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में इनहें भूलम्या , भूई्या कया एक अलग हतुआ समूह मयानया जयातया है । किवदंतियों के अनतुसयार ब्रह्मा जी सृलषट की रचनया की तब दो व्लकत उतपन्न किये । एक को ब्रह्मा जी ने ‘‘ नयारर '' ( हल ) प्रदयान लक्या । वह ‘‘ नयारर '' लेकर खेती करने िरया त्या गोंड कहिया्या । दूसरे को ब्रह्माजी ने ‘‘ टंलर्या '' ( कुल्हाड़ी ) लद्या । वह कुल्हाड़ी लेकर जंगल कयाटने ििया र्या , चूंकि उस समय वसत्र नहीं ्या , अतः यह नंरया बैरया कहिया्या । बैरया जनजयालत के लोग इनहीं को अपनया पूर्वज मयानते हैं ।
बैरया जनजयालत के लोग पहयाडी व जंगली क्ेत्र के दतुर्गम स्थानों में गोंड , भूलम्या आदि के सया् निवयास करते हैं । इनके घर मिट्टी के होते हैं , जिस पर घयास फूस ्या खपरैल की छपपर होती है । दीवयाि की पतुतयाई सफेद ्या पीली मिट्टी से करते हैं । घर की फर्श मलहियाएं गोबर और मिट्टी से लीपती हैं । इनके घर में अनयाज रखने की मिट्टी की कोठी , धयान कूटने कया ‘‘ मूसल ‘‘, ‘‘ बयाहनया ‘‘, अनयाज पीसने कया ‘‘ जयांतया ‘‘, बयांस की टोकरी , सूपया , रसोई में मिट्टी , एितुलमलन्म , पीतल के कुछ बर्तन , ओढ़ने बिछयाने के कपड़े , तीर-धनतुष , टंलर्या , मछली पकड़ने की कुमनी , ढुट्टी , वाद्ययंत्र में ढोल , नरयाडया , टिसकी आदि होते हैं ।
बिरहोर : बिरहोर छत्तीसगढ़ की एक विशेष पिछड़ी जनजयालत है । देश में इनकी अधिकयांश जनसंख्या झयारखंड रयाज् में निवयासरत है । वर्ष 2011 की जनगणनया में छत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या 3104 दशया्गई गई है । इनमें पतुरूष 1526 एवं मलहिया 1578 थी । इस जनजयालत के लोग छत्तीसगढ़ के रया्रढ जिले के धरमजयगढ़ , लैलूंरया , तमनयार विकयासखणड में , जशपतुर जिले के बगीिया , कयांसयाबेल , दतुिदतुिया , पत्थलगांव विकयासखणडों में , कोरबया जिले के कोरबया , पोड़ी उपरोडया , पयािी विकयासखणड त्या लबियासपतुर जिले के कोटया व मसतूरी विकयासखणड में निवयासरत हैं ।
बिरहोर जनजयालत के उतपलत्त के संबंध में ऐतिहयालसक प्रमयाण उपलबध नहीं है । इनहें कोियारियन समूह की जनजयालत मयानया जयातया है ।
इनमें प्रचलित किवदंती के अनतुसयायार सूर्य के द्वयारया सयात भयाई जमीन पर गिरया्े गये थे , जो खैरयारढ ( कैमूर पहयाडी ) से इस देश में आये । ियार भयाई पूर्व दिशया में चले गये और तीन भयाई रया्रढ जशपतुर की पहयाडी में रह गये । एक दिन वे तीनों भयाई देश के रयाजया से ्तुद करने निकले त्या उनमें से एक भयाई के सिर कया कपडया पेड़ में अटग र्या इसे अशतुभ िक्ण मयानकर वह जंगल में ििया र्या त्या जंगल की कटीली झयालड्ों को कयाटने िरया । बचे दो भयाई रयाजया से ्तुद करने चले गये और उसे ्तुद में हरया लद्या । जब वे वयापस आ रहे थे , तो उनहोंने अपने भयाई को
जंगल में ‘‘ चोप '' ( झयाडी ) कयाटते देखया वे उसे बिरहोर ( जंगल कया आदमी ्या चोप कयाटने वयािया ) कहकर पतुकयारने लगे । वह गर्व से कहया कि हयाँ भयाइयों मैं बिरहोर हूँ और वह व्लकत जंगल में ही रहने िरया । उनकी संतयाने भी बिरहोर कहियाने लगी । मतुण्डारी भयाषया में ‘‘ बिर '' अ्या्गत् जंगल अथवया झयाडी एवं ‘‘ होर '' कया अर्थ आदमी है । बिरहोर कया अर्थ जंगल कया आदमी ्या झयाडी कयाटने वयािया आदमी हो सकतया है ।
पहाड़ी कोरवा : छत्तीसगढ़ में विशेष पिछड़ी जनजयालत जशपतुर , सररतुजया , बलरयामपतुर , त्या कोरबया जिले में निवयासरत है । सवजेक्ण वर्ष
40 दलित आंदोलन पत्रिका vxLr 2021