दलित
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नारी कल्ाण एवं स्वतंत्ता के समर्थक डॉ . आंबेडकर
जीवन के इस सबसे महतपूण्ष पहलू को चर्चा रहित छोड़ दिया जाता है । डॉ . आंबेडकर के समपूण्ष जीवन दर्शन पर बात करें तो यह अतिशयोलकत पूर्ण कथन नही माना जा सकता है कि सत्ी और दलित सत्ी उनके वयलकतति व उनके दर्शन का अमिट हिससा है और यह सत्ी चेतना उनके परिवार , उनके आसपास , व विदेश में किए उनके अधययन व तरह-तरह के आनदोलनों में जुड़ने से आई । निसनदेह उनके सत्ी दर्शन के विकसित होने का मूलाधार परिवार
अनिता भारती
‘
समाज ने कितनी प्रगति की है इसे मैं दलित सत्ी की प्रगति से तौलता हूं ,’ जैसी गंभीर और
विचारोत्ेजक व लसत्यों के घोर पक्ष में की गई
टिपपणी के टिपपणीकार डॉ . आंबेडकर द्ारा लसत्यों के पक्ष में किए गए कायथों का अकसर ऊपरी तौर पर दलित एवं गैर दलित साहितयकारों द्ारा केवल वर्णन मात् कर दिया जाता है , परनतु उनमें यह गंभीर सत्ी चेतना कहां से आई उनके
की महिलाओं की उनके उपर पड़ने वाली अमिट छाप भी है ।
डॉ . आंबेडकर जब विदेश में पढ़ने गए तो वहां के सितनत् जीवन में उनहोनें लसत्यों को चहुंमुखी विकास करते देखा तब उनहे समझ में
30 vxLr 2023