और नियंत्रण के लिए सार्वजनिक सेवा आयोग स्थापित किए जाएं । गोलमेज सममेलन मे डॉ आंबेडकर ने जो भाषण दिए व अपनी मांगें रखीं , भारत मे उनकी प्रसतसरिया होने लगी । इसके ््चात् ही सरकार ने पुलिस विभाग में दलित वगषों के लिए भतटी खोल दी ।
दलितों के धमाांतरण को लेकर डॉ आंबेडकर और गांधीजी के बीच तो तीखा मतभेद थिा उसके मपूल में थिी इन दोनों महापुरूषों की अपनी-अपनी प्राथिसमक प्रतिबदताओं की पार््रिक टकराहट । गांधी जी हिंदपू धर्म में रहकर जातिगत भेदभाव मिटाना चाहते थिे पर वर्ण वयवस्था खतम नहीं करना चाहते थिे । वे जाति वयवस्था को पारंपरिक वयवस्था और कार्य ्दसत से जोड़ कर देखते थिे । गांधी जी चाहे ्वयं को सं्पूर्ण भारत का प्रतिनिधि कहते थिे किंतु आंबेडकर उनहें दलितों का प्रतिनिधि मानने के लिए तैयार नहीं थिे । वह उनहें शंकराचार्य के बाद दपूसरा सबसे बड़ा हिंदपू हित रक्क बताते थिे और आगे चलकर दलितों के पृथिक निर्वाचन क्ेत्रों के मुद्े पर डॉ आंबेडकर ही सही साबित हुए ्योंकि गांधी जी अछूतों को किसी भी कीमत पर भी हिंदपू धर्म में पृथिक
निर्वाचन क्ेत्रों के रूप में किसी प्रकार का विभाजन नहीं देख सकते थिे । ऐसा लगता है कि गांधी जी के लिए दलितों का हित दपूसरे स्थान पर थिा । उनकी पहली प्राथिसमकता थिी हिंदपू धर्म को तथिाकसथित सर्वनाश से बचाना जबकि अंबेडकर अपना पहला दायितव दलितों का कलयार और उत्थान चाहते थिे । उनहें हिंदपू धर्म की वर्ण . वयवस्था को खतम करना थिा जोकि सामाजिक असमानता का मपूल कारण है ।
डॉ आंबेडकर हिंदपू जाति वयवस्था द्ारा दलितों पर लादे अलगाव को और हीन भावना से दलितों को छुटकारा दिलवाने का एक मात्र रा्ता धर्म परिवर्तन को पाते थिे । बशततें कि अपनाया जाने वाला नया धर्म दलितों के साथि हिंदपू धर्म में जारी तमाम प्रकार के बहिष्कार , बेरूखी और पूर्वाग्रहों से मु्त हो । पुरूष सत्ातमक समाज ने सबसे जयादा कठोर , उत्ीड़नकारी , शोषणकारी और अनयाय्पूर्ण रहा है ्योंकि यह नारी को सभी मपूलभपूत अधिकारों से वंचित कर उसे नारकीय जीवन जीने पर मजबपूर करता है , जबकि आयषों के समाज में ्त्री और शपूद्रों को एक ही स्थिति में रखा जाता थिा । शिक्ा के
अधिकार से भी उनहें वंचित रखा जाता थिा ।
परिवर्तनवादी समाज वयवस्था के प्रणेता डॉ आंबेडकर ने देश का क़ानपून मंत्री रहते हुए ्त्री शिक्ा और समान अधिकार को समाज में स्थापित करने के लिए विधिवत हर संभव प्रयास किया । वह नारी शिक्ा , ्वतंत्रता , समानता तथिा अस्मता के प्रबल समथि्णक थिे । डॉ आंबेडकर का मानना थिा कि शिक्ा ही प्रगति और उन्नति का मार्ग खोल सकती है । वह भारतीय क्त्रयों की सामाजिक , आसथि्णक और राजनैतिक स्थिति में परिवर्तन चाहते थिे । साथि ही वह एक ऐसा क़ानपून बनाना चाहते थिे जो क्त्रयों की सामाजिक , आसथि्णक और कानपूनी स्थिति में आमपूलचपूल परिवर्तन कर सके । इसलिए उनहोंने क्त्रयों के अधिकार के लिए हिन्दू कोड बिल बनाया , जिसके कारण कई बार उनहें वयक्तगत रूप से अपमानित भी होना पड़ा ।
हिन्दू कोड बिल के तहत किसी भी जाति की लड़की या लड़के का विवाह होना अवैध नहीं थिा । इस कोड के अनुसार पति और पत्नी एक समय में एक ही विवाह कर सकते है । कोई भी पति पहली पत्नी के और कोई भी पत्नी पहले पति के रहते दपूसरा विवाह अगर करे तो दंडनीय अपराध माना जाएगाI पति के गुजर जाने पर पत्नी को उसकी सं्सत् में संतान के बराबर सह्सा मिलेगा तथिा पिता की सं्सत् में पुत्रियों को भी पुत्रों के समान अधिकार दिया जाएगा । वर्तमान समय में महिलाओं को पुरूषों के समान जो शैक्सरक , आसथि्णक , सामाजिक और सम्त अधिकार प्रापत हैं । इसका श्रेय हिन्दू कोड बिल को जाता है ्योंकि बाद में हिन्दू कोड बिल कई सह्सों में बंटकर संसद में धीरे . धीरे पारित होने लगा । इस बिल के कई प्रावधानों को संसद में दपूसरी सरकारों ने पास कराकर अपना वोट बैंक बनाया । सदियों से जिस अधिकार से क्त्रयां अछूती थिीं , उससे संविधान ने ही अवगत कराया । नारी ्वतंत्रता , अस्मता और सममान के लिए बाबा साहेब आंबेडकर ने संविधान में कई प्रावधानों को सुनिश्चत किया और यह डॉ आंबेडकर की ही देन है कि भारतीय क़ानपून का प्रारूप बदला और उसमें मानवीयता प्रसार हो पाया । �
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