को नेशनल को-आर्डिनेर्र घोषित कर वद्या । ऐसा इस लिए वक्या ग्या क्योंकि मा्यावती को चुनाव नतीजों के खराब होने का पूर्वानुमान था और परिणाम घोषित होने के बाद ऐसा करने को लेकर हो-हलला होने का डर था । पार्टी में इनके इलावा सबसे प्रभावशाली नेता सतीश चंद्र वमश् महासचिव के पद पर है जोकि मा्यावती के सबसे बड़े विशिास पात् हैं ।
सुधञार की उम्ीद बेकञार
उपरोकत विवरण से सपष्ट है कि चुनावों में बसपा के पतन के लिए पार्टी नेतृति खास करके मा्यावती जिममेदार है जिसकी पार्टी पर बहुत मजबूत पकड़ है । ऐसे में क्या ्यह संभव है कि पार्टी में नेतृति परिवर्तन की मांग उठाने की हिममत कोई अन्य पदाधिकारी कर सकता है । क्या बसपा के समर्थक पार्टी में नेतृति परिवर्तन की माँग उठाने की जुर्रत दिखा सकते हैं ? ्यह भी एक सच है कि बसपा के अंदर मा्यावती के अंध भकतों और चार्ुकारों की एक बड़ी फौज है जो मा्यावती के नेतृति पर सवाल उठाने वालों के विरुधि लामबंद हो जाते हैं । वे मा्यावती के नेतृति में कोई भी कमी देखने तथा उस पर उंगली उठाने के लिए तै्यार नहीं हैं । इससे ्यह निषकष्थ निकलता है कि वर्तमान परिस्थितियों में बसपा में नेतृति परिवर्तन की कोई संभावना दिखाई नहीं देती है ।
दलित क्िरोधी नीक्त और नीयत
अब अगर बसपा की नीवत्यों , एजेंडा एवं का्य्थप्रणाली को देखा जाए तो वह किसी भी तरह से दलित पक्षीय नहीं रही है । आज तक मा्यावती का कोई भी दलित एजेंडा सामने नहीं आ्या है । उसका मुख्य एजंडा केवल सत्ा प्रासपत और उसका अपने हित में उपभोग करना ही रहा है । मा्यावती ने कभी भी दलितों के प्रमुख मुद्े जैसे भूमिहीनता , बेरोजगारी , उतपीडन , शिक्ा एवं सिासर्य सेवाएं आदि को अपना राजनीतिक एजेंडा नहीं बना्या है । इसी का दुषपरिणाम है कि उसके चार वार के मुख्यमंत्ी काल में दलितों की ससरवत में कोई
परिवर्तन नहीं आ्या है सिवाए भावनातमक संतुष्टि के । इसके विपरीत मा्यावती के कई का्य्थ ऐसे रहे हैं जो घोर दलित विरोधी थे । उदाहरण के लिए मा्यावती ने 1997 में एससी / एसर्ी एक्ट को ्यह कह कर लागू करने पर रोक लगा दी थी कि इसका दुरुप्योग हो सकता है , इससे न तो दलित उतपीडन करने वालों को सजा ही मिली और न ही दलितों को दे्य मुआवजा ही मिला । बाद में 2002 में दलित संगठनों द्ारा उकत आदेश को हाई कोर््ट के आदेश से रद् करवा्या ग्या । मा्यावती का ्यह कृत्य घोर दलित विरोधी एवं अहितकारी रहा । इसी प्रकार 2008 में भी मा्यावती द्ारा वनाधिकार कानून को लागू करने में घोर दलित / आदिवासी विरोधी रवै्या अपना्या ग्या । उनके भूमि के 81 % दावे रद् कर दिए गए जिसके कारण आज भी उनके ऊपर बेदखली की तलवार लर्क रही है । इसी प्रकार 2007 में मा्यावती ने कुछ स्कूलों में दलित रसोइ्यों द्ारा मध्यानह भोजन बनाने का विरोध करने पर दलित रसोइ्यों की वन्युसकत के आदेश को ही वापस ले वल्या था । इसके बाद भी आज तक मा्यावती की नीवत्यों में कोई परिवर्तन नहीं आ्या है और न ही उसमें किसी परिवर्तन की आशा ही दिखाई देती है । आज भी उसका ध्ये्य ्येन-केन-प्रकारेण सत्ा प्रापत करना ही है । इससे सपष्ट है कि दलित एजंडाविहीनता एवं दलित विरोधी नीवत्यों के लिए मा्यावती ही सीधे तौर पर जिममेदार है ।
दलित की , यञा दौलत की बेटी ?
्यह भी सर्वविदित है कि पूि्थितटी सरकारों की तरह मा्यावती के शासन काल में भ्रष्टाचार न केवल जारी रहा बसलक बढ़ा भी । मा्यावती का व्यसकतगत भ्रष्टाचार भी किसी से छुपा हुआ नहीं है । दलित विरोवध्यों तथा अपरावध्यों को विधानसभा तथा लोकसभा के वर्कर् बोली लगा कर बेचना और दलितों का वोर् दिला कर उनहें जिताना किसी से छुपा नहीं हैं । मा्यावती ने दलितों को उनहीं गुंडों / बदमाशों को वोर् देने के लिए कहा जिनसे उनकी लड़ाई
थी । इस प्रकार दलितों में अपने दोसत और दुशमन का भेद वमर् ग्या और वे आँख बंद करके मा्यावती के आदेश का पालन करते रहे । इस प्रकार दलितों का मुसकत संघर्ष अपने रासते से हर् ग्या और वे मा्यावती के खरीदे हुए गुलाम बन कर रह गए । ्यह भी सर्वविदित है कि वर्तमान में मा्यावती मूवत्थ्यों / समारकों में पतरर घोर्ाला , एनआरएचएम घोर्ाला तथा 21 गन्ना मिलें बेचने का घोर्ाला आदि में बुरी तरह से फूंसी हुई है जिसकी जांच सीबीआई तथा ईडी कर रही है । इसके अतिरिकत मा्यावती का अपना भाई काले धन का फजटी कूंपवन्यों में निवेश तथा मनी- लांडरिंग के मामले में फूंसा हुआ है । ईडी मा्यावती के भाई का 400 करोड़ जबत भी कर चुकी है । सीबीआई तथा ईडी के डर से मा्यावती दबाव में रहती है । ऐसी परिससरवत में मा्यावती से ईमानदार राजनीति की उममीद करना बिलकुल संभव नहीं है जिसकी दलितों को बहुत जरूरत है ।
दलितों को देखनी होगी आगे की रञाह
उपरोकत संवक्पत विवरण से सपष्ट है कि वर्तमान परिस्थितियों में बसपा के नेतृति को बदलना बिलकुल संभव नहीं है क्योंकि ्यह मा्यावती की पॉकेर् की पार्टी बन चुकी है । इस सम्य न तो पार्टी के अंदर और न ही बाहर से ही मा्यावती के नेतृति को कोई चुनौती दी जा सकती है । पार्टी के अब तक के का्य्थकलाप से ्यह भी सपष्ट है कि पार्टी की नीवत्यों में भी किसी प्रकार के परिवर्तन की कोई संभावना भी दिखाई नहीं देती है । ऐसे में एक ही विकलप बचता है और वह है मा्यावती की राजनीतिक गुलामी से मुकत हो कर नए राजनीतिक विकलप का निर्माण करना । वह विकलप ्लोबल फ़ाईनेनस विरोधी , कापवोरेर्ीकरण विरोधी , कृषि विकास , रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने , मजदूर हितैषी , लोकतंत् का रक्क , समान गुणवत्ा वाली शिक्ा , सिासर्य सेवाएं तथा शांति एवं पड़ोसी देशों से वमत्तापूर्ण संबंध बनाने वाला होना चाहिए । �
vizSy 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 17