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गई थी । चुनाव के दौरान जमीन पर ्ये मुद्ा अदृश्य ही रहा । भाजपा के लिए किसान आंदोलन एक और बडी चुनौती बना । अधिकतर विशलेषकों का मानना था कि ्ये मुद्ा भाजपा की हार का कारण बनेगा । लेकिन प्रधानमंत्ी ने कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के साथ किसानों से माफी मांग ली और आश्चर्यजनक रूप से ्यह मुद्ा उत्र प्रदेश चुनाव , ्यहां तक कि पसशचमी उत्र प्रदेश के परिणामों को भी बहुत अधिक प्रभावित न कर सका । ऐसा ही एक महत्िपूर्ण मुद्ा जो कि सरकार के पक् में गोलबंदी के लिए अनुमानित था - राममंदिर , काशी विशिनाथ और मथुरा । लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ्ये मुद्े भाजपा के चुनावी विमर्श से बस हिनदू मन को छू कर गुजर गए । रही सही कसर ऐन मतदान से पूर्व हिजाब के उस विवाद ने पूरी कर दी जिसने भाजपा विरोधी माने जानेवाले मुससलम मतदाताओं को जागरूक और लामबंद करने में कोई कसर नहीं छोडी । ्यहां तक कि जाती्य
गतिण और समीकरण भी भाजपा के खिलाफ ही बताए जा रहे थे और जाति की राजनीति करने वाले ज्यंत चौधरी और ओमप्रकाश राजभर से लेकर सोनेलाल पर्ेल के आधे परिवार को ही नहीं बसलक सिामी प्रसाद मौ्य्थ को भी सपा ने अपने पाले में लाकर खडा कर वल्या था और परंपरागत वोर् बैंक को अभेद् बनाने के लिए नाराज शिवपाल ्यादव को परिवार का सममान बचाने के नाम पर साथ में ले वल्या ग्या था । ्यहां तक कि कांग्ेस ने भी हर सीर् पर ऐसे उममीदवार उतारे जिससे सपा को नुकसान ना हो ।
जमीन की नब्ज पर पकड
विपक् का मानना था कि जिन मुद्ों को भाजपा की ओर से हवा दी जाएगी उन मसलों को चुनावी विमर्श के केनद्र में आने का मौका ही नहीं मिला । ्यहां तक कि हर चरण के चुनाव के साथ भाजपा ने उस इलाके के जमीनी मुद्ों को केनद्र में रखा
जबकि विपक् समग्ता में ही बचाव करता नजर आ्या । ्यानि ना तो विपक् ठोस सवालों पर भाजपा को घेरने में काम्याब हो सका और ना ही भाजपा की ओर से त्य किए मुदृों पर अपनी सपष्ट रा्य से मतदाताओं को सहमत करने में सफल हो पा्या । चुनावी विमर्श का हिससा न बनने में केवल सरकार के लिए नकारातमक परिणाम देने वाले मुद्े ही जमीन से नहीं गा्यब हुए । बसलक ऐसे मुद्े भी गा्यब रहे , विपक् जिनके काउंर्र नैरेवर्ि तै्यार कर रहा था । विपक् को पूरा विशिास था कि ्ये सरकार इन मुद्ों को अपने पक् में गोलबंदी के लिए जनता के बीच ले आएगी । और वे अपने काउंर्र नैरेवर्ि से भाजपा को धिसत करेंगे । भाजपा ने उनहें ्यह मौका ही नहीं वद्या । महंगाई , बेरोजगारी जैसे मुद्े पूरे चुनावी विमर्श को प्रभावित करते हुए दिखे । लोगों में नाराजगी थी महंगाई व बेरोजगारी के लेकर । ्युवाओं में असंतोष दिखा । पर ्ये असंतोष भी वोर् के रूप में परिणत नहीं हुआ । पर ्यह कहना जलदबाजी होगी कि धर्म का मुद्ा जमीन से गा्यब रहा । हिनदुति मोबिलाइजेशन का र्ूल नहीं बना । ्या लोक के गुससे का असर , वह चाहे किसान आंदोलन को लेकर रहा , ्या बेरोजगारी ्या सरकारी भवत्थ्यों में तकनीकी खावम्यों के कारण हुई देरी , कोई प्रभाव नहीं छोड पा्या ।
अनदेखे को देखने और अनसुने को सुनने की जरूरत
सतही तौर पर देखा जाए तो वासति में इस बात की एक गहन पडताल करनी होगी जहां इतने सारे दृश्य विरोध व असंतोष के मौजूद थे , पर चुनाव परिणामों पर इसका अपेवक्त असर नहीं दिखा । इसका एक बडा कारण है कि हमें हमेशा प्रभावी कथ्य , तेज आवाजें , प्रतिरोध ही दिखता है और इसी के आधार पर हम नतीजों की कलपना करते हैं । पर ढेर सारे अदृश्य तथ्य , खामोशी , छिपे हुए प्रतिरोध हमारी दृष्टि से छूर् जाते है । उत्र प्रदेश जैसे राज्य में जहां एक बडी जनसंख्या आज भी विभिन्न सामाजिक कारणों से सीमांत है , उसकी आकांक्ाएं , आवाज ,
vizSy 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 29