eMag_Aug 2023_DA | Page 39

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तमिलनाडु में दलितों को मिला मंदिर में प्रवेश

तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले में लसित मरियममन मंदिर में बुधवार को कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच दलित परिवारों ने प्रवेश किया और पूजा अर्चना की । सौ साल से भी अधिक समय से पुराने इस मंदिर में अब तक दलितों को प्रवेश नहीं दिया गया था । यह मामला पिछले माह उस समय तूल पकड़ गया , जब उसी क्षेत् के एक सकूल में पढाई करके चेन्नई में काम कर रहे दो युवकों में मंदिर प्रवेश के अधिकार को लेकर सोशल मीडिया पर बहस हो गई । इनमें एक युवक दलित समुदाय का था और दूसरा वन्नियार का । सोशल मीडिया पर चली इस बहस के कारण पूरे क्षेत् में तनाव फैल गया और दलित एवं वन्नियार समुदाय इस सवाल पर आमने-सामने हो गए । इसके बाद दलितों ने जिला प्रशासन से अनुरोध किया कि उनहें मंदिर में प्रवेश करने दिया जाए ।

जिला प्रशासन ने दलितों की ओर से घोषित की गई तिथि पर पुलिस बंदोबसत करके यह
सुवनलशचत किया कि इस दौरान कोई अप्रिय घटना न घटे । अभी तक की जानकारी के मुताबिक , किसी अनय समुदाय ने इसके खिलाफ किसी तरह का विरोध दर्ज नहीं किया है । लेकिन गौर करने की बात है कि मंदिर में दलितों के प्रवेश को संभव बनाने के लिए इस बार भी भारी पुलिस बंदोबसत की जरूरत पड़ी । तमिलनाडु में मंदिरों में दलितों के प्रवेश या उस पर रोक के ऐसे मामले सामने आते रहते हैं ।
गत अप्रैल माह में राजय के वि्लुपुरम जिले में एक दलित के मंदिर प्रवेश पर उसकी सिणथों द्ारा पिटाई का मामला सामने आया था । बाद में हालात बिगड़ने पर मंदिर को सील कर दिया गया । यह लसिवत तब है , जब राजय में 1947 का तमिलनाडु टेंपल एंट्ी ऑथराइजेशन एकट लागू है , जो सभी जाति और वर्ग के लोगों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश और पूजा-पाठ करने का अधिकार देता है । यही नहीं , राजय में पेरियार के नेतृति में सामाजिक सुधार के तगड़े आंदोलन का इतिहास भी रहा है और इससे प्रभावित पार्टियों
का यहां की राजनीति में दबदबा भी ।
बहरहाल , यह लसिवत सिर्फ तमिलनाडु की नहीं , देश के तकरीबन सभी राजयों की है । तेज विकास के कारण रहन-सहन , वेश-भूषा , काम-काज आदि के सतरों पर आए बदलावों को देखते हुए अकसर ऐसा लगता है कि जातिगत भेदभाव अब धुंधले पड़ रहे हैं । इसी आधार पर इसे अकसर अतीत की बात भी कह दिया जाता है । लेकिन सचाई यही है कि आजाद देश के रूप में तीन-चौथाई सदी पूरी कर लेने के बाद भी समाज के हर हिससे में यह बात अचछी तरह नहीं पहुंची है कि हमारा संविधान देश के हर नागरिक को समान मानते हुए उनहें अपने धार्मिक विशिास के मुताबिक जीवन बिताने का अधिकार देता है और किसी भी सार्वजनिक सिान पर उनमें से किसी के भी साथ भेदभाव करने की इजाजत नहीं देता । जाहिर है , संविधान की इस भावना को जन-जन तक पहुंचाने के प्रयासों को पूरी वशद्त से जारी रखना होगा । �
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