eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 36

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किसी अछूत समुदाय से आने वाले युवक के लिये यह बहुत बड़ी उपलब्ध थिी ।
उस मौके पर मराठी लेखक और समाज सुधारक दादा ककृष्राजी ने भीम राव के पु्तक प्रेम को देखते हुए उनहें गौतम बुद पर आधारित मराठी पु्तक गौतम बुद का जीवन की प्रति भेंट की । निसंदेह युवा आंबेडकर पर बुद का गहरा प्रभाव पड़ा । उनहोंने पाली की किताबें उनहीं दिनों ्ढ़ डाली थिीं । उन दिनों बौद धर्म सामाजिक अधिक थिा , धार्मिक कम । डॉ आंबेडकर कबीर , रैदास , दादपू , नानक , चोखामेला , सहजोबाई आदि से प्रेरित हुए । आधुनिक युग में जयोसतबा फुले , सावित्री बाई फुले , रामा्वामी नायकर पेरियार , नारायण गुरु , छ्त्रपति शाहपूजी महाराज , गोविनद रानाडे आदि ने सामाजिक नयाय को मजबपूती के साथि स्थापित करने में महत्वपूर्ण भपूसमका निभाई । डॉ . आंबेडकर ने कबीर और जयोसतबा फुले को अपना गुरु बताया और अपनी सुप्रससद पु्तक ' हपू वेयर दी शुद्राज ' फुले जी को समर्पित किया । अपने समर्पण में 10 अ्टूवर 1946 को उनहोंने लिखा कि जिनहोंने हिन्दू समाज की छोटी जातियों से लेकर उच् वरषों के प्रति उनकी गुलामी की भावना के समबनध में जागृत किया । विदेशी शासन से मुक्त पाने में सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना अधिक महत्वपूर्ण है । इस सिदांत की स्थापना जयोसतराव फुले ने की । डॉ आंबेडकर यह मानते थिे कि फुले के जीवन दर्शन से प्रेरणा लेकर ही वंचित समाज मुक्त पा सकता है ।
डॉ आंबेडकर ने विभिन्न देशों के संविधान का अधययन करने के बाद लोकतंत्र की मजबपूती के लिए एक ऐसे संविधान का निर्माण किया , जिसमें समाज के सभी लोगों को अधिकार दिए गए । वे केवल दलितों , आदिवासियों या पिछड़ों के मसीहा नहीं हैं । बाबा साहब का सं्पूर्ण जीवन गरीबों तथिा भारतीय समाज विशेषकर हाशिए में जी रहे शोषित वर्ग , ्त्री , अनुसपूसचत जाति , अनुसपूसचत जनजाति तथिा पिछड़ा वर्ग के उत्थान , कलयार और विकास के लिए समर्पित थिा । डॉ आंबेडकर की सामाजिक और राजनीतिक सुधार की विरासत का आधुनिक भारत पर गहरा प्रभाव
पड़ा है । बाबा साहब ने जीवन के विभिन्न क्ेत्रों में आज भारत की सोच को प्रभावित किया है । उनकी सोच आज की सामाजिक , आसथि्णक नीतियों , शिक्ाएं कानपून तथिा सकारातमक कार्यवाही के माधयम से प्रदर्शित होती है । भारत के भावी भविष्य के लिए शासन , प्रणाली व संविधान के बारे में रूपरेखा तय करने के उद्े्य से सरिटिश ने साइमन कमीशन की सिफारिश पर गोलमेज सममेलन आयोजित किया । यह सममेलन लंदन में 12 नवंबर 1930 को शुरू हुआ । इस सममेलन से सरिटिश सरकार और भारतवासियों के 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया । डॉ आंबेडकर ने इसमें अछूत लोगों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया ।
यह एक ऐसा समागम थिा , जिसमें मुखय विषयों पर अपने विचार प्रकट करने थिे और वे नोट किए जाने थिे । डॉ आंबेडकर ने अपनी प्रभावशाली आवाज से अपने भाषण के शुरू में ही कहा कि सरिटिश भारत की जनसंखया के पांचवें भाग का , जो कि इंगलैणड या आयरलैणड और ्कॉटलैणड की जनसंखया से भी अधिक है , पर दृष्टिकोण प्र्तुत का रहे हैं । इन लोगों
की दशा पशुओं से भी गई . गुजरी है । इंगलैणड के समाचार पत्रों पर भी डॉ आंबेडकर के भाषण का बहुत प्रभाव ्ड़ा । भाषण का प्रभाव ततकालीन सरिटिश प्रधानमंत्री सम्टर रैमजे मैकडोनालड पर भी अचछा पड़ा । अब समाचार पत्रों और राजनीतिज्ों ने दलित वर्ग और डॉ आंबेडकर की ओर अधिक धयान देना शुरू कर दिया । डॉ आंबेडकर ने इस गोलमेज कॉनफेंस की अवधि के दौरान लनदन में रहते हुए मौके का भर्पूर सदुपयोग किया ।
बाबा साहब के कठोर परिश्रम का फल यह निकला कि सम्त सव्व को ज्ात हुआ कि भारत के अछूतों की दशा वा्तव में बहुत चिंतनीय है । कई अंग्ेज नेताओं का ह्रदय भी पिघल गया । डॉ आंबेडकर ने मांग की कि दलित वगषों को दपूसरे नागरिकों के समान नागरिक अधिकार दिए जाएं । कानपून में प्रतयेक प्रकार का भेदभाव व उच्नीच एकदम समापत किए जाएं । दलित वगवो को विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधि अपने लोगों द्ारा ्वयं चुनने की छूट हो और दलित वगषों को सरकारी नौकरियों में ्पूर्ण प्रतिनिधितव दिया जाए और कर्मचारियों की भतटी
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