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साहित्य पर हावी राजनीतिक विचारधारा
डॉ . आंबेडकर के विचारों को समझने की जरूरत
संकु त्चत सोच का परित्याग जरूरी

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खडया नहीं उतरते । बीतते समय के सया् उनके क्यानक के नया्क न केवल विद्ोही तेवर अपनया्े हतुए दिखते बल्क कई बयार समयाज में उथल-पतु्ि मिया देने पर आमदया दिखयाई देते । व्वस्था से विद्ोह गलत नहीं है बशतजे उसमें रचनयातमकतया के पतुट हो , विधवंश कया नहीं ।
साहित्य पर हावी राजनीतिक विचारधारा
जयालत व्वस्था , खयासकर छुआछूत निशि्
ही गलत है । उसकया समर्थन करनया मयानवतया के प्रति अन्याय है । लेकिन 1990 के बयाद से जो क्यानक पेश किए जया रहे हैं उसके नया्क में प्रतिशोधयातमकतया कया भयाव छलक उठतया है जो कहीं न कहीं रयाजनीति से प्रेरित दिखयाई देतया है । जबकि सच्चयाई यह है कि “ सयालहत् समयाज कया दर्पण होतया है ” और ‘ रयाजनीति रयाज करने की नीति ’। सयालहत् रयाजनीति को सही दिशया देने कया कयाम करे न कि रयाजनीति सयालहत् को दिशया दे । इसकया सबसे बडया कयारण उन रचनयाकयारों द्वयारया आंबेडकरवयाद की मूल भयावनया को सही से न समझ पयानया है । इस विषय पर डयाॅ . तेज सिंह लिखते हैं- “ आज कया दलित सयालहत् आंबेडकरवयादी लवियारधयारया से परे दलितवयादी सयालहत् कया रूप ग्रहण करतया जया रहया है ।
दलितवयाद जयालतवयाद कया ही एक रूप है , ये आंबेडकरवयाद नहीं है और न ही इसमें डॉ . आंबेडकर के सही लवियार दिखते हैं । बयाबया सयाहब कया लक्् तो समयाज कया सही लनमया्गण करनया ्या न कि जयालत व्वस्था को बढयावया देनया । लेकिन आज कया दलित सयालहत् यही कर रहया है । वह जयालत व्वस्था को अपनयातया ििया जया रहया है जो कि आंबेडकर की लवियारधयारया के लब्कुि विपरीत है ।” डयाॅ . तेज सिंह के अनतुसयार आंबेडकर और आंबेडकरवयाद में अंतर है । आंबेडकरवयाद कया अर्थ है डॉ आंबेडकर के लवियार । आज हम आंबेडकर की बयात तो करते हैं लेकिन उनके लवियारों को दलित सयालहत् में अपनया नहीं रहे हैं । उनके मतुतयालबक हमें यह तय करनया होरया कि आखिर हमें ियालहए क्या आंबेडकरवयाद ्या दलितवयाद ? इस प्रश्न पर सही से लवियार करके ही हम दलित सयालहत् को सही दिशया दे सकते हैं ।
डॉ . आंबेडकर के विचारों को समझने की जरूरत
इसमें कोई शक नहीं है कि आंबेडकर की लवियारधयारया कोई छिछली धरयातल की सतही लवियारधयारया नहीं थी जिसे आसयानी से हर कोई समझ सके । खयासकर वर्तमयान पीढ़ी के अधिकयांश रयाजनेतयाओं ने बयाबया सयाहब डॉ . आंबेडकर को एक लवियारधयारया कया वयाहक कम और रयाजनीति के वयाहक के रूप में अधिक दुष्प्रियारित लक्या है और दलित उदयार के नयाम पर समयाज में वैमनस् फैियाने से आगे इनकी सोच ही नहीं जयाती है । लिहयाजया पेड़ बबूल कया िरया्या जया् और उससे आम के फल की आशया करनया तो बेमयानी ही है । इसी परिदृश् में दलित सयालहत्कयारों की नई पौध खड़ी हतुई है जो कई बयार ऐसे सयालहत् की रचनया कर बैठते हैं जो हमयारे व्यापक समयाज हित के लिए उप्तुकत नहीं बैठती । इस विषय पर प्रकयाश डयािते हतुए प्रो . विमल थोरयात ( इग्ू ) डॉ . आंबेडकर को नई दृलषट से देखने की आवश्कतया पर जोर देते हैं । वे कहते हैं- “ अभी हमें डॉ . आंबेडकर को समझने के लिए कुछ और वकत ियालहए
होरया क्ोंकि आंबेडकर अपने-आप में बहतुत बडी शलखस्त थे । उनके द्वयारया किये गए कया््ग और लवियार उनहें बहतुत विशयाि बनयाते हैं और उनके इस विरयाट रूप को समझने के लिए एक ्या दो दशक कयाफी नहीं है । दलित सयालहत् से अगर हम अमबेडकर को जोड़कर देखते हैं तो सबसे पहले हमें हयालश्े पर पडया जो समतुदया् दिखयाई देतया है , उसे समझनया होरया तयालक आंबेडकर के सही उद्ेश्ों कया पतया िरया्या जया सके । क्ोंकि ऊपरी तौर पर आंबेडकर को केवल दलितों कया मसीहया कहया जयातया है जबकि ऐसया नहीं ्या । वे उन सभी वरगों की चिंतया करते थे जिनकया शोषण होतया आ रहया ्या । उनहें किसी एक वर्ग की चिंतया नहीं थी बल्क पूरे समयाज की चिंतया थी । अमबेडकर ने सयालहत् को मयानवतया से जोडया ्या । आंबेडकरवयादी सयालहत् कया मूल मंत्र समयानतया है जो कि सवतंत्रतया के बयाद सबको देने की बयात कही गई थी । आंबेडकर ने संविधयान में आरक्ण इसी लिए रखया ्या कि 10 वषगों में अपनया लक्् हयालसि लक्या जया सके । लेकिन हमयारी जयालत व्वस्था इतनी संबेदनशील है कि अगर हम डॉ . आंबेडकर की रणनीतियों को सही ढंग से नहीं समझ पयाएंगे तो आने वयािे 100 वषगों तक इसी िडयाई से लड़ते रहेंगे ।”
संकु त्चत सोच का परित्याग जरूरी
इस आलोक में फिर से वही सवयाि उठ खडया होतया है कि क्या दलित सयालहत् की रचनया करने वयािे आज के सयालहत्कयार डॉ . आंबेडकर की मूल भयावनया को समझते हतुए सयालहत् सयाधनया कर रहे हैं ? क्या उनकी दृलषट व्यापक है ? क्या वे आज भी जयालतप्र्या और अरड़े-पिछड़े के पचड़े में तो नहीं फँसे हैं ? तो इन तमयाम प्रश्नों कया एक ही उत्तर है- “ हयाँ ! निशि् ही हयाँ ।” इस ‘ हयाँ ’ को ‘ न ’ करने के लिए उनहीं सयालहत्कयारों को पतुनलव्गियार करनया होरया और जयालतवयाद की गहरी होती खयाई को पयाटने के लिए सभी सयालहत्कयारों को समयाज और देश के हित में अपनया निशछि योगदयान देनया होरया , बिनया किसी संकुचित मयानसिकतया वयािे नेतया से प्रभयालवत हतुए । �
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 25