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पुरूष सतयाग्ाही शामिल हुए , दूसरे इन सतयाग्ावहयों की पूरी देखभाल जैसे खाने-पीने- ठहरने आदि का इंतजाम पहली बार दलित महिलाओं ने जिस निषठा और मेहनत से किया वह अपने आपमें एक मिसाल है । इस आनदोलन द्ारा दलित महिलाओं की चेतना कितने प्रखर रूप में विकसित हो गई थी । इस बात को समझने के लिए केवल एक उदाहरण ही काफी है । जब 1 अप्रैल 1930 में मलनदर प्रवेश के दौरान पुजारी द्ारा दलित महिलाओं को पीछे धकका देने पर एक दलित महिला ने उस पुजारी के मुंह पर सनसनाता थपपड़ रसीद कर दिया ( फड़के पं . दि . कृत कालाराम मलनदर प्रवेश सतयाग्ह )
कालाराम मलनदर सतयाग्ह में महिलाओं की सभा में भाग लेते हुए राधा बाई बडाले नामक एक सतयाग्ाही ने अपने ओजसिी भाषण में कहा कि हमें मंदिरों मे जाने का , पनघट से पानी पीने का भरने का अधिकार मिलना चाहिए । यह हमारा समाजिक हक है । शासन करने का राजनीतिक अधिकार भी हमें मिलना चाहिए । हम कठोर सजा की चिनता नही करतीं । हम देश भर की जेलों को भर देंगें । हम लाठी-गोली खाएंगे । हमें हमारा हक चाहिए । योद्धा कभी अपनी जान की चिनता नहीं करता । गुलामी की जिनदगी से मृतयु बेहतर है । हम अपनी जान दे
देगें मगर अधिकार छीन कर रहेंगे । ( डॉ . आंबेडकर और महिला जागरण-डॉ कुसुम मेधवाल पृषठ 91 )
कालाराम मलनदर प्रवेश आनदोलन में रमाबाई आंबेडकर , सीताबाई , गीताबाई गायकवाड़ , रमाबाई गायकवाड़ , रमाबाई जाधव , तुलसी रामजीकाले की माताजी , अमृतराव शरण खाबें की माताजी सौ . ताराबाई , यमुना बाई , भिकूबाई , सुमना राव , ठकूबाई सालवे , सरूबाई भालेराव , फुंदाबाई धनाजी दाणी , गंगूबाई पगारे और अनेक अनाम-अज्ात औरतों ने भाग लिया । जिसमें अनततः डॉ . आंबेडकर और उनकी महिला साथियों की जीत हुई । 1930 में ही बाबा साहब ने नागपुर में अखिल भारतीय शेड्ू्ड कासट फेडरेशन की सिापना के साथ ही ‘ दलित महिला परिषद ’ भी आयोजित की । इस सभा में दस हजार से अधिक महिलाओं ने भाग लिया । इस सभा की अधयक्षा सुलोचना ठोगरे तथा सिगताधयक्ष कीर्ति पाटिल और मुखय सचिव इलनदरा पाटिल थी । यह सभा अतयनत सफल रही । नागपुर में 8 से 10 अगसत 1930 में अखिल भारतीय दलित कांग्ेस के प्रथम अधिवेशन में दलित महिलाओं का प्रतिनिधिति करते हुए जाईबाई चौधरी ने कहा ‘ लड़कियों को भी लड़कों के समान पढ़ने के पूरे-पूरे अवसर
उपलबध कराने चाहिए । एक लड़की की शिक्षा से से पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है । ’ कांग्ेस के इस पहले अधिवेशन के दौरान ही सगुणाबाई गावेकर की अधयक्षता में दलित महिला परिषद का आयोजन हुआ जिसमें दलित महिलाओं की शिक्षा पर विशेष जोर दिया गया । ( कुसुम मेघवाल भारतीय नारी के उद्धाराक डॉ . अमबेडकर पृषठ 91 से उद्धृत )
पहली और दूसरी गोलमेज सभा में पृथक निर्वाचन क्षेत् और पृथक प्रतिनिधिति के सवाल पर बाबा साहब ने दलित और दलितो हितों की जोरदार वकालत की । उस समय कांग्ेस व मीडिया द्ारा डॉ . आंबेडकर व दलित महिला- पुरूष कार्यकर्ताओं एवं पूरे दलित समाज के प्रति घृणा का वातावरण पैदा कर दिया गया था । परनतु उस घृणापरक और हिंसातमक माहौल में भी दलित महिलाएं डॉ . आंबेडकर के समर्थन में सभाएं करती रहीं । 14 अगसत 1931 को सर कौबबजी जहांगीर हाल में महिलाओं ने रांउड टेबल कांफ्ेस में भाग लेने के लिए डॉ . आंबेडकर के प्रसिान से पूर्व संधया पर एक विदाई समारोह आयोजित किया । एक वृद्ध महिला को संमबोवधत करते हुए डॉ . आंबेडकर ने कहा , ‘ यदि तुम अपनी गुलामी को समूल उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संक्प हो तथा उसके लिए सारी कठिनाईयां और मुसीबतें बरदाशत करने के लिए कटिबद्ध हो , तो इस जिममेदारी के कार्य में समर्थ होने पर जो भी श्ेय और सफलता प्रापत होगी वह सब तुमहारी होगी ।‘ ( सामाजिक नयाय के पुरसकता्ष डॉ . भीमरावआंबेडकर डॉ . ब्जलाल वर्मा पृषठ 202 ) बाबा साहब के गोलमेज सममेलन से वापस आने के बाद 1932 में कामठी में हुई परिषद में भी 200 से अधिक महिलाएं शामिल हुई । उस समय सौ . शाताबाई औगले और अंजनी बाई देशभ्रतार आदि दलित महिला नेताओं ने अपने जोरदार जोशीले भाषणों द्ारा गोलमेज परिषद में अमबेडकर के रोल को समर्थन दिया व उनकी भूरी-भूरी सराहना की । इसी अधिवेशन में कुमारी विरेनद्राबाई तीर्थकर को प्रानतीय महिला संगठन का सचिव बनाया गया । �
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