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धञानममिक आस्थञा कञा कें द्र भी है धजिञा पहाड़
क्ेत् का मुआ्यना करने पर देखा जा सकता है कि धजवा पहाड सिर्फ पतररों का अंबार नहीं है , बसलक कृषि के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है । पहाड से बिलकुल सर्ा लरकोरर्या आहर ( जलाश्य ) है , जो तीन तरफ से तालाब की तरह बांध से घिरा है , जबकि एक तरफ खुला है । बरसात के दिनों में पहाड से आकर पानी का ्यहां पर जमाव होता है और इस जलाश्य से ही आसपास की सभी जमीन सिंचित होती है । पहाड की गोद से ही सूसूआं नदी बहती है , जिसमें साल भर पानी बहता रहता है । सुसुआं नदी पर सिंचाई के उद्ेश्य से दो सरकारी बांध भी बने हुए हैं । नदी के निरंतर प्रवाह से आसपास के सभी किसानों के लगभग हजारों एकड जमीन पर लगी फसल मोर्र पंप के माध्यम से सिंचित
होती है । ग्ामीण बताते हैं कि पहाड की चोर्ी पर भगवान बजरंगबली का देवसरान है , जिस पर धिज फहराता रहता है , जिससे आसपास के गांव के हजारों ग्ामीणों की आसरा जुडी हुई है । लोगों का मानना है कि हमारे पुरखों के द्ारा चोर्ी पर ससरत धार्मिक सरल पर लगे धिज की वजह से ही इस पहाड नाम धजवा पहाड पडा था ।
पलञामू की वर्तमञाि स्स्थक्त
आनदोलनकारी ्युगल पाल कहते हैं कि “ पलामू की वर्तमान ससरवत पर नजर डालें तो पता चलता है कि जंगल मावफ्या एवं पहाड मावफ्या की नजर हमेशा से ्यहां के जंगलों एवं पहाडों पर रही है , और उनहोंने लगातार ्यहां के जंगलों में पहाडों का अवैध खनन वक्या है ।” वे बताते हैं कि “ हरिहरगंज एवं छतरपुर इलाके के दर्जनों पहाड अब खंडहर
में तबदील हो चुके हैं । इसकी वजह से अब वहां पर जल स्ोत हजारों फुर् नीचे चला ग्या है , जिससे मई और जून के महीनों में लोग वहां पानी खरीदने को मजबूर हैं । लगभग 50 % इलाका बंजर हो चुका है ।” वे आगे कहते हैं कि “ कुछ वर्ष पहले की ससरवत पर नजर डालेंगे तो तब पलामू जंगलों एवं पहाडों के लिए मशहूर था । सलई और बॉस के पेड के लिए प्रवसधि पलामू का जंगल अब बंजर भूमि में तबदील हो चुका है । जिस तरह से मावफ्या अभी पहाडों को चबाने को आतुर हैं उसी तरह कागज बनाने वाली डालवम्या कूंपनी ने हमारे जंगलों से सारे सलई और बांस के पेड को उखाड कर करोडों रुपए का कारोबार वक्या और पलामू की धरती को जंगल विहीन कर वद्या ।”
जञागरूक एवं सजग रहने की है जरूरत
आनदोलन में शामिल पलामू के माले नेता सरफराज आलम कहते हैं कि “ पहाड एवं जंगल मावफ्याओं की लूर् की बीती घर्नाओं से सबक लेते हुए हमें सीख लेने की जरूरत है । हमें आम नागरिकों को जल , जंगल , पहाड एवं प्या्थिरण के प्रति जागरूक करते हुए पहाडों और जंगलों को किसी भी कीमत पर सुरवक्त रखना होगा और इसके लिए लोकतांवत्क तरीके से विरोध करना होगा ।” वहीं आंदोलन में शामिल सीपीआईएमएल ( रेड स्टार ) के राज्य सचिव कामरेड वशिषठ तिवारी बताते हैं कि “ धजवा पहाड के अलावा जिले में 8 ऐसे और भी पहाड हैं , जिनपर पतरर मावफ्याओं की नजर है । इसी आलोक में इन मावफ्याओं की मिलीभगत से खनन विभाग ने उन पहाडों को लीज पर देने के लिए सरानी्य आंचलिक अधिकारर्यों को सिवे करने का वनदवेश वद्या है । मतलब जिले को पहाड विहीन बनाने का कुचक् प्रशासन व मावफ्याओं की मिलीभगत से तै्यार वक्या जा रहा है , जिसका विरोध भी हमें संवैधानिक एवं लोकतांवत्क तरीके से करना होगा ।” �
vizSy 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 41