गया है । कई सार्वजनिक संस्थान का नाम उनके सममान में उनके नाम पर रखा गया है । डाॅ आंबेडकर ने बचपन से ही अछूत होने का दर्द भोगा थिा , कदम कदम पर उनहें उनकी जाति के कारण अपमान सहना ्ड़ता थिा । वह नहीं चाहते थिे कि इस तरह के तिर्कार इस समुदाय के लोगों के साथि हो । वह चाहते थिे कि सभी को एक इंसान के तौर पर देखा जाये । ना केवल दलितों के उत्थान बकलक हर वंचित तबकों जैसे महिलाओं , को भी उनका अधिकार और बराबरी दिलाने के लिये सतत संघर्षशील रहे । वे एक प्रगतिशील व मानवीय समाज की कल्ना करते थिे । डॉ आंबेडकर ने कहा थिा कि मुझे अचछा नही लगता जब कुछ लोग कहते हैं हम पहले भारतीय हैं बाद में हिन्दू या मुसलमान , मुझे यह ्वीकार नही है । धर्म , संस्कृति , भाषा आदि की प्रसत््धा्ण सनष््ा के साथि रहते हुये भारतीयता के प्रति सनष््ा नहीं पनप सकती । मैं चाहता हपूं कि लोग पहले भी भारतीय हों और अंत तक भारतीय रहे , भारतीय के अलावा कुछ नहीं । विडमबना यह है कि जिन डा . भीमराव अमबेडकर ने अपना ्पूरा जीवन दलित , महिलाओं , वंचित तबकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए बीता दिया और संविधान में इनके हक के लिए
1990 में उन्ें मरणोपरांत भारत के सववोच्च नार्हरक सम्ान भारत रत्न से सम्ाजनत किया र्या है । कई सार्वजनिक संस्ान का नाम उनके सम्ान में उनके नाम पर रखा र्या है । डाॅ आंबेडकर ने बचपन से ही अछू त होने का दर्द भोर्ा था , कदम कदम पर उन्ें उनकी जाति के कारण अपमान सहना पड़ता था । वह नहीं चाहते थे कि इस तरह के तिरस्ार इस समुदाय के लोर्हों के साथ हो । वह चाहते थे कि सभी को एक इंसान के तौर पर देखा जाये , ना के वल दलितहों के उत्ान बल्कि हर वंचित तबकहों जैसे महिलाओं , को भी उनका अधिकार और बराबरी दिलाने के लिये सतत संघर्षशील रहे ।
उनहोनें मंत्रिमंडल से इ्तीफा दे दिया । 1952 में वह राजय सभा के सद्य मनोनित हुए और अपनी मृतयु यानी 6 दिसंबर 1956 ( महापरिनिर्वाण ) तक वे इस सदन के सद्य रहे । अपने जीवनकाल के अंतिम समय में डॉ आंबेडकर बौद धर्म के प्रति आकर्षित हुए और 1955 में उनहोंने भारतीय
बुद महासभा या बौद सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना की । 14 अ्टूबर 1956 को नागपुर में उनहोंने ्वयं और उनके समथि्णकों के साथि बौद् धर्म ग्हण किया ।
1990 में उनहें मरणोपरांत भारत के सववोच् नागरिक सममान भारत रत्न से सममासनत किया
प्रावधान किये , वह आज केवल दलित के ही नेता बनकर रह गए हैं । आज आ्यकता है कि उनके विचारों को समझने और उस पर अमल करने की । उनके दिये हुए सनदेश ‘ सशसक्त बनो , संगठित रहो , संघर्ष करो ’ को आतमसात करने की है । �
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