डॉ आंबेडकर का सरनेम सकपाल थिा जिसे बाद में हटा कर अपने गुरु महादेव आंबेडकर के आंबेडकर को जोड़ लिया । इनहें बाबा साहब भी कहा जाता थिा । बाद में उनका परिवार मुमबई आ गया । वहां वह सरकारी हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र थिे । वहां भी उनके साथि भेदभाव होता रहा । 1907 में मैट्रिक परीक्ा पास करने के बाद उनहोंने कालेज की पढ़ाई के लिए बंबई सव्वसवद्ालय में प्रवेश लिया और देश में कालेज में प्रवेश लेने
डॉ आंबेडकर ने बहिष्कृ त हितकारिणी सभा की स्ापना की थी , जिसका प्रमुख उद्ेश्य दलित वर्गों में शिक्ा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्ान के लिये काम करना था । उन्होंने आंदोलनहों के माध्यम से अछू तहों को सार्वजनिक पेयजल से पानी लेने , हिंदू मंदिरहों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया । उन्होंने इसके लिए महाड सत्ाग्रह किया ।
वाले पहले दलित बन गये । इनकी योगयता देख कर बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय ने अमेरिका में उच् अधययन के लिये इनहें वजीफा दिया । उनहोंने राजनीति विज्ान और अथि्णशा्त्र में अपनी डिग्ी प्रापत की । 1916 में उनके शोध के लिए पी . एच . डी . से सममासनत किया गया । इस शोध को उनहोंने पु्तक ‘ इवोलयुशन ऑफ़ प्रोविनिशअल फाइनेंस इन सरिटिश इंडिया ’ के रूप में प्रकाशित किया । उनहोंने आगे चल कर वकालत की पढ़ाई की और सरिटिश
बार में बैरर्टर के रूप में प्रवेश पाया ।
दलित अधिकारों को लेकर उनहोंने कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया और संगठन भी बनाये , जिनके मुखय उद्े्य दलितों के राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक ्वतंत्रता की वकालत करना थिा । बाबा साहब ने 1920 में बंबई में सापतासहक मपूकनायक का प्रकाशन किया । बाबासाहब आंबेडकर ने अपना सारा जीवन हिंदपू धर्म में बनायी चतुवर्ण प्रणाली और जाति वयवस्था के विरुद संघर्ष में बिता दिया । वे चतुवर्ण वयवस्था के खिलाफ थिे । इसे वे शोषणकारी मानते थिे । उनहोंने दलितों और अनय धार्मिक समुदायों के लिये पृथिक निर्वाचिका और आरक्र की मांग की थिी । बाबा साहब शिक्ा को हमेशा प्रमुखता देते थिे , उनका मानना थिा कि शिक्ा ही दलितों पर होने वाले अतयाचार का तोड़ है । इसीलिए उनहोंने नारा दिया थिा
‘ सशसक्त बनो , संगठित रहो , संघर्ष करो । डॉ आंबेडकर ने बसहष्ककृत हितकारिणी सभा की स्थापना की थिी , जिसका प्रमुख उद्े्य दलित वगषों में शिक्ा का प्रसार और उनके सामाजिक आसथि्णक उत्थान के लिये काम करना थिा । उनहोंने आंदोलनों के माधयम से अछूतों को सार्वजनिक पेयजल से पानी लेने , हिंदपू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया । उनहोंने इसके लिए महाड सतयाग्ह किया ।
डॉ आंबेडकर 1926 में बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सद्य बने , सन 1927 में उनहोनें छुआछूत के खिलाफ एक वया्क आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया , इसी साल उनहोंने अपनी दपूसरी पत्रिका बसहष्ककृत भारत भी शुरू की । वह राजनीतिक दलों के जाति वयवस्था को खतम करने के प्रति उदासीनता को लेकर खिन्न थिे , ये दल देश की आजादी की
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