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संत रविदास के मंदिर का शिलान्ास किया प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी ने

सागर में 11 एकड़ भूमि पर सौ करोड़ की लागत से होगा मंदिर का वनमवाण

मधय प्रदेश के सागर जिले बड़तुमा में 11 एकड़ भूमि पर लगभग 100 करोड़ की लागत बनने वाले संत शिरोमणी श्ी रविदास के समारक और मंदिर का प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी ने वैदिक मंत्ोचार के साथ भूमिपूजन कर शिलानयास कियाI इस अवसर पर प्रधानमंत्ी मोदी ने शिला-पट्टिका का अनावरण भी किया और मंदिर की प्रतिकृति को भी देखा । भूमिपूजन से पहले प्रधानमंत्ी मोदी ने विभिन्न समप्रदायों के साधु-संतों का अभिवादन किया । इसी के साथ प्रदेश के पांच सिानों से प्रारंभ की गई समरसता यात्ा का भी समापन हो गया ।

जानकारी हो कि गत फरवरी माह में ही प्रदेश के मुखयमंत्ी शिवराज सिंह चौहान ने समरसता के प्रणेता संत श्ीरविदास जी के भवय और दिवय रूप में समारक और मंदिर निर्माण कराने की घोषणा की थी और अब प्रधानमंत्ी मोदी द्ारा 12 अगसत को किए गए शिलानयास के बाद यहां भवय और अलौकिक मंदिर का निर्माण किया जाएगा । नागर शैली में यह मंदिर दस हजार वर्ग फुट में बनेगा ।
संत श्ीरविदास जी के भवय और दिवय रूप में समारक और मंदिर निर्माण का शिलानयास
करने के बाद प्रधानमंत्ी मोदी ने कहा कि सागर की धरती , संतों का सानिधय , संत रविदास का आशीर्वाद से संत रविदास समारक एवं कला संग्हालय की नींव पड़ी है । संतों की कृपा से इस पवित् समारक के भूमिपूजन का अवसर मिला है । मैं काशी का सांसद हूं । इसलिए यह मेरे लिए दोहरी खुशी का अवसर है । पूजय संत रविदास जी के आशीर्वाद से कहता हूं कि मैंने शिलानयास किया और एक-डेढ साल बाद जब मंदिर बन जाएगा तो लोकार्पण के लिए भी मैं जरूर आऊंगा । संत रविदास समारक एवं संग्हालय में भवयता भी होगी और दिवयता भी होगी । ये दिवयता रविदासजी की उन शिक्षाओं से आएगी , जिनहें इस समारक की नींव में जोड़ा गया है , गढा गया है । 20 हजार से जयादा गांवों और 300 से जयादा नदियों की मिट्टी समारक का हिससा बनी है । एक मुट्ठी मिट्टी के साथ-साथ मधय प्रदेश के लाखों परिवारों ने समरसता भोज
के लिए एक-एक मुट्ठी अनाज भी भेजा है । यह यात्ाएं यहां खतम नहीं हुई हैं , बल्क यहां से सामाजिक समरसता के एक नए युग की शुरुआत हुई है ।
प्रधानमंत्ी मोदी ने कहा कि कि संत रविदास समारक और संग्हालय की नींव एक ऐसे समय में पड़ी है , जब देश ने अपने आजादी के 75 साल पूरे किए हैं । अब अगले 25 िरथों का अमृतकाल हमारे सामने है । अमृतकाल में हमारी जिममेदारी है कि हम अपनी विरासत को आगे बढाएं और अपने अतीत से सबक भी लें । एक राषट् के रूप में हमने हजारों िरथों की यात्ा की है । इतने लंबे कालखंड में समाज में कुछ बुराइयां आना भी सिाभाविक है । यह भारतीय समाज की ही शलकत है , इन बुराइयों को दूर करने वाला समय समय पर कोई महापुरुष , कोई संत इसी समाज से निकलता रहा है । रविदाज जी ऐसे ही महान संत थे ।
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