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पढ-लिख कर भी नहीं बदली । कुछ प्रतिशत बदली भी है तो उसकया प्रतिशत अंतरजयातीय विवयाह के मयामले में और भी घट जयाती है ।
सन 2000 से हिनदी सिनेमया की गिनी ितुनी लफ्में हीं है , जिनको दलित संदभगों में देखया जया सकतया है । जिसमें से कुछ प्रमतुख लफ्में- ‘ समर ’ 1998 , ‘ बवंडर ’ 2000 , ‘ डॉ बयाबयासयाहेब आंबेडकर ’ 2000 , ‘ आर्टिकल 15 ’ 2019 , ‘ आरक्ण ’ 2011 , ‘ धडक ’ 2018 , ‘ मयांझी द मयाउंट़ेन मैन ’ 2015 , ‘ शूद् -द रयाइजिंग ’ 2012 , ‘ मसयान ’ 2015 , पिछले 20 सयािों की यह प्रलसद लफ्में है । जबकि अमूमन हर सयाि 200 से ज्यादया हिनदी लफ्में रिलीज होती हैं । सयाि 2017 में तो 364 लफ्में हिनदी लफ्में रिलीज हतुई थी ।
लेकिन इनमें से कोई भी लफ्म 1994 में आई लफ्म ‘ बैंडिट कवीन ’ की तरह प्रलसलद नहीं पया सकी । वैसे तो उस लफ्म को कयाफी विवयादों की वजह से कई तरह के बैन को भी झेलनया पडया ्या । इसके बयावजूद वह लफ्म एक मील कया पत्र है । उसकी ततुिनया में आर्टिकल 15 , आरक्ण और मयांझी द मयाउंट़ेन मैन ने थोड़ा बहतुत कमयाि तो लक्या है । लेकिन नया्क के नजरिए से इसमें “ मयांझी द मयाउंट़ेन मैन ” ही
मजबूत है । ‘ आर्टिकल 15 ’ घटनया केंलद्त लफ्म है । फ़ि्म आरक्ण में सैफ अली खयान द्वयारया अभिनीत दलित किरदयार थोडया उभर हतुआ तो है , उसकी वजह सैफ अली खयान जैसे बड़े एकटर कया होनया है । इसके अियावया श्याम बेनेगल की ‘ समर ’, राष्ट्रीय फ़ि्म पतुरस्कार से सम्मानित हतुई थी ।
इतनया तो सयाफ-सयाफ मयािूम होतया है कि , हिनदी सिनेमया में दलित नया्कों की उपलस्लत लफ्मों में नया के बरयाबर हैं । एक बयात सपषट करनया जरूरी है की हिनदी सिनेमया के दलित नया्क से तयातप््ग , किसी दलित जयालत के कियाकयार से नही अपिततु किसी भी जयालत के कियाकयारों द्वयारया निभयाए गये , दलित चरित्र से है । इन लस्लत्ों में नया्क कया सवयाि पूछनया ही गैर वयालजब लगतया है । जो हयाि सत्तया , पूंजी और समयाज कया है , ऐसे में हिनदी लफ्मों में दलित नया्कों की संभयावनया अभी धतुंधली नजर आती है । बड़ी बयात तो यह भी है की जब तक मेन सट्रीम सिनेमया के पॉपतुिर हीरो-हीरोइन के मयाध्म से दलित किरदयारों को प्रस्तुत नहीं लक्या जयाएरया , तब तक छिटपतुट किरदयारों से वह प्रलसलद और प्रभयाव हयालसि नहीं हो पयाएरया । सिनेमया की
कोशिशों से प्रभयाव क्ेत्र बढ़ेरया , तो दलित नया्कों को लेकर सयामयालजक सवीकृति कि कुछ संभयावनया तो बनेगी । 21वीं सदी कया हिनदी सिनेमया उर्फ बॉलीवतुड रिसक लेने से डरतया है । वह सच को दिखयाने से थोडया परहेज करतया है ।
कुछ प्रोड्ूसर और लनदजेशकों ने रिसक लि्या जिसकी वजह से सत्री कया पक् , समबनधों और सेक्सुअलिटी को लेकर , सिनेमया बदिया है । इसकी वजह सोशल डिसकोस्ग भी रहया है । लेकिन डिसकोस्ग के जयातीय पहलू को सपेस कयाफी कम लमिया है । हिनदी सिनेमया में विदेशी लफ्मों के प्रभयाव और मौलिकतया से बनी लफ्में भी देखने को मिलती है । लेकिन जयालत कया सवयाि सिर्फ हिंदतुस्तान कया सवयाि है , इसलिए कुछ अपवयादों को छोडकर ज्यादयातर बॉलीवतुड सिनेमया किरदयारों में परमपरयारत रवै्या ही अपनयातया है । हिनदी सिनेमया के प्रलसद नया्कों के मयाध्म से निम्न जयालत के चरित्रों को निभयाने के लिए कोशिशें की जयानी ियालहए । इससे जयातीय समयानतया कया समन्वयातमक रूप सयामने आएरया । उदयाहरण सवरूप- सयाि 2018 में आई रजनीकयांत अभिनीत , तमिल लफ्म ‘ कयािया ’ से मेरया स्टार और जयालत के सवयाि को एकसया् देखया जया सकतया है ।
सिर्फ समयानयांतर और संजीदया लफ्मों के भरोसे , निम्न जयालत के चरित्रों को उभयारने से बयात नहीं बनेगी । हिनदी सिनेमया के मसयािया और फयामू्गिया लफ्में , वहयाँ भी निम्न जयालत के चरित्रों को उभयार मिलने से , पॉपतुिर क्िर की संसकृलत में उपलस्लत , सम्मान और स्वाभिमयान कया पॉपतुिर फॉमू्गिया रढ़ेरया । सयाि 2009 में इरफयान खयान अभिनीत लफ्म ‘ लब्िू बयारबर ’ इसी सरीखे की मसयािया फ़ि्म थी । सिनेमया , समयाज की दशया तो नहीं बदल सकतया , लेकिन दिशया देने कया कयाम तो कर ही सकतया है । ियाहे वह कभी ््या््गवयादी हो ्या कभी काल्पनिक । ््या््गवयादी सिनेमया ने तो अपनया कयाम कुछ हद तक निभयाने में कयाम्याब रहया है लेकिन व्वसयाल्क सिनेमया ( मसयािया और फयामू्गिया सिनेमया ), जहयाँ पदजे पर कुछ भी संभव है । वहयाँ फिलहयाि जयालत की परमपरयारत धयारणया , को बदलने कया सरोकयार नजर नही आतया है । �
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 35