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आदमी आदमी में भेद के खिलाफ थे आंबेडकर
डॉ . आंबेडकर के विचारों की मूल भावना जानना जरूरी

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बीरेन्द्र कुमार चौधरी la

बाबा साहब के विचारों से भटक रहे हैं आंबेडकरवादी

सकृत भयाषया के वद् शबद से ‘ वयाद ’ की उतपलत्त हतुई है । वयाद कया अर्थ है ‘ लवियार ’। लवियार ही वह तंततु है जिसके आधयार पर कोई व्लकत अपने सवतव कया लनमया्गण करतया है । इसी सवतव से उसकी अलग पहियान होती है । यही बयात सयालहत् पर भी ियारू होतया है । सयालहत् में वयाद कया तयातप््ग है लवियारधयारया से । लेकिन वर्तमयान में यह शबद अपने मूल अर्थ को ही खोतया जया रहया है । खयास तौर से अमबेडकरवयाद के सया् भी शया्द यही हो रहया है । आज ओछी रयाजनीति करने वयािे और ससती शोहरत पयाने की ियािसया में बहतुतेरे सयालहत्कयार खतुद को अमबेडकरवयादी सयालबत करने की होड़ में कुछ भी लिखने से रतुरेज नहीं कर रहे , जिसे कोई भी प्रबतुद व्लकत किसी भी दृलषटकोण से न तो सयालहत् सयाधनया कह सकतया है और न ही समयाज हितैषी । वे भी समयाज में अमबेडकर के नयाम पर अपनी रयाजनीतिक रोटी सेंकने वयािे रयाजनेतयाओं की ही श्ेणी में बैठनया शया्द अपनया सौभयाग् समझते हैं ।
आदमी आदमी में भेद के खिलाफ थे आंबेडकर
अमबेडकरवयादी सयालहत् के जयाने मयाने समीक्क प्रो . ततुकयारयाम पयालटि कहते हैं कि “ अमबेडकर केवल दलितों ्या पिछड़े वरगों के हित में नहीं सोचते थे बल्क वे समयाज की उस व्वस्था के लखियाफ थे जो आदमी आदमी में भेद करके एक को हयालश्े पर डयाि देतया है और
24 दलित आंदोलन पत्रिका vxLr 2021

साहित्यकार

आगे बढ़ने के सयारे अवसर उससे छीन लेतया है । आंबेडकर ने उन हिंदतु शास्त्रों कया खयासकर ‘ मनतुसमृलत ’ कया खंडन लक्या ्या जो कहीं न कहीं असपृश्तया को बढयावया दे रहे थे । सवर्ण जयालत के लोग जो वतया्गव पिछड़े वरगों के सया् कर रहे थे उसके केंद् में ये हिंदतु शास्त्र ही थे । यही वजह है कि आंबेडकर ने 1926 में मनतुसमृलत की प्रतियों को जिया्या ्या क्ोंकि ऐसे ग्रंथ व्लकत्ों को वर्ग व्वस्था में विभयालजत करके समयाज में असमयानतया को बढयावया दे रहे थे ।”
डॉ . आंबेडकर के विचारों की मूल भावना जानना जरूरी
इसमें कोई शक नहीं कि मनतु एक परमपरया है और यदि गहरयाई से मनतुसमृलत कया अध््न
लक्या जया् तो सपषट होतया है मनतुसमृलत की रचनया उस कयािखंड में की गई थी जब मनतुष् असभ् जंगली जीवन को छोड़कर सभ् जीवन की ्यात्रया पर निकिया ्या । इसके नियम कठोर थे । लेकिन शूद्ों और नयारियों के प्रति जो नियम थे , वर्तमयान में मयानवतया के दृलषटकोण से वह सव्ग्या अनतुलित ्या । मौजूदया परिदृश् में देखया जयाए जो लनलशित तौर पर ब्राह्मणवयाद कया समर्थन कतई नहीं लक्या ज सकतया है , लेकिन दलित चेतनया के नयाम पर समयाज में प्रतिशोधयातमक कयार्रवयाई अथवया लवियार कया समर्थन करनया भी गलत ही होरया । आज कया यह एक कटु सत् है कि जब हम आंबेडकर के लवियारों की मूल भयावनया की कसौटी पर अधिसंख् दलित सयालहत्कयारों को परखते हैं तो पयाते हैं कि वे कहीं से भी इस कसौटी पर