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प्रकृ ति के संरक्षक हैं वनवासी
चन्द्रजीत
मध् प्रदेश को विभकत करके बनया्े गए छत्तीसगढ़ को वनवयालस्ों की भूमि के रूप में देखया जयातया है I प्रयािीनकयाि में यह भूमि दलक्ण कोशल के नयाम से पहियानी जयाती थी , जिसकया उ्िेख रयामया्ण और महयाभयारत में भी मिलतया है । छठी और बयारहवीं शताब्दियों के बीच सरभपूरर्या , पयांडुवंशी , सोमवंशी , किितुरी और नयारवंशी शयासकों ने इस क्ेत्र पर शयासन लक्या । रयाज् में रहने वयािी विशेष वनवयासी जयालत्ों को प्रकृति के संरक्क के रूप में देखया जया सकतया है । रयाज् में रहने वयािे विशेष वनवयालस्ों की लस्लत्ों को कुछ
इस तरह से समझया जया सकतया है-
अबुझमाड़िया : अबतुझमयालड्या जनजयालत नयारया्णपतुर , दंतेवयाडया एवं बीजयापतुर जिले के अबतुझमयाड क्ेत्र में निवयासरत हैं । ओरछया को अबतुझमयाड कया प्रवेश द्वयार कहया जया सकतया है । इस जनजयालत की कुल जनसंख्या सवजेक्ण 2002 के अनतुसयार 19401 थी । वर्तमयान में इनकी जनसंख्या बढ़कर 22 हजयार से अधिक हो गई है । अबतुझमयालड्या जनजयालत के उतपलत्त के संबंध में कोई ऐतिहयालसक अभिलेख नहीं है । किवदंतियों के आधयार पर मयालड्या गोंड़ जयालत के प्रेमी ्तुरि सयामयालजक डर से भयारकर इस दतुर्गम क्ेत्र में आये और विवयाह कर वहीं बस गये । इनहीं के वंशज
अबतुझमयाड क्ेत्र में रहने के कयारण अबतुझमयालड्या कहिया्े । सयामयान् रूप से अबतुझमयाड क्ेत्र में निवयास करने वयािे मयालड्या गोंड़ को अबतुझमयालड्या कहया जयातया है ।
अबतुझमयालड्या जनजयालत कया रयाँव मतुख्तः पहयालड्ों की तलहटी ्या घयालट्ों में बसया रहतया है । पंदया कृषि ( स्थानयांतरित कृषि ) पर पूर्णत्या निर्भर रहने वयािे अबतुझमयालड्या लोगों कया निवयास अस्थाई होतया ्या । पेंदया कृषि हेततु कृषि स्थान को ‘ कघई ‘ कहया जयातया है । जब ‘ कघई ‘ के ियारों ओर के वृक् व झयालड्ों कया उपयोग हो जयातया ्याया तो वो पतुनः नई ‘ कघई ‘ कया चयन कर ग्रयाम बसयाते थे । वर्तमयान में शयासन द्वयारया पेंदया कृषि पर
38 दलित आंदोलन पत्रिका vxLr 2021