eMag_Aug2021_DA | Page 30

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करते समय ब्राह्मणों ने ब्राह्मण इतर जयालत्यां बनया डयािीं । अपने तरीके से मैं यह कहूं कि अपने आपको एक बयाड़े में बंद करके दूसरों को बयाहर रहने के लिए विवश लक्या । एक दूसरे उदयाहरण से मैं अपनी बयात सपषट करूंरया ।
भयारत को संपूर्ण रूप से देखें , जहयां विभिन्न समतुदया् हैं और सबको अपने समतुदया् से िरयाव है , जैसे हिंदू , मतुसलमयान , यहूदी , ईसयाई और पयारसी , लेकिन हिन्दुओं को छोड़कर शेष में आंतरिक जयालतभेद नहीं हैं । परंततु एक-दूसरे के सया् व्वहयार में उनमें अलग-अलग जयालत्यां हैं । यदि पहले ियार समतुदया् अपने को अलग कर लेंगे तो पयारसी अपने आप ही बयाहर रह जयाएंगे , परंततु परोक् रूप से वे भी आपस में अलग समतुदया् बनया लेंगे । सयांकेतिक रूप से कहनया ियाहतया हूं कि यदि ' क ' सजयातीय विवयाह पदलत में सीमित रहनया ियाहतया है , तो लनलशित रूप से ' ख ' को भी विवश होकर अपने में ही सिमट कर रह जयानया पड़ेरया ।
अब यही बयात हम हिंदू समयाज पर भी ियारू करें , आपके सयामने एक व्याख्या पहले से मौजूद हें कि निजद्वैतवयाद के परिणयामसवरूप जो प्रवृत्ति इस समयाज को विरयासत में मिली है , वह है पृथकतवयाद । मेरे इस नए लवियार से नैतिकतयावयालद्ों की भृकुटि चढ़ सकती हैं , जयातपयांत की धयालम्गक ्या सयामयालजक संहितया जयालत विशिषट के लिए असयाध् हो सकती है । किसी जयालत के उद्ंड सदस्ों को यह आशंकया होती है कि उनहें मनियाही जयालत में शयालमि होने कया विक्प न देकर , जयालत-बहिषकृत कर लद्या र्या है । जयालत के नियम बहतुत कठोर होते हैं और उनके उ्िंघन की मयाप कया कोई पैमयानया नहीं होतया है । नयी लवियारधयारया एक नयी जयालत बनया देती है , क्ोंकि पतुरयातन जयालत्यां नवीनतया को सह नहीं पयाती । अनिषटकयारी लवियारकों को रतुरु मयानकर प्रलतलषठत लक्या जयातया है । जो अवैध प्रेम संबंधों के दोषी होते हैं तो वे भी उसी दंड के भयारी होंगे । पहली श्ेणी उनकी है , जो धयालम्गक समतुदया् से जयालत बनयाते हैं , दूसरे वे हैं , जो संकर जयालत बनयाते हैं । अपनी संहितया कया उ्िंघन करने वयािों को दंड देने में कोई सहयानतुभूति नहीं अपनयाई जयाए । यह दंड होतया है ,
हतुक्का-पयानी बंद और इसकी परिणति होती है - एक पृथक जयालत की रचनया । हिंदू मयानसिकतया में यह कलम्यां नहीं होतीं कि हतुक्का-पयानी बंद के भयारी अलग होकर एक अलग जयालत बनया लें । इसके विपरीत वे लोग नतमसतक होकर उसी जयालत में रहकर बने रहनया ियाहते हैं ( बशतजे कि उनहें इसकी इजयाजत दे दी जयाए ) परंततु जयालत्यां सिमटी हतुई इकयाइ्यां हैं और जयानबतुझकर उनमें यह चेतनया होती है कि बहिषकृत लोग एक अलग जयालत बनया लें । इसकया विधयान बडया निर्दयी है और इसी बल के अनतुपयािन कया परिणयाम है कि उनहें अपने में सिमटनया पड़तया है , क्ोंकि अन् वरगों ने अपने को ही परिधि में करके अन् वरगों को बयाहर बंद कर लद्या है , जिसकया परिणयाम है कि नए समतुदया् ( जयालतरत नियमों के निंदनीय आधयार पर निर्मित समतुदया् ) यंत्रवत् विधि द्वयारया आशि््गजनक बहतुितया के सया् जयालत्ों के बरयाबर परिवर्तन किए गए हैं । भयारत में जयालत-संरचनया की प्रक्रिया की यह दूसरी कहयानी बतयाई गई है ।
अतः मतुख् सिदयांत कया समयापन करते हतुए मैं कहनया ियाहतया हूं कि जयालतप्र्या कया अध््न करने वयािों ने कई रिलत्यां की हैं , जिनहोंने उनके अनतुसंधयान को पथभ्रषट कर लद्या । जयालतप्र्या कया अध््न करने वयािे यूरोपियन लवद्वयानों ने व्््ग ही इस बयात पर जोर लद्या है कि जयालतप्र्या रंग के आधयार पर बनयाई गई , क्ोंकि वे सव्ं रंगभेद के प्रति पूवया्गग्रही हैं । उनहोंने जयालत समस्या कया मतुख् ततव यही भेद मयानया है , परंततु यह सत् नहीं है । डया . केतकर ने सही कहया है कि '' सभी रयाजया , ियाहे वे त्याकथित आर्य थे अथवया द्लवड , आर्य कहियाते थे । जब तक विदेशियों ने नहीं कहया , भयारत के लोगों को इससे कोई सरोकयार नहीं रहया कि कोई कबीिया ्या कुटुंब आर्य है ्या द्लवड । चमड़ी कया रंग इस देश में जयालत कया मयानदंड नहीं रहया ( लहसट्री आफ कयासट पृ . 82 )।
वे अपनी व्याख्या कया विवरण देते रहे और इसी बयात पर सिर पटकते रहे कि जयालतप्र्या के उद्भव कया यही सिदयांत हैं । इस देश में व्यावसयाल्क और धयालम्गक आदि जयालत्यां हैं , यह सत् है , परंततु किसी भी हयाित में उनकया सिदयांत जयालत्ों के मूल से मेल नहीं खयातया । हमें यह पतया िरयानया है
कि व्यावसयाल्क वर्ग जयालत्यां क्ों हैं ? इस प्रश्न को कभी छुआ ही नहीं र्या । अंतिम परिणयाम यह है कि उनहोंने जयालत-समस्या को बहतुत आसयान करके समझया , जैसे वे ितुटकी बजयाते ही बन गई हों । इसके विपरीत जैसया मैंने कहया है यह मयान् नहीं हैं , क्ोंकि इस प्र्या में बहतुत जटिलतयाएं हैं । यह सत् है कि जयालतप्र्या की जड़ें आस्थाएं हैं , परंततु आस्थाओं के जयालत संरचनया में योगदयान के पहले ही ये मौजूद थीं और दृढ़ हो ितुकी थीं । जयालत-समस्या के संबंध में मेरे अध््न के ियार पक् हैं : ( 1 ) हिंदू जनसंख्या में विविध ततवों के सलममश्ण के बयावजूद इसमें दृढ़ सयांसकृलतक एकतया है , ( 2 ) जयालत्यां इस विरयाट सयांसकृलतक
30 दलित आंदोलन पत्रिका vxLr 2021