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डॉ आंबेडकर और जाति प्रथा
डॉ भीमराव आंबेडकर
इस तरह व्लकत-पूजया कया सिदयांत भयारत में जयालतप्र्या के प्रचलन के निरयाकरण में बहतुत ियाभदया्क सयालबत नहीं होतया । पलशिमी लवद्वयानों ने संभवतः व्लकत पूजया को विशेष महत्व नहीं लद्या , लेकिन उनहोंने दूसरी व्याख्याओं को आधयार बनया लि्या । उनके अनतुसयार भयारत में जिन मयान्तयाओं ने जयालतप्र्या को जनम लद्या है , वे हैं- व्वसया् , विभिन्न कबया्िी संगठनों कया प्रचलन , नयी धयारणयाओं कया जनम और संकर जयालत्यां । प्रश्न यह उठतया है कि क्या वे मयान्तयाएं अन् समयाजों में मौजूद नहीं हैं और क्या भयारत में ही उनकया विशिषट रूप लवद्मयान है । यदि वे भयारत की विशेषतयाएं नहीं हैं और पूरे विशव में एक समयान हैं , तो उनहोंने भूमंडल के किसी अन् भयार में जयालत्यां क्ों नहीं गढ़ लीं ? क्या इसकया कयारण यह है कि वे देश वेदों की भूमि की अपेक्षा अधिक पवित्र हैं ्या लवद्वयान गलती पर हैं ? मैं सोचतया हूं कि बयाद की बयात सही है ।
अनेक लेखकों ने किसी न किसी मयान्तया के आधयार पर अपनी-अपनी लवियारधयारया के समर्थन में उच्च सैदयांलतक मू््ों के दयावे किए हैं । कोई विवशतया प्रकट करते हतुए कहतया है कि गहरयाई से देखने पर प्रकट होतया है कि ये सिदयांत उदयाहरणों के सिवया् कुछ भी नहीं हैं । मैथ्ू आननो्ड कया कहनया है कि इसमें '' महयानतया कया कुछ सयार न होते हतुए भी महयान नयाम जतुड़े हतुए हैं ।'' सर ड़ेनजिल इबबतसन , नेसफी्ड , सेनयार और सर एच . रिजले के सिदयांत यही हैं । मोट़े तौर पर इनकी आलोचनया में यह कहया जया सकतया है कि यह लीक पीटने कया प्र्त् है । नेसफी्ड उदयाहरण प्रस्तुत करते हैं , '' सिर्फ कया््ग , केवल कया््ग ही वह आधयार ्या , जिस पर भयारत की जयालत्ों की पूर्ण प्र्या कया लनमया्गण हतुआ ।'' लेकिन उनहें यह बतयानया होरया कि वह इस कथन से
हमयारी जयानकयारी में कोई इजयाफया नहीं करते , जिसकया सयार यही है कि भयारत में जयालत्ों कया आधयार व्वसया् मयात्र है और यह सव्ं में एक लचर दलील है । हमें नेसफी्ड महोदय से इस सवयाि कया जवयाब ियालहए कि यह कैसे हतुआ कि विभिन्न व्वसया्ी वर्ग विभिन्न जयालत्यां बन गए ? मैं अन् नृजयालत-विज्ञानियों के सिदयांतों पर लवियार करने के लिए सहर्ष प्रसन्न होतया , यदि यह सही न होतया कि नेसफी्ड कया सिदयांत एक अजीब सिदयांत है ।
मैं इन सिदयांतों की आलोचनया जयारी रखते हतुए इस विषय पर अपनी बयात रखनया ियाहूंरया कि जिन सिदयांतों ने जयालतप्र्या को विभयाजनकयारी नियमों के पयािन की एक स्वाभयालवक प्रवृत्ति बतया्या है , जैसया कि हर्बर्ट सपेंसर ने अपने विकयास के सिदयांत में व्याख्या की है और इसे स्वाभयालवक बतया्या है त्या इसे ' जैविक संरचनया भेद ' कहकर लचर पतुरयातनपंथी शबद जयाि की धयारणयाओं को पतुषट लक्या है ्या सतुजनन-विज्ञान के प्रयत्ों कया समर्थन लक्या है , जिससे उसकी सनक कया
26 दलित आंदोलन पत्रिका vxLr 2021