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पशचात् मेरा शव ले जाने वालों में ब्ाहमणों सहित वयापारी , धेड , डोम सभी जाति के लोग हों । इन लोगों के द्ारा दहन किये जाने पर ही मेरी आतमा को शांति मिलेगी ।”
अखिल हिनदू-समाज में बंधुति-भाव के जागरण हेतु वह सार्वजानिक पयाऊ और मंदिर जाति बंधन से मुकत हों इसे जरुरी समझते थे । यहां तक कि बेटी-बंदी का वयिहार समापत करने तक के सारे कार्यकमथों को उनका समर्थन प्रापत था । इसलिए जब 7 अकटूबर , 1945 को महाराषट् में एक अंतर्जातीय विवाह हुआ तो जिन मानयिरों नें वर बधू को शुभाशीर्वाद भेजे उनमें वीर सावरकर भी थे ; अनय थे महातमा गांधी , जगदगुरु श्ीशंकराचार्य , रा . सि . सेवक संघ के गुरु गोलवलकर , अमृतलाल ठककर आदि । समाजिक समरसता को लेकर सावरकर द्ारा कितने गंभीर प्रयास किये जा रहें हैं बाबा साहब को इसकी पूरी जानकारी थी , आगे चलकर जिसको उनहोंने
वयकत भी किया । हुआ यूँ कि जब रत्ावगरी के पेठ किले में भागोजी सेठ कीर द्ारा मंदिर बनवाया गया तो उसका उद्धघाटन करने के लिए सावरकर नें बाबा साहब आंबेडकर को आग्हपूर्वक निमंत्ण भेजा । आंबेडकरजी नें इस निमंत्ण पत् का उत्र देते हुए लिखा- ‘ पूर्व नियोजित कार्य के कारण मेरा आना संभव नहीं ; पर आप समाज सुधार के क्षेत् में कार्य कर रहें हें , इस विषय की अनुकूल अभिप्राय देने का अवसर मिल गया है । असपृशयता नषट होने मात् से असपृशय वर्ग हिनदू समाज का अभिन्न अंग नहीं बन पायेगा । चातुर्वर्ययं का उच्ाटन होना चाहिए । ये कहते हुए मुझे अतयवधक प्रसन्नता हो रही है कि आप उन गिने-चुने लोगों में से एक हैं , जिनहें इसकी आवशयकता अनुभव हुई है ।’
( सन्दर्भ : ‘ डॉ आंबेडकर और सामाजिक कांजि की यात्ा ’, ्दंत्तोपंत ठेंगड़ी , अनुवा्दक श्ीधर पराड़कर )
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