eMag_Aug 2023_DA | Page 20

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चुनावी विकास में दलितों का

डॉ . जस सिमरन कहल

राजनीतिक प्रतिनिधित्व

ऐ सा कहा जाता है कि यदि हम अपनी

गलतियों से सीखें और शोषणकर्ताओं को
अपना धैर्य और आशा न छीनने दें तो ही हम प्रगति की राह पर चल सकते है । यह बाबा साहब डॉ . आंबेडकर की वनभटीकता थी कि उनहोंने पूना पैकट त्ासदी के बाद भी वासतविक राजनीतिक प्रतिनिधिति के लिए भरसक प्रयास किए । डॉ आंबेडकर ने अपने पूरे जीवन में खुले तौर पर पूना पैकट की निंदा कयों की और कांग्ेस द्ारा किए गए सयुंकत निर्वाचन प्रणाली के बदले में उनहोंने कया विक्प सुझाए ? इस पर विचार किया ही जाना चाहिए । ‘ द चमचा युग-द ऐज ऑफ द सटूज ’ पुसतक जो कि दलित नेता कांशी राम जी द्ारा लिखी शायद एकमात् पुसतक है , उनके द्ारा पूना समझौते की वर्षगांठ ( 24 सितमबर ) के दिन ही 1972 में प्रकाशित हुई । हम उनके विचारों का विवेचन करने का भी प्रयास करेंगे । यरवडा जेल में गांधी की अनैतिक भूख हड़ताल को ऐतिहासिक गलती बताकर उसकी आलोचना करते हुए , जिसे दलित िगवो पर मजबूरन थोपा गया था , बाबासाहब ने अगले ही दिन ‘ अछूत दुखी थे ’ बयान के साथ कड़ी निनदा की । उनके पास दुखी होने का हर कारण था । वासति में , वह उन सभी में सबसे अधिक दुखी थे ।
बाबासाहव को ज्द ही यह अहसास हो गया कि पूना समझौते के तहत शुरू किए गए दो चरणों के चुनाव सैद्धांतिक रूप से दलित िगवो को छद्म प्रतिनिधिति की और लेकर जाएंगे । पूना समझौते के कुछ माह के भीतर ही , उनहोंने गांधी को ‘ एकल चुनाव ’ के विक्प का प्रसताि दिया , जहां जीतने वाले दलित वर्ग के उममीदवार
को अपने ही समुदाय से 25 प्रतिशत वोट मिलने चाहिएं , ऐसी बात थी । गांधी ने इस प्रसताि को खारिज कर दिया और 1937 और 1946 के चुनावों में , इस विक्प को खारिज करने के परिणामसिरूप , बाबा साहब के सैद्धांतिक भय को सतय पाया गया । इस के बाद , संविधान सभा
को प्रसतुत किए एक बयान में , उनहोंने बार-बार अपनी लसिवत दोहराई कि केवल अलग / सितंत् मतदाता ही अछूतों का वासतविक प्रतिनिधिति सुवनलशचत कर सकते है ।
पूना समझौते के बाद से 90 िरथों के चुनावी विकास में दलितों का राजनीतिक प्रतिनिधिति
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