eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 42

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संविधान सभा में आरषिण

कुशाल चनद्र रैगर

संविधान में एक धारा-10 है , जिसमें अनुसपूसचत जाति , भारतीय

जनजाति को नौकरियों में आरक्र का प्रावधान किया गया है । आरक्र की इस लडाई में जब भारत के संविधान का निर्माण हो रहा थिा , तब सभा में एक वोट की कमी से आरक्र प्र्ताव पारित नही हो सका । उस समय डॉ आंबेडकर के सामने एक गंभीर सम्या उत्न्न हो गई कि अनुसपूसचत जाति व अनुसपूसचत जनजाति को आरक्र कैसे दिया जाए ? इस कानपूनी लडाई को जीतने के लिए उनहोने नये ढंग से इसकी शुरूआत की ।
इसके लिए उनहोंने अनुसपूसचत जाति व अनुसपूसचत जनजाति श्द के स्थान पर पिछडा वर्ग श्द का उपयोग किया , जिसका अनेक सद्यों ने विरोध किया । इस आरक्र का प्रावधान करने में कई उप समितियां बनाई गई , जिसमें एक सलाहकार समिति भी थिी । संविधान सभा में आरक्र पर बहस में शामिल होते हुए प्रोफेसर के . टी . शाह ने कहा कि नौकरियों में यदि आरक्र नही होगा , तो भतटी करने वाले अफसर अपने इचछानुसार ्क््ात करेगा , ऐसी स्थिति में अफसर योगयता नहीं देखता है । वह केवल स्वार्थ देखता है । श्री चकनद्रकाराम ने कहा कि सद्यगण आप सभी जानते है कि आरक्र का मुदा सलाहकार कमेटी में विचार किया गया थिा , किनतु वह एक वोट की कमी के कारण रद् हो गया अन्यथा अनुसपूसचत जाति के लिए आरक्र का प्रावधान कानपूनी बाधयता के अनतग्णत आ जाता । सेठ दामोदर ्वरूप के विरोध पर उनहोंने कहा कि वह चाहते है कि जनसंखया के सभी समुदायों का प्रतिनिधितव होना चाहिए , वही इस धारा में पिछडा वर्ग की भलाई के प्रावधान पर ्यों आ्सत् कर रहे है ? श्री मुन्नी्वामी पिछले ने कहा कि अनुसपूसचत
जाति के लोगों का मामला सामप्रदायिकता के आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए ।
श्री सानतनपू कुमार दास ने कहा कि अनुसपूसचत जाति के लोग परीक्ा में बैठते है , उनका नाम सपूची में आ जाता है , लेकिन जब पदों पर नियुक्त का समय आता है , तो उनकी नियुक्त नहीं होती हैI ऐसा इसलिए होता है कि उच्वर्ग के लोग जो नियु्त होते है , उनकी जबद्ण्त सिफारिश होती है , जो उनकी नियुक्त में सहायक होती है , ऐसी स्थिति में लोक सेवा आयोग का बना रहने का हमारे लिए अथि्ण नही है । सेठ दामोदर ्वरूप जो कि समाजवादी थिे , उनहोंने आरक्र का बहुत विरोध किया और कहा कि पिछडे वर्ग के लिए सेवाओं में आरक्र का अथि्ण दक्ता और अचछी सरकार को नकारना है । इसे लोक सेवा
आयोग के फैसले पर छोड देना चाहिए । श्री एच . जे . खाणडेकर ने कहा कि अनुसपूसचत जाति के लोग अचछी योगयता होने के बावजपूद नियुक्त के अचछे अवसर नहीं पाते है और उनके साथि जातिगत आधार पर भेदभाव किया जाता है ।
अनत मे बहस पर जवाब देते हुए डॉ आंबेडकर ने कहा कि मेरे मित्र श्री टी . टी . ककृष्रामाचारी ने प्रारूप समिति पर ताना मारा है कि समभवतः प्रारूप समिति अपने कुछ सद्यों का स्वार्थ देखती रही है , इसलिए संविधान बनाने के बजाए , वकीलों के वैभव की कोई चीज बना दी है । वा्तव में , श्री टी . टी . ककृष्रामाचारी से ्पूछना चाहपूंगा कि ्या वे उदाहरण देकर बता सकते है कि दुनिया के संविधानों में से कौन सा संविधान वकीलों के लिए वैभव की बात नहीं
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