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बातें तो करती थिी लेकिन जाति वयवस्था के उन्मूलन को लेकर कोई बात नही होती थिी , दलों का समाज में वयापत इस कुरुति के प्रति रवैया उदासीन ही रहाI तब अंमबेडकर साहब ने 8 अग्त , 1930 को एक सममेलन के दौरान कहा थिा कि हमें अपना रा्ता ्वयँ बनाना होगा और राजनीतिक शक्त शोषितों की सम्याओं का निवारण नहीं हो सकती , उनका उदार समाज में उनका उचित स्थान पाने मे निहित है । उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा , उनको सशसक्त होना चाहिए ।
डॉ आंबेडकर धीरे धीरे दलित समुदाय के नेता के रुप में उभरने लगे , उनके प्रति इस समुदाय का जन समथि्णन को देखते हुए 1931 में लंदन में हुए दपूसरे गोलमेज सममेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया । जहां उनहोंने अछूतों को पृथिक निर्वाचिका देने की बात उठाई और सममेलन में इस पर बहुत बहसबाजी हुई । तब 1932 में सरिटिश सरकार ने अछूतों को पृथिक निर्वाचिका देने की घोषणा की । लेकिन गांधीजी ने इसका विरोध किया और वे उस समय पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में बंद थिे । वही उनहोंने आमरण अनशन शुरु कर दिया । भारी दबाव के चलते डॉ आंबेडकर को पृथिक निर्वाचिका की मांग वापस लेनी ्ड़ी । लेकिन इसके बदले अछूतों को सीटों के आरक्र , मंदिरों में प्रवेश , ्पूजा का अधिकार एवं छूआ-छूत खतम करने की बात मान ली गयी । 1936 में अमबेडकर ने ्वतंत्र लेबर पाटटी की स्थापना की जिसने 1937 में हुए केनद्रीय विधान सभा के चुनावों मे 15 सीटें जीती थिी ।
वे रक्ा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद के लिए श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे । इसी साल उनहोंने अपनी पु्तक ‘ जाति के विनाश ’ प्रकाशित की जो उनके न्यूयॉर्क मे लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थिी । अपनी पु्तक शुद्र कौन थिे ? के द्ारा हिंदपू जाति वयवस्था के बारे में लिखा है और इस वयवस्था में सबसे नीचे रिम में स्थित शुद्रों के बारे में वयाखया की है । अपने जीविन काल में उनहोंने विभिन्न विषयों पर अनेकों किताबें लिखी हैं जो
आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्ोत है ।
भारत की ्वतंत्रता के बाद डॉ आंबेडकर को कानपून मंत्री बनाया गया , 29 अग्त 1947 को उनहें ्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए गठित संविधान मसौदा समिति के अधयक् पद पर नियु्त किया गया । देश के संविधान में सभी नागरिकों को संवैधानिक गारंटी के साथि साथि सभी नागरिकों को ्वतंत्रतायें जैसे धार्मिक ्वतंत्रता , अस्ृ्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानपूनी करार दिया गया । डॉ आंबेडकर ने महिलाओं के लिए वया्क आसथि्णक और सामाजिक अधिकारों की , अनुसपूसचत जाति और अनुसपूसचत जनजाति के लिए नौकरियों में आरक्र प्रणाली की वकालत की । 26 नवमबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया । इस अवसर पर डॉ
आंबेडकर ने कहा कि मैं महसपूस करता हपूं कि संविधान , साधय है , यह लचीला है पर साथि ही यह इतना मजबपूत भी है कि देश को शांति और युद दोनों के समय जोड़ कर रख सके । वा्तव में , मैं कह सकता हपूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब थिा बकलक इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधर्म थिा ।
आधुनिक भारत के महानतम समाज सुधारक डाॅ आंबेडकर ने महिलाओं की स्थिति सुधारने और उनके प्रति होने वाले अतयाचार को रोकने के लिए 1951 में हिन्दू कोड बिल के मसौदे में उत्राधिकार , विवाह और अथि्णवयवस्था के कानपूनों में लैंगिक समानता को शामिल करने की मांग की थिी । लेकिन इसको लेकर संसद में बहुत बहस हुई और इसे पास नहीं होने दिया , जिसके चलते
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