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पर केवल पुरूषों का ही अधिकार नही है , वह लसत्यों के लिए भी अति आवशयक है । यदि तुमहें आगे की पुशते सुधारनी है तो तुमहे लड़कों के साथ-साथ लड़कियों को भी शिक्षा देनी होगी । घर में पति अगर मरे हुए जानवर का मांस लाए तो उससे कहो कि ये सब मेरे घर में नही चलेगा । गले में इतनी वजनी मालाएं और हाथों में कोहनी तक के कड़े और कंगन यह सब तुमहें असपृशय करके पहचानने की निशानी है । ( धनंजय कीर की पुसतक डॉ . अमबेडकर – लाईफ एण्ड मिशन से ) इस ऐतिहासिक भाषण का दलित महिलाओं पर इतनी तीव्रता से असर हुआ कि उनहोनें उसी सभा में हाथ तक भरे कड़े , गले में बड़ी वजनी मालाएं उतार दी और सभा में उपलसित सौभागय सहसत् बुद्धे व रमाबाई अमबेडकर से दलित महिलाओं ने समाज की अनय वर्ग की महिलाओं की तरह साड़ी पहनना सीख लिया । डॉ . आंबेडकर द्ारा दलित लसत्यों को 1927 में दिए गए भाषण से दलित महिलाएं आतमविशिास से भर उठी । वे अब डॉ . आंबेडकर की प्रतयेक सभा में जोश-खरोश के शामिल होने लगी व डॉ . आंबेडकर भी प्रतयेक सभा के बाद दलित महिलाओं की सभा अलग से लेने लगे । वे दलित महिलाओं से बड़े पयार से बड़े भाई या स्ेह पूर्ण पिता की तरह बात करते थे । 1927 तक अमबेडकरवादी दलित महिला आनदोलन का मुखय मुद्ा शिक्षा , सफाई , संगठन और संघर्ष था ।
दलित महिलाओं की केवल अपने घरों में ही लसिवत खराब नही थी अपितु फैलकटयों और खेतों खलिहानो में तो उनको वर्कर तक नही माना जाता था । गर्भावसिा की हालत में उनहें नौकरी से निकाल दिया जाता था । उनको पूरा वेतन नही मिलता था । उनके काम के घंटे भी वनलशचत नहीं थे । 28 जुलाई 1928 को मुंबई विधान परिषद में कारखाना व अनय सरकारी / गैर सरकारी संसिानों में कार्यरत मजदूर महिलाओं के पक्ष में प्रसूति अवकाश सुविधा समबनधी बिल पर अपने सशकत विचार रखते हुए डॉ . आंबेडकर ने कहा कि ‘ महिलाओं को प्रसूति अवकाश व पूरा वेतन प्रापत करना राषटीय
हित में एक महतिपूर्ण कदम है । मैं इस बात से सहमत हूं की इससे शासन पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा लेकिन फिर भी मैं वेतन कटौती का पक्षधर नही हूं । यह महिलाओं का उनका अपना अधिकार है जिसकी प्रालपत उनहें होनी चाहिए । ’’ ( महिला आनदोलन में दलित महिलाओं का योगदान- मोहन दास नैमिश्ाय ) दलित महिला आनदोलन का सबसे महतिपूर्ण एवं सशकत पक्ष यह भी है कि दलित महिला आनदोलन समाजिक प्रश्नों को जितना महति देता है उतना ही महति आर्थिक और राजनैतिक सवालों को भी देता है । दलित महिलाओं ने अपने अलसमता संघर्ष के साथ मजदूर आनदोलन के संघर्ष और उनके मुद्ों को अपने आनदोलन का अहम हिससा बना लिया ।
1928 में ही मुंबई में महिला मंडल की सिापना भी की गई और इस महिला मंडल की प्रथम अधयक्षा डॉ . आंबेडकर की पत्ी रमाबाई को चुना गया । 1928 में बने महिला मंडल ने आगे चलकर दलित महिलाओं की सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक लसिवत संभालने व उसको आगे ले जाने की दिशा में अमू्य योगदान दिया । चावदार तालाब को सार्वजनिक रूप से खुलवाना , व पानी के प्रतीक के रूप में दलित अलसमता की लड़ाई को आगे बढ़ाने की कड़ी में
एक अनय महतिपूर्ण आनदोलन है दलित महिलाओं द्ारा चलाए गए पूना के पार्वती मलनदर में प्रवेश के लिए संघर्षपूर्ण सतयाग्ह । इस सतयाग्ह में दलित महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया । 12 अकटूबर 1929 को डॉ . आंबेडकर और दलित महिला नेता तानुबाई के नेतृति में जब हजारों दलित महिलाएं एक जुलूस की शकल में मलनदर प्रवेश करने लगी तो सिणवो ने इन पर लाठी-डंडों और पतिरों से हमला कर दिया , जिसमें अनेक दलित सत्ी पुरूष घायल हुए । इस आनदोलन में भाग लेने वाली दलित महिलाओं की संखया महाड़ सतयाग्ह से भी अधिक थी । पार्वती मलनदर के प्रवेश सतयाग्ह का नेतृति करने वाली तानुबाई आगे चलकर सुप्रसिद्ध दलित महिला नेता के रूप में विखयात हुईं ।
1930 से 1934 तक का काल बाबा साहब और दलित महिला आनदोलन के लिए उपललबध भरा काल कहा जा सकता है- इस कालावधि में कई अभूतपूर्व घटनाएं घटी । एक तरफ तो नासिक के कालाराम मलनदर प्रवेश का आनदोलन 2 मार्च 1930 से लेकर 1934 तक पूरे चार साल लगातार चला । इस आनदोलन में महाराषट , गुजरात , कर्नाटक और अनय राजयों व देश के विभिन्न भागों से 10 हजार से अधिक महिला
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