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अशतोक कुमार

डॉ

. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर भारतीय इतिहास के प्रमुख वयलकतयों में से एक थे । जिनहोंने उपेक्षितों , शोषितों , दलितों , पिछड़ों , पीड़ितों में सममानपूर्वक जीने की ललक जगाई । ह्ारों सालों से हो रहे शोषण और दमन के कारण , मानसिक रूप से मृत पड़ी जमात के मन में अपने अधिकारों के प्रति जो बिगुल फूका था , वह कारवां बनकर निरंतर बढ़ता जा रहा है । भारत देश को आ्ादी प्रापत होने के बाद उनहोंने कहा था , “ हम ऐसे समय में प्रवेश कर रहें हैं , जिसमें हम राजनीतिक रूप से तो बराबर हैं , लेकिन सामाजिक रूप से बराबर नहीं है । उनकी यह बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है , जितनी उस समय थी । जातिवादी ्हर ने हमारे भारतीय समाज को बुरी तरह जकड़ लिया है । इस कारण दलितों , पिछड़ों , आदिवासियों पर आए दिन अतयाचार होता रहता है , जिसके कारण एक बड़ी जनसंखया व््लत की व्ंदगी जीने के लिए अभिसपत है ।
डॉ . आंबेडकर ने भारतीय समाज-वयिसिा का गहन अधययन किया और उनहोंने पाया कि भारत को कम्ोर बनाने , इसकी विकास की धारा अवरुद्ध करने तथा सामाजिक सौहार्द्र में सबसे बड़ी बाधा भेदभावपूर्ण जाति-वयिसिा ही है । उनके समय देश में जातिप्रथा , जिसका सबसे अमानवीय रूप छुआछूत था , आज से कहीं अधिक विद्मान थी । आज आ्ादी के 70 साल बाद भी , वह कुछ पुराने रूप में और कुछ रूप बदलकर हमारे समाज में मौजूद हैं । जाति- वयिसिा के रूप में , भारतीय समाज में शोषण को सामाजिक और धार्मिक मानयता प्रापत रही है , जिसे डॉ . आंबेडकर ने भी सियं भी भोगा था । इसलिए उनहोंने इस अमानवीय वयिसिा के खिलाफ लड़ाई अपने जीवन भर जारी रखी ।
भारतीय जाति वयिसिा को समझने और उसके उनमूलन के लिए उनकी पुसतकें अछूत कौन और कैसे ?, शूद्रों की खोज , कांग्ेस और गांधी ने अछूतों के लिए कया किया ?, जातिभेद का बीजनाश आदि प्रमुख हैं । इन पुसतकों में

विकसित समाज के लिए भेदभावपूर्ण जाति-व्यवस्ा है सबसे बड़ी बाधा :

उनहोंने बताया कि जातिभेद की नींव में धार्मिक ग्ंि हैं , जिनको सामाजिक मानयता प्रापत है ।
डॉ . आंबेडकर ने भारतीय समाज के शोषितों , पीड़ितों , दलितों और पिछड़ों को आह्ान करते हुए कहा “ शिक्षित बनो ! संगठित बनो ! संघर्ष करो !” उनहोंने सिर्फ कहा ही नहीं बल्क इसे अंजाम देने के लिए संसिाओं और संगठनों का भी निर्माण किया । उनके द्ारा सिावपत संगठन

डॉ . आंबेडकर

और संसिाएं हैं-1924 में बनी बहिषकृत हितकारिणी सभा , 1927 में समता सैनिक दल , 1928 में डिप्रेसड कलासेस एजुकेशन सोसायटी , 1936 में सितंत् लेबर पाटटी , 1942 में अनुसूचित-जाति फेडरेशन , भारतीय बौद्ध महासभा आदि । इन संगठनों के माधयम से उनहोंने लोगों को शिक्षित और संगठित करने का महती काम किया । उनहोंने पीपु्स एजुकेशनल
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