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उनहें वीर सावरकर ने यह सनदेश भेजा- “ वयक् तिति , विद्ता , संगठनचातुर्य व नेतृति करने की क्षमता के कारण आंबेडकर आज देश के बड़े आधार बनते , परनतु असपृशयता का उच्ाटन करने तथा असपृशय वर्ग में आतमविशिास व चेतनय निर्माण करने में उनहोंने जो सफलता प्रापत की है , उससे उनहोंने भारत की बहुमू्य सेवा की है । उनका कार्य चिरंतनसिरूप का , सिदेशाभिमानी व मानवतावादी है । आंबेडकर जैसे महान वयलकत का जनम तथाकथित असपृशय जाति में हुआ है , यह बात असपृशयों में वयापत निराशा को समापत करेगी एवं वह लोग बाबासाहब के जीवन से तथाकथित सपृशयों के वर्चसि को आह्ाहन देने वाली सफूवत्ष प्रापत करेंगे । डॉ . आंबेडकर के वयलकति के कार्य के बारे में पूरा आदर रखते हुए मैं उनकी दीर्घायु व सिसि जीवन की कामना करता हूँ ।” सावरकर हों चाहे आंबेडकर , दोनों ही के किए गए कायथों का लक्य एक ही ऊंच नीच के भेद
को समापत करने का था । सावरकर की दृलषट में हिनदू संगठन व सामथय्ष के लिए जरुरी था कि असपृशयता नषट हो । बाबासाहब का मत था कि जातिभेद अशासत्ीय व आमानुषिक है , इसलिये नषट होना चाहिये । इसके परिणामसिरुप सिाभाविक रूप से हिनदू संगठन हो जायेगा । वैसे हिनदू समाज के संगठन को बाबासाहब कितना जरुरी मानते थे , ये उनके इस कथन से सपषट हो जाता है- “ हिनदू संगठन राषट्- कार्य है . वह सिराज से भी अधिक महति का है । सिराज के रक्षण से भी अधिक महति का सिराज के हिनदुओं का संरक्षण है । हिनदुओं में सामर्थ् नहीं होगा , तो सिराज का रूपांतरण दासता में हो जायेगा ।” 23 जनवरी , 1924 को सावरकर की प्रेरणा से हिनदू महासभा की सिापना हुई , ब तीन प्रसताि पारित हुए , जिसमें से एक असपृशयता के निवारण को लेकर आनदोलन चलने के समबनध में था । इस आनदोलन को जन-आनदोलन बनाने के उद्ेशय से इसकी
शुरुवात सावरकर ने सियं से की और अनेक प्रकार की गतिविधियाँ चलाते हुए लोगों के समक्ष उदहारण प्रसतुत किए I उनकी पहल पर होने वाले सामूहिक भजन , सर्वजाति- सहभोज , पतितपावन मंदिर के निर्माण ; रत्ावगरी के बिट्ठल मंदिर में असपृशयों के प्रवेश को लेकर आनदोलन- जेसे अनेक कामों नें असपृशय-समाज को बड़ा प्रभावित किया । एक बार असपृशय समाज के आग्ह पर सावरकर का अपनी जनमसिली , भगुर , जाना हुआ । बड़े ही स्ेह से बसती की बहनों नें उनकी आरती उतारकर उनहें राखी बांधी ; और बाद में सभी जाति के लोगों नें एक दूसरे को बांधकर भेदभाव दूर कर एक होने की प्रतिज्ा करी । असपृशयता के प्रति उनकी भावना की अनुभूति करना हो तो 4 सितमबर , 1924 को नासिक की वा्मीवक ( सफाई कर्मियों ) बसती में हुए गणेशोतसि में उनहोंने जो कहा वो जरुर देखना चाहिये- “ असपृशयता नषट हुई इसे अपनी आँखों से देखना चाहता हूँ । मेरी मृतयु के
12 vxLr 2023