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डॉ . आंबेडकर की वैचारिक विरासत का हकदार है संघ

सुजीत शर्मा

साहब भीमराव राम जी आंबेडकर वर्तमान सदी के बाबा

सर्वाधिक चर्चित एवं प्रासंगिक भारतीय विचारकों में से एक हैं । समय-समय पर विभिन्न संगठनों और दलों ने अपनी सुविधानुसार डॉ . आंबेडकर के विचारों का राजनीतिक उपयोग भी किया है । यह भी कोशिश होती रही है कि बाबासाहेब जैसे विशाल वयलकतति के सिामी को सिर्फ ‘ दलित ’ वर्ग के नायक के तौर पर सिावपत कर दिया जाए । पूिा्षग्ह से ग्वसत बुद्धिजीवी और दलित समाज के कुछ सिघोषित ठेकेदार तो सियं को बाबा साहब के विचारों का असली वारिस बताते हुए अनय संगठनों या दलों को बाबा साहब के विचारों के प्रबल विरोधी के रूप मे सिावपत करने तक की कोशिश मे लगे रहते हैं । राषट्ीय सियंसेवक संघ और डॉ . आंबेडकर के मधय भी कुछ ऐसा ही सिावपत करने का प्रयत् किया गया ।
बुद्धिजीविता का सवट्डवफ़केट बनाने वाली वामपंथी कंपनी ने तो राषट्ीय सियंसेवक संघ को डॉ . आंबेडकर के विचारों का दुशमन तक घोषित कर दिया । जबकि सच्ाई इसके वब्कुल विपरीत है । राषट्ीय सियंसेवक संघ ( आरएसएस ) का मानना है कि डॉ . आंबेडकर को किसी भी वैचारिक चँहरदीवारी में बांधना उचित नही है । उनके विचार सर्व समाज के लिये उपयोगी है । संघ डॉ . आंबेडकर को समाज सुधारक के साथ-साथ एक बहुआयामी वयलकतति का राषट्िादी विचारक , विधिवेत्ा , अर्थशासत्ी और संघ से प्रभावित एक सियंसेवक मानता है । इस वर्ष जब हम डॉ . आंबेडकर जयनती मना रहें हैं तो , दुनिया के सबसे बडे सामाजिक /
सांसकृवतक संगठन संघ और डॉ . आंबेडकर की वैचारिक सामयता को उद्धृत करना आवशयक है । तथयों के विशलेरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कुछ विषयों पर मतभेद के वावजूद भी डॉ . आंबेडकर और संघ के विचार एक दूसरे के पूरक हैं । संघ डॉ . आंबेडकर के सिद्धांतों को समाज मे सिावपत कर रहा है ।
बाबा साहब बा्यकाल से ही ततकालीन समाज मे वयापत असपृशयता एवं जाति वयिसिा की कुरीति के खिलाफ थे । वे जाति से मुकत अविभाजित हिनदू समाज की बात करते थे । उनका मानना था कि जाति वयिसिा ही हिनदू समाज की सबसे बड़ी दुशमन है । जिसका उ्लेख उनहोने अपनी पुसतक “ फिलोसोफी ऑफ़ हिंदुजम ” में किया है । वहीं दूसरी तरफ 1942 ईसिी से ही संघ हिंदुओं में अंतरजातीय विवाह का पक्षधर रहा है और हिंदुओं की
एकजुटता को लेकर प्रयासरत है । संघ का यह सपषट मत है कि असपृशयता दूर हो और शोषितों और वंचितों को समानता का अधिकार मिले । संघ समाज मे अपने अनेक कार्यक्रमों के माधयम से जाति वयिसिा के उनमूलन के लिये प्रयासरत है । संघ की संगठनातमक संरचना से लेकर वयािहारिक जीवन तक जाति का कोई उ्लेख नही होता है । भोजन की पंलकत मे बैठे सियंसेवक को यह नही ज्ात होता की उसके बगल बैठे सियंसेवक की जाति कया है ।
संघ की शाखाओं में सियंसेवकों को उनकी ऊंचाई के क्रम मे कतारबद्ध किया जाता है , जाति या वर्ग के क्रम मे नही । संघ 40 के दशक से ही प्रतयेक गांव में “ एक मंदिर , एक कुआं और एक शमशान ” की अवधारणा पर जोर देता रहा है । हाल ही मे सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने वकतवय में इसे संघ की प्रतिबद्धता
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