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आभयास होतया है कि जयालतप्र्या अवश्ंभयावी है ्या विधि-सममत है , यह जयानकर निरीह वरगों पर सजग होकर इन नियमों को आरोपित लक्या र्या है ।
यह उचित ही रहेरया कि शतुरू में मैं यह बयात
कहूं कि अन् समयाजों के समयान भयारतीय समयाज भी ियार वणगों में विभयालजत ्या , ये हैं : ( 1 ) ब्राह्मण ्या पतुरोहित वर्ग , ( 2 ) क्लत्र् ्या सैनिक वर्ग , ( 3 ) वैश् अथवया व्यापयारिक वर्ग , ( 4 ) शूद् अथवया लश्पकयार और श्लमक वर्ग । इस बयात पर विशेष ध्यान देनया होरया कि आरंभ में यह अनिवया््ग रूप से वर्ग विभयाजन के अंतर्गत व्लकत दक्तया के आधयार पर अपनया वर्ण बदल सकतया ्या और इसीलिए वणगों को व्लकत्ों के कया््ग की परिवर्तनशीलतया सवीकया््ग थी । हिंदू
इतिहयास में किसी समय पतुरोहित वर्ग ने अपनया विशिषट स्थान बनया लि्या और इस तरह सव्ं सीमित प्र्या से जयालत्ों कया सूत्रपयात हतुआ । दूसरे वर्ण भी समयाज विभयाजन के सिदयांतयानतुसयार अलग-अलग खेमों में बंट गए । कुछ कया संख्या
बल अधिक ्या त्या कुछ कया नगण् । वैश् और शूद् वर्ण मौलिक रूप से वे ततव हैं , जिनकी जयालत्ों की अनगिनत शयाखया , प्रशयाखयाएं कयाियांतर में उभरी हैं , क्ोंकि सैनिक व्वसया् के लोग असंख् समतुदया्ों में सरलतया से विभयालजत नहीं हो सकते , इसलिए यह वर्ण सैनिकों और शयासकों के लिए सतुरलक्त हो र्या ।
समयाज कया यह उप-वरटीकरण स्वाभयालवक है , किंततु उपरोकत विभयाजन में अप्रयाकृतिक ततव यह है कि इससे वणगों में परिवर्तनशीलतया के
मयार्ग अवरुद हो गए और वे संकुचित बनते चले गए , जिनहोंने जयालत्ों कया रूप ले लि्या । प्रश्न यह उठतया है कि क्या उनहें अपने दया्रे में रहने के लिए विवश लक्या र्या और उनहोंने सजयातीय विवयाह कया नियम अपनया लि्या ्या उनहोंने सवेच्छा से ऐसया लक्या । मेरया कहनया है कि इसकया द्विपक्ी् उत्तर है- कुछ ने द्वयार बंद कर लिए और कुछ ने दूसरे के द्वयार अपने लिए बंद पयाए । पहिया पक् मनोवैज्ञानिक है और दूसरया ियाियाकी भरया , परंततु ये दोनों अन्ोन्यालश्त हैं और जयालत-संरचनया की संपूर्ण रीति-नीति में दोनों की व्याख्या जरूरी है ।
मैं पहले मनोवैज्ञानिक व्याख्या से शतुरू करतया हूं । इस संबंध में हमें इस प्रश्न कया उत्तर खोजनया है कि औद्ोलरक , धयालम्गक ्या अन् कयारणों से वर्ग अथवया जयालत्ों ने अपने आपको आतम- केंलद्त ्या सजयातीय विवयाह की प्र्या में क्ों बयांध लि्या ? मेरया कहनया है कि ब्राह्मणों के करने के कयारण ऐसया हतुआ । सजयातीय विवयाह ्या आतम- केंलद्त रहनया ही हिंदू समयाज कया चलन ्या और क्ोंकि इसकी शतुरुआत ब्राह्मणो ने की थी , इसलिए गैर-ब्राह्मण वरगों अथवया जयालत्ों ने भी बढ़-चढ़कर इसकी नकल की और वे सजयातीय विवयाह प्र्या को अपनयाने लगे । यहयां यह खरबूजे को देखकर खरबूजे के रंग बदलने वयािी कहयावत चरितया््ग होती है । इसने सभी उप-विभयाजनों को प्रभयालवत लक्या । इस तरह जयालतप्र्या कया मयार्ग प्रशसत हतुआ । मनतुष् में नकलबयाजी की जड़ें बहतुत गहरी होती हैं । इस कयारण भयारत में जयालतप्र्या के जनम की यह व्याख्या प्या्गपत हैं । इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि बाल्टर बयारेहोट को कहनया पडया , '' हमें यह नहीं सोचनया ियालहए कि यह नकलबयाजी सवैलचछक होती है ्या इसके पीछ़े कोई भयावनया कयाम कर रही होती है । इसके विपरीत , इसकया जनम मयानव के अवचेतन मन में होतया है और पूर्ण चेतनया जयारने पर उसके प्रभयावों कया आभयास होतया है । इस तरह इसके तत्काल उदय कया प्रश्न नहीं है , बल्क बयाद में भी इसकया अहसयास नहीं होतया है । दरअसल , हमयारी नकल करने की प्रवृत्ति कया स्ोत विश्वास होतया है और ऐसे कयारण हैं , जो पूर्वकयािीन रूप
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 27