करार दिया । डॉ . आंबेडकर सियं 1949 में पुणे में आरएसएस के एक कार्यक्रम में शामिल हुए और यह जानकर आशचय्षचकित थे कि आरएसएस में एक-दूसरे की जाति पूछना वर्जित था । यही बात महातमा गांधी ने भी 1932 में वर्धा में संघ की एक शाखा के दौरे के बाद आरएसएस के संसिापक केबी हेडगेवार को
बताया था । गांधीजी भी एक हिंदू संगठन में एक दूसरे की जाति नहीं पूछने की इस अनूठी संसकृवत से प्रभावित हुए थे ।
ततकालीन केंद्रीय कानून मंत्ी के रूप में , डॉ . आंबेडकर समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और जममू-कशमीर में अनुचछेद 370 को लागू करने का विरोध कर रहे थे । डॉ . आंबेडकर ने शेख अबदु्ला से कहा कि “ आप चाहते हैं कि भारत आपकी सीमाओं की रक्षा करे , उसे आपके क्षेत् में सड़कों का निर्माण करना चाहिए , उसे आपको खाद्ान्न की आपूर्ति करनी चाहिए , और कशमीर को भारत के बराबर होना चाहिए , लेकिन भारत सरकार की केवल सीमित शलकतयां होनी चाहिए और भारतीय लोगों को कशमीर में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए । इस प्रसताि को सहमति देना , भारत के हितों के खिलाफ एक विशिासघाती बात होगी और मैं , भारत के
कानून मंत्ी के रूप में , ऐसा कभी नहीं करूंगा ।“ दूसरी तरफ शुरुआत से ही संघ अनुचछेद-370 का विरोधी रहा है ।
इस दिशा मे संघ ने जममू-कशमीर के भारत मे विलय के लिये हरसंभव प्रयास किया था । ततकालीन गृह मनत्ी सरदार पटेल के आग्ह पर ततकालीन सरसंघचालक गोलवरकर जी ने अकतूबर 1947 मे राजा हरि सिंह से मुलाकात कर जममू-कशमीर के भारत मे विलय की बात भी की । अनुचछेद-370 के विरोध मे ही शयामा प्रसाद मुखजटी ने नेहरु मंवत्मंडल से इसतीफा देकर जन संघ की सिापना की , जो आगे चलकर भाजपा के रूप मे सामने आयी । “ एक निशान , एक विधान और एक प्रधान ” के संक्प पर कार्य करते हुये मुखजटी ने अपना सिवोच् बलिदान दिया । 1967 में , गोलवलकर ने संघ के मुखपत् ऑर्गनाइ्र को दिए एक साक्षातकार में यह बात दोहराई , “ कशमीर को रखने का केवल एक ही तरीका है-और वह है पूर्ण एकीकरण । अनुचछेद-370 जाना चाहिए ; अलग झंडा और अलग संविधान भी जाना चाहिए । तब से लेकर अनुचछेद-370 के उनमूलन तक संघ अपनी इस मांग पर अडिग रहा । आज जब भारत सरकार ने अनुचछेद-370 को समापत कर जममू-कशमीर का भारत मे पूर्ण एकीकरण किया तो यह संघ के एक सपने के साकार होने जैसा था , जिसके पीछे संघ का एक बहुत बड़ा आनदोलन , लमबी रणनीति एवं समर्पण भाव था ।
डॉ . आंबेडकर ने मुलसलम समाज मे फैली कट्टरता और विशेष रूप से पाकिसतान के समर्थक रवैये के बारे में बहुत मजबूत विचार रखे थे । उनका हमेशा यह मानना था कि राषट् धर्म से पहले होता है । इसलिये सियं के विषय मे उनका प्रसिद्ध वाकय है कि “ हम सबसे पहले और अनत मे भारतीय हैं ”। मुलसलम समुदाय पर उनके विचार “ थाटस ऑन पाकिसतान ” और “ पार्टिशन ऑफ़ इंडिया ” मे मिलते हैं । जहां वह लिखते हैं कि “ मुसलमानों को किसी भी संघर्ष में गैर-मुसलमानों का पक्ष नहीं लेने का इसलामी निषेध , इसलाम का आधार है । यह भारत में मुसलमानों को यह कहने के लिए प्रेरित करता
है कि वह मुलसलम पहले हैं , भारतीय बाद में । यह भावना है , जो बताती है कि भारतीय मुलसलम ने भारत की उन्नति में इतना छोटा हिससा कयों लिया है , इसलावमक कट्टरता कभी भी एक सच्े मुसलमान को भारत को अपनाने की अनुमति नहीं दे सकती है ।
एक चेतावनी के रूप मे उनहोने कहा कि “ अगर भारतीय मुलसलम अपने आपको देश की धरती से जोड़ नहीं सका और मुलसलम साम्ाजय सिावपत करने के लिए विदेशी मुसलमान देशों की ओर सहायता के लिए देखने लगा , तो इस देश की सितंत्ता पुन : खतरे में पड़ जाएगी ।“ इन दो पुसतकों में वयकत की गई मुलसलमों की उनकी धारणा लगभग सावरकर के साथ मेल खाती है , जिनकी पुसतक “ हिंदुति ” पर आरएसएस का दर्शन काफी हद तक आधारित है । जाहिर है , डॉ . आंबेडकर ने जिस भाषा का इसतेमाल किया है वह आरएसएस की तुलना में तीखी कही जा सकती है ।
इन प्रमुख मुद्ों के अतिरिकत भी संविधान मे पंथनिरपेक्ष शबद के प्रयोग , वामपंथी विचारधारा के भारत विरोधी एजेण्डे , संसकृत भाषा को राजभाषा बनाने जैसे अनेक विषयों पर डॉ . आंबेडकर और संघ के विचार ना सिर्फ समान हैं , बल्क एक दूसरे के पूरक भी हैं । यही वजह थी कि डॉ . आंबेडकर 1940 से ही संघ के समपक्फ मे थे । वह संघ के कायथों से बहुत प्रभावित थे । संघ के वरिषठ नेता एवं सिदेशी जागरण मंच के संसिापक दात्ोपंत ठेंगडी से उनका विशेष लगाव था , जिनसे वे समय समय पर अनेक सामाजिक मुद्ोँ एवं संघ की कार्यपद्धति पर विमर्श किया करते थे । एक तरफ अपने राजनीतिक हितों की वजह से अनेक दलों और संगठनों मे संघ और डॉ . आंबेडकर को एक-दूसरे का विरोधी साबित करने की होड़ सी लगी हुई है । दूसरी तरफ संघ निरंतर समाज मे समानता , समरसता , एकता और राषट्ीयता जैसे विचारों को सिावपत करने के कार्य मे लगा हुआ है । संघ का काम करने का अपना एक “ धीरे-धीरे ज्दी चलो ” का तरीका है । जिसके माधयम से वह एकीकृत हिनदू राषट् की सिापना मे निरत है । �
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