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सच साबित हुई चीन पर डॉ . आंबेडकर की भविष्यवाणी

अभिजात शेखर आज़ा्द

कया

चीन को लेकर बाबा साहब आंबेडकर की बात ना मानकर भारत के पहले प्रधानमंत्ी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गलती कर दी ? पिछले दिनों कई विशलेरकों ने बाबा साहब आंबेडकर की चीन नीति और पंडित नेहरू के ' चीन प्रेम ' को लेकर कई लेख लिए हैं , जिसमें कहा गया है कि , बी . आर . आंबेडकर कमयुवनसट पाटटी द्ारा शासित चीन के साथ दोसताना रवैया रखने के विरोधी थी और डॉ . आंबेडकर चाहते थे , कि भारत को लोकतांवत्क देश अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढािा देना चाहिए । डॉ . आंबेडकर बनाम नेहरू की नीति विशलेरकों का कहना है कि डॉ . आंबेडकर , पंडित नेहरू की सबसे बड़ी गुट निरपेक्ष नीति के प्रमुख आलोचकों में से एक थे और डॉ . आंबेडकरचाहते थे , कि भारत को कमयुवनसट पाटटी द्ारा शासित चीन के साथ मैत्ीपूर्ण संबंधों को बढािा नहीं देते हुए लोकतांवत्क देश अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढािा देना चाहिए । चीन और उसके विसतारवादी दृलषटकोण के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए डॉ . आंबेडकर ने कहा था कि भारत के पहले प्रधानमंत्ी जवाहरलाल नेहरू की कमयुवनसट चीन के साथ जुड़ाि की नीति एक गलती थी , इसके बजाय भारत अपनी विदेश नीति को अमेरिका के साथ बेहतर ढंग से जोड़ सकता था , कयोंकि दोनों देश लोकतांवत्क हैं ।
सही हुई बाबा साहब की भविष्यवाणी इतिहास में पीछे मुड़कर देखें , खासकर
1962 के युद्ध और चीन द्ारा अकसाई चिन पर
कबजा करने के बाद पता चलता है , कि डॉ . आंबेडकर की भविषयिाणी सही साबित हुई थी । 1951 में लखनऊ विशिविद्ालय के छात्ों को संबोधित करते हुए डॉ . आंबेडकर ने चीन का जिक्र करते हुए कहा था कि भारत को संसदीय लोकतंत् और तानाशाही के कमयुवनसट तरीके के बीच चयन करना चाहिए और फिर अंतिम फैसले पर पहुंचना चाहिए । इसके साथ ही डॉ . आंबेडकर , नेहरू के ' हिंदी-चीनी भाई भाई ' दृलषटकोण के विरोधी थे और भारत की तिबबत नीति से असहमत थे ।
विदेश नीति पर डॉ . आंबेडकर के विचार
डॉ . आंबेडकर भारत के एक आदर्शवादी विदेश नीति के रुख की सीमाओं से अवगत थे । उनहोंने एक आदर्श भू-राजनीतिक वयिसिा को साकार करने के प्रयास के बजाय देश के रणनीतिक लक्यों को प्रापत करने और समसयाओं
को हल करने के लिए एक वयािहारिक दृलषटकोण का समर्थन किया था । वह देश के सामरिक लाभ को अधिकतम करने के लिए शलकत और बुद्धि का उपयोग करने के खिलाफ भी नहीं थे और नेहरू के धैर्य की आलोचना की , जो इस धारणा पर था कि एक वैलशिक राजनीतिक वयिसिा के निर्माण के लिए प्रतीक्षा करनी चाहिए , जब वैलशिक शलकतयां अचछी नियत के साथ आगे बढेंगी । यानि , डॉ . आंबेडकर का मानना था , कि भारत को किसी वैलशिक शलकत की अचछी नियत के इंतजार में नहीं रहना चाहिए , बल्क भारत को अपनी सामरिक शलकत को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए ।
पंचशील सिदांि के खिलाफ थे डॉ . आंबेडकर
डॉ . आंबेडकर इसके साथ ही नेहरू के पंचशील सिद्धांत के भी खिलाफ थे और उनका मानना था कि राजनीति में पंचशील आदशथों के
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