eMag_April2022_DA | Page 40

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करते हैं । इस आंदोलन में मुख्य भूमिका के रूप में लगभग 500 परिवार , जिसमें बरवाही गांव के लगभग 300 पिछडे वर्ग के परिवार , 100 दलित वर्ग के परिवार एवं 100 मुससलम वर्ग के परिवार शामिल हैं , जो अपनी एकजुर्ता का परिच्य देते हुए धजवा पहाड को बचाने की मुहिम में आंदोलनरत हैं । आंदोलन के समर्थन में पांडू , विश्ामपुर व उंर्ारी रोड के लगभग सभी गांव के ग्ामीण भी अपनी हिससेदारी निभा रहे हैं ।
पहाड़ों कञा अवैध उत्खनन जञारी
बता दें कि धजवा पहाड के बिलकुल बगल में ही शिवाल्या नामक कूंपनी ने अपना क्ेशर प्लांट लगा्या है , जिसमें पतरर तोडने का काम होता है । ्यह धरनासरल से मात् 50 मीर्र की दूरी पर है , ्या ्यूं कहें कि क्ेशर से 50 मीर्र की ही दूरी पर आनदोलनकारी धरना दे रहे हैं । धरनासरल तक आने के लिए ककूर्मु पंचा्यत के ही ककूर्मु मोड आना पडता है , जहां से धरनासरल मात् 500 मीर्र दूर है , वहीं धरनासरल से मात् 500 मीर्र की दूरी पर है बरवाही गांव , और इस गांव का जीवन-आधार है धजवा पहाड । प्लांट के लगते ही कूंपनी के संवेदक सूरज सिंह ने अपने कवम्थ्यों की मदद से पूरे जोशो-खरोश के साथ धजवा पहाड का खनन का्य्थ शुरू कर वद्या । पहाड का खनन होते देख ग्ामीणों ने संवेदक से जानना चाहा कि वे किस कागजी आधार पर पहाड का खनन कर रहे हैं ? तो उनहोंने इसके दसतािेज दिखाने से साफ-साफ इंकार कर वद्या । ग्ामीणों ने आरर्ीआई से जानकारी निकाली , तो पता चला कि संवेदक को धजवा पहाड में खनन का कोई लीज नहीं मिला है , बसलक पहाड से बिलकुल सर्े बरवाही गांव के किसानों की फसल लगी हुई जमीन ( खाता संख्या 174 प्लॉट संख्या 1046 ) का एग्ीमेंर् है , जिसकी कोई भी खबर किसानों को नहीं थी और न ही उस भूमि पर किसी भी तरह का पतरर है । बसलक वहां पर अभी भी गेहूं और सरसों जैसी फसले लगी हुई हैं । इसके ठीक विपरीत संवेदक के द्ारा खाता
संख्या 206 प्लॉट संख्या 1048 में ससरत धजवा पहाड का खनन का्य्थ वक्या जा रहा है , जो कि बिलकुल अवैध है । धजवा पहाड के अवैध खनन को रोकने के लिए ग्ामीणों ने जब प्रखंड प्रशासन सहित जिला प्रशासन से गुहार लगाई , तो निराशा ही हाथ लगी । इस पर ग्ामीण अवैध खनन को रोकने के लिए 18 नवंबर को पहाड की तलहर्ी में ही धरने पर बैठ गए और आज तक बैठे हुए हैं ।
ग्रामीणों की आजीक्िकञा से जुड़ा है धजिञा पहाड़
बरवाही गांव के निवासी ्युवा रौशन कुमार पाल , पिता- अखिलेश पाल बी . र्ेक ( सिविल इंजीवन्यर ) पास हैं , और वर्तमान में एन . आर . कूंसट्कशन वलवमर्ेड में का्य्थरत हैं , बताते हैं “ पहाड के अससतति विहीन हो जाने से आसपास
के सभी आहर तो बेकार हो ही जाएंगे , साथ ही साथ सुसुआं नदी का अससतति भी हमेशा के लिए वमर् जाएगा । जिसके परिणामसिरूप किसानों की कृषि ्योग्य भूमि बंजर हो जाएगी । कृषि आधारित जीविका वाले आसपास के सैकडों किसानों का जीवन मुसशकल में पड जाएगा । जल-स्ोत सैकडों फीर् नीचे चला जाएगा , जिससे पीने ्योग्य पानी भी मिलना दूभर हो जा्येगा ।” वे आगे कहते हैं “ पहाड के र्ूर्ते ही मवेवश्यों का चरागाह भी नहीं बचेगा । मवेवश्यों का जीवन भी मुसशकल में पड जाएगा । पहाड पर कई तरह के पेड- पौधे हैं , जिससे वातावरण अनुककूवलत बना रहता है । पहाड खनन की ससरवत में अमूल्य पेड पौधे भी उखाड दिए जा्येंगे , जिससे हम शुधि वातावरण से भी वंचित हो जाएंगे । प्लांट के चालू होने एवं पहाड के खनन होने की ससरवत में वातावरण में अत्यधिक मात्ा में प्रदूषण फैलेगा जिससे कई बीमारर्यां जनम लेंगी ।”
40 दलित आं दोलन पत्रिका vizSy 2022