरकयार के समक् कयानून व्वस्था की ितुनौलत्यां खडी करते रहते हैं । इसलिए अब यह बयाहर जरुरी हो र्या कि वर्तमयान की आवश्कतया के अनतुरूप वनवयालस्ों के जीवन-्यापन के अधिकयारों कया संरक्ण लक्या जयाए , उनहें उनकी परमपरयाओं के सया् आधतुलनकतया कया समनव् करने हेततु प्या्गपत अवसर उपलबध करयाए जया्ें त्या उनहें समयाज और विकयास की मतुख् धयारया से जोडया जयाए , तभी वनवयालस्ों के समपूण्ग विकयास के सपने को सयाकयार लक्या जया सकेरया । �
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 43