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्या कि रयांधी ने अनशन के जरिए रुढि़वयादी हिंदू समयाज से सयामयालजक भेदभयाव और असपृश्तया को खतम करने की अपील की . रुढि़वयादी हिंदू नेतयाओं , कयांग्रेस के नेतयाओं और कया््गकतया्गओं त्या पंडित मदन मोहन मयािवीय ने डया . आंबेडकर और उनके समर्थकों के सया् यरवदया में सं्तुकत बैठकें की . अनशन के कयारण रयांधी की मृत्यु होने की लस्लत में , होने वयािे सयामयालजक
प्रतिशोध के कयारण होने वयािी अछूतों की हत्याओं के डर से और रयांधी के समर्थकों के भयारी दबयाव के चलते डया . आंबेडकर ने अपनी पृथक लनवया्गलिकया की मयांग वयापस ले ली . इसके बदले में अछूतों को सीटों के आरक्ण , मंदिरों में प्रवेश-पूजया के अधिकयार एवं छुआछुत समयापत करने की बयात सवीकयार ली गयी . रयांधी ने भी इस उममीद पर कि सभी सवर्ण भी पूनया संधि कया आदर कर सभी शतजें मयान लेंगे अपनया अनशन समयापत कर लद्या .
गौरतलब है कि आरक्ण प्रणयािी में पहले दलित अपने लिए संभयालवत उममीदवयारों में से ितुनयाव द्वयारया ियार संभयालवत उममीदवयार ितुनते और फिर इन ियार उममीदवयारों में से फिर सं्तुकत लनवया्गिन ितुनयाव द्वयारया एक नेतया ितुनया जयातया . उ्िेखनीय है कि इस आधयार पर सिर्फ एक
बयार 1937 में ितुनयाव हतुए . डया . आंबेडकर ियाहते थे कि अछूतों को कम से कम 20-25 सयाि आरक्ण मिले जबकि कयांग्रेस के नेतया इसके पक् में नहीं थे . उनके विरोध के कयारण यह आरक्ण मयात्र पयांच सयाि के लिए ियारू हतुआ . असपृश्तया के लखियाफ डया . आंबेडकर की लड़ाई को भयारत भर से समर्थन मिलने िरया और उनहोंने अपने रवै्या और लवियारों को रुढि़वयादी हिंदतुओं के प्रति अत्लधक कठोर कर लि्या . भयारतीय समयाज की रुढि़वयालदतया से नयारयाज होकर उनहोंने नयालसक के निकट येओिया में एक सममेिन में बोलते हतुए धर्म परिवर्तन करने की अपनी इच्छा प्रकट कर दी . उनहोंने अपने अनतु्याल्ओं से भी हिंदू धर्म छोड कोई और धर्म अपनयाने कया आह्नान लक्या . उनहोंने अपनी इस बयात को भयारत भर में कई सयाव्गजनिक स्थानों पर दोहरया्या भी . 14 अकटूबर 1956 को उनहोंने एक आमसभया कया आयोजन लक्या जहयां उनहोंने अपने पयांच ियाख अनतु्याल्ओं कया बौद धर्म में रुपयानतरण करवया्या . तब उनहोंने कहया कि मैं उस धर्म को पसंद करतया हूं जो सवतंत्रतया , समयानतया और भयाईियारे कया भयाव सिखयातया है .
डया . आंबेडकर सिर्फ हिंदू समयाज में व्यापत कुरीतियों और सयामयालजक भेदभयाव के ही विरोधी नहीं थे . वे इस्लाम और दलक्ण एलश्या में उसकी रीतियों के भी बड़े आलोचक थे . वे मुस्लिमों में व्यापत बयाि विवयाह की प्र्या और मलहियाओं के सया् होने वयािे दुर्व्यवहयार के भी आलोचक थे . उनहोंने लिखया है कि मुस्लिम समयाज में तो हिंदू समयाज से भी कहीं अधिक बतुरयाई्यां हैं और मतुसलमयान उनहें भयाईियारे जैसे नरम शबदों के प्रयोग से छिपयाते हैं . उनहोंने मतुसलमयानों द्वयारया अर्जल वरगों के लखियाफ भेदभयाव जिनहें निचले दजजे कया मयानया जयातया ्या , के सया् मुस्लिम समयाज में मलहियाओं के उतपीडन की दमनकयारी पदया्ग प्र्या की निंदया की . वे सत्री-पतुरुष समयानतया के पक्धर थे . उनहोंने इस्लाम धर्म में सत्री-पतुरुष असमयानतया कया लजक् करते हतुए कहया कि बहतुलववयाह और रखैल रखने के दतुपरिष्णाम शबदों में व्कत नहीं किए जया सकते जो विशेष रुप से एक मुस्लिम मलहिया के दतुख के स्ोत हैं . जयालत व्वस्था को ही लें , हर कोई
कहतया है कि इस्लाम रतुियामी और जयालत से मतुकत होनया ियालहए , जबकि रतुियामी अलसततव में है और इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से समर्थन लमिया है . इस्लाम में ऐसया कुछ नहीं है जो इस अभिशयाप के उनमूिन कया समर्थन करतया हो . अगर रतुियामी खतम हो जयाए फिर भी मतुसलमयानों के बीच जयालत व्वस्था रह जयाएगी .
उनहोंने इस्लाम में उस कट्टरतया की भी आलोचनया की जिसके कयारण इस्लाम की नीतियों कया अक्रशः अनतुपयािन की बदतया के कयारण समयाज बहतुत कट्टर हो र्या है . उनहोंने लिखया है कि भयारतीय मतुसलमयान अपने समयाज कया सतुधयार करने में विफल रहे हैं जबकि इसके विपरित तुर्की जैसे इस्लामी देशों ने अपने आपको बहतुत बदल लि्या . राष्ट्रवयाद के मोिजे पर भी डया . आंबेडकर बेहद मतुखर थे . उनहोंने विभयाजनकयारी रयाजनीति के लिए मोहममद अली लजन्नया और मुस्लिम लीग दोनों की कटु आलोचनया की . हयाियांकि शतुरुआत में उनहोंने पयालकस्तान लनमया्गण कया विरोध लक्या किंततु बयाद में मयान गए . इसके पीछ़े उनकया तर्क ्या कि हिंदतुओं और मतुसलमयानों को पृथक कर देनया ियालहए क्ोंकि एक ही देश कया नेतृतव करने के लिए जयातीय राष्ट्रवयाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसया होगी . वे कतई नहीं ियाहते थे कि भयारत सवतंत्रतया के बयाद हर रोज रकत से लथपथ हो . वे हिंसयामतुकत समयानतया पर आधयारित समयाज के पैरोकयार थे .
उनकी सयामयालजक व रयाजनीतिक सतुधयारक की विरयासत कया आधतुलनक भयारत पर गहरया प्रभयाव पड़ा है . मौजतुदया दौर में सभी रयाजनीतिक दल ियाहे उनकी लवियारधयारया और सिदयांत कितनी ही भिन्न क्ों न हो , सभी डया . आंबेडकर की सयामयालजक व रयाजनीतिक सोच को आगे बढ़ाने कया कयाम कर रहे हैं . डया . आंबेडकर के रयाजनीतिक-सयामयालजक दर्शन के कयारण ही आज विशेष रुप से दलित समतुदया् में चेतनया , शिक्षा को लेकर सकयारयातमक समझ पैदया हतुआ है . इसके अियावया बडी संख्या में दलित रयाजनीतिक दल , प्रकयाशन और कया््गकतया्ग संघ भी अलसततव में आए हैं जो समयाज को मजबूती दे रहे हैं .
( साभार )
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 37