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से हमें यह विश्वास करयाते हैं त्या हमें विश्वास करने से विरकत करते हैं - यह हमयारी प्रकृति के असपषट भयार हैं । सरल मन से नकल करने की प्रवृत्ति पर कोई संदेह नहीं है ।''( फिजिकस एंड पयालिटिकस ( भौतिकी एवं रयाजनीति शास्त्र ) 1915 , पृषठ 60 )
नकल करने की इस प्रवृत्ति के विषय को गेबरिल टार्डे ने वैज्ञानिक अध््न कया रूप लद्या , जिनहोंने नकल करने की प्रवृत्ति को तीन नियमों में बयांटया है । उसके तीन नियमों से एक है कि नीचे वयािे ऊपर की नकल करते हैं । उनहीं के शबदों में , '' अवसर मिलने पर दरबयारी सदया अपने नया्कों , अपने रयाजया ्या अधिपति की नकल करते हैं और आम जनतया भी उसी प्रकयार अपने सयामंतों की नकल करती है ( लॉज ऑफ इमीट़ेशन ( नकल करने के सिदयांत ), अनतुवयाद : ई . सी . पयास्गनस , पृ . 217 )।'' नकल के बयारे में टार्डे कया दूसरया नियम है कि ियाहे आदर्श पयात्र और अनतुसरणकतया्ग के बीच कितनी ही दूरी क्ों न हों , उनके अनतुसयार नकल करने की इच्छा और तीव्रतया में कोई फर्क नहीं पड़तया । उनहीं के शबदों में , '' जिस व्लकत की नकल की जयाती है , वह होतया है हमयारे बीच सबसे श्ेषठ व्लकत ्या समयाज । दरअसल , जिनहें हम श्ेषठ मयानते हैं , उनसे हमयारया अंतर कितनया ही हो , यदि हम उनसे सीधे संपर्क में आते हैं तो उनकया संसर्ग अत्ंत प्रभयावोत्पादक होतया है । अंतर कया अर्थ समयाज-विज्ञान के आधयार पर लि्या र्या है । यदि हमयारया उनसे प्रतिदिन बयार-बयार संसर्ग होतया है और उनके जैसे रंग-ढंग अपनयाने कया अवसर मिलतया है , तो वह व्लकत ियाहे हमसे कितने ही ऊंचे सतर कया क्ों न हो , कितनया ही अपरिचित हो , फिर भी हम सव्ं को उसके निकट मयानते हैं । सबसे कम दूरी पर निकटतम व्लकत के अनतुसरण कया नियम प्रकट करतया है कि ऊंची हैसियत वयािे व्लकत निरंतर सहज प्रभयाव छोड़ते हैं ( लॉज ऑफ इमीट़ेशन ( नकल करने के सिदयांत ), अनतुवयाद : ई . सी . पयास्गनस , पृ . 225 )।
हयाियांकि प्रमयाणों की आवश्कतया नहीं है , परंततु अपने लवियारों को पतुषट करने के लिए मैं बतयानया ियाहतया हूं कि कुछ जयालत्ों की संरचनया
नकल से हतुई । मतुझे लगतया है कि यह जयानया जयाए कि हिंदू समयाज में नकल करके जयालत्यां बनयाने की परिस्थितियां हैं ्या नहीं ? इस नियम के अनतुसयार नकल करने की रतुंजयाइश इस प्रकयार है : ( 1 ) जिस स्ोत की नकल की गई है , उसकी समतुदया् में प्रतिष्ठा होनी ियालहए , और ( 2 ) समतुदया् के सदस्ों में प्रतिदिन और अनेक बयार संपर्क होने ियालहए । भयारतीय समयाज में ये परिस्थितियां मौजूद हैं , इसमें कोई शकर नहीं है । ब्राह्मण अद्ग देवतया मयानया जयातया है और उसे अंशयावतयार जैसया कहया जयातया है । वह विधि नियोजित करतया है और सभी को उसके अनतुसयार ढयाितया है । उसकी प्रतिष्ठा असंदिगध है और वह
शीर्ष परमयानंद है । क्या शास्त्रों द्वयारया प्रया्ोजित और पतुरोहितवयाद द्वयारया प्रतिष्ठिा ऐसया व्लकत अपने व्लकततव कया प्रभयाव डयािने में विफल हो सकतया है ? यदि यह कहयानी सही है तो उसके बयारे में यह विश्वास क्ों लक्या जयातया है कि वह जयालतप्र्या की उतपलत्त कया कयारण है । यदि वह सजयातीय विवयाह कया पयािन करतया है तो क्या दूसरों को उसके पद चिह्ों पर नहीं चलनया ियालहए । निरीह मयानवतया ! ियाहे वह कोई दयाश्गलनक हो ्या ततुचछ गृहस् , उसे इस गोरखधंधे में फंसनया ही पड़तया है , यह अवश्ंभयावी है । अनतुसरण सरल है , आविष्कार कठिन ।
जयालतप्र्या की संरचनया में दूसरों से सीखने
28 दलित आंदोलन पत्रिका vxLr 2021