eMag_April2022_DA | Page 30

fjiksVZ

प्रतिरोध हम तक नहीं पहुंच पाते हैं । क्योंकि इनके कथ्य बिखरे हुए , असंगठित व छिपे हुए अरणों वाले होते हैं । इस अदृश्य प्रभाव को नापने के र्ूल अभी भी कम हैं । महिलाएं भी ऐसे सीमांत समुदा्य के एक बडे हिससे का निर्माण करती हैं । इनकी बढ़ती हिससेदारी इनके वोवर्ंग प्रतिशत में दिखती है । निश्चय ही गोलबंदी तो हुई । पर मुद्े शा्यद अलग लेंस से देखे जा सकेंगे । जिन मुद्ों को तूल वद्या ग्या वह शा्यद उन वासतविक मुद्ों से काफी अलग और उलर् थे जिनके आधार पर मतदाताओं ने अपना वोर् वद्या । ्यानी ना तो विपक् की ओर से उठाए गए मुद्ों से जनता सहमत हो सकी और ना ही जनता के असली मुद्ों को पहचानने में विपक् काम्याब हो सका । अलबत्ा मुख्य विपक्ी सपा का जोर जाती्य गणित और समीकरण दुरूसत करने पर रहा जबकि उसने ना तो एक अलग वर्ग के तौर पर भाजपा के पक् में लामबंद हुए लाभारटी वर्ग को पहचाना और ना ही महिलाओं की लामबंदी को तोडने के लिए उसकी ओर से कुछ वक्या जा सका ।
परंपरञा से हटकर रहञा मतदञातञाओं कञा रूख भाजपा का फोकस सपष्ट था और उसने
अपने हिसाब से चुनावी विमर्श को दिशा देने के लिए हर चरण में जो कदम उठाए उसका लाभ पार्टी को सपष्ट तौर पर मिला । वासति में देखा जाए तो जितनी विवेचना होगी उतना ही परिणाम के अलग — अलग कारण सामने आएंगे । इसकी सबसे बडी वजह ्यह है कि ' वोर् तो ओर् में होता है '। सुरक्ा एक बडा चुनावी मुद्ा बना । कमजोर व सीमांत वर्ग अपनी सुरक्ा को लेकर सशंकित दिखा । बहुत सारे दलित वर्ग के लोगों में अपनी सुरक्ा को लेकर भ्य दिखा । वे भाजपा से असंतुष्ट थे सरकार से उनकी ढेर सारी अपेक्ाएं थीं , पर उनकी स्मृतियों में सपा के शासनकाल में हुए अत्याचार आज भी ताजा हैं । उनके लिए वनण्थ्य कठिन था । वह भी ऐसे दौर में , जबकि मा्यावती का प्रचार कमजोर था , बसपा चुनावी विमर्श से बाहर थी । बसपा का गैर जार्ि वोर् का सरानांतरण भाजपा की ओर हुआ । इसका बडा कारण था उनका अपने को वृहत्र हिनदू अससमता में देखना और मुसलमानों के सपा के ध्ुिीकरण के खिलाफ गोलबंदी । ्ये ऐसे अंडरकरंर् थे जिनहें समझना कठिन था । एक विमर्श जो बाद में चर्चा आ्या था , वह है लाभारटी चेतना । जिसकी बात प्रोफेसर बद्रीनारा्यण बार-बार कर रहे थे । पर इसका
वोर् के रूप में बदलना एक बडा प्रश्न था । फीलड के दौरान हमारी र्ीम के सदस्य लगातार ग्ामीण जनता , विशेषकर महिलाएं व दलित , से सरकार से मिलने वाले कैश व फ्ी राशन की बात कर रहे थे । पर ्ये बहुत ही फ्ैगमेन्टेड नैरेवर्ि था । जिसे पकड पाना थोडा कठिन था । क्योंकि उनकी बातों में उनकी शिका्यतें अधिक प्रभावी थीं । कुछ महिलाएं ' जेकर खाई उही के गाई ' जैसे कथन कह रही थीं , धीमी , क्ीण आवाज में । पर लाभारटी चेतना ने न सिर्फ उनहें गोलबंद वक्या , बसलक आगे भी ऐसे लाभ मिलने की आकांक्ा ने उनहें भाजपा की ओर बढ़ाने का काम वक्या ।
बडी जीत के सञार आई अधिक जिम्ेदञारी
उत्र प्रदेश की आबादी के एक बडे हिससे , जो कि गांवों में रहता है , की आंकाक्ाएं , उनकी परिभाषाएं , उनके कथन की डिकोडिंग ही हमें सही परिदृश्य दिखा सकती थी । इन नतीजों ने हमारे लेंस पर प्रश्न खडा वक्या है । क्योंकि हमें देखना होगा कि किसान , मजदूर , छात् के पास भी हिनदू मन है , जाती्य अससमता है । इन बहुल अससमताओं की उपससरवत में अंतिम रूप में कौन-सी अससमता प्रभावी होती है इसका पूर्वानुमान कठिन है । अब चुनाव नतीजों के बाद अपने पक् में लामबंद इन वंचित समुदा्यों की भागीदारी सुवनसशचत करना भाजपा के लिए एक चुनौती है । अभी तक उच् जावत्यों की पार्टी की छवि वाली भाजपा के लिए छोर्े समुदा्यों की दबी-कुचली आवाजें सुनना , उनहें आदर देना कठिन चुनौती होगी । हालांकि इस दिशा में भाजपा की ओर से ठोस पहलकदमी की गई है और सरकार के गठन में सर्वसमाज को समुचित हिससेदारी देने में कोई कसर नहीं छोडी गई है । ्यहां तक कि अनुसूचित समाज को भी मंवत्मंडल में दस सीर्ें दी गई हैं । लेकिन ्यह शुरूआत के तौर पर तो सही , प्या्थपत नहीं है । ्यही संतुलन संगठन के पुनर्गठन में दिखना अपेवक्त है और सरकार की नीवत्यों पर भी इसका असर दिखना आवश्यक है । �
30 दलित आं दोलन पत्रिका vizSy 2022