रोशनी को इस तरह से परिवर्तित कीजिए कि गांव , देहातों का अंधेरा दपूर हो । यह मत भपूसलए कि अपने देश में दलितों और उपेसक्तों की दपूसनया बहुत बड़ी है । उसकी पीड़ा और व्यथा को भली-भांति जान लीजिए और अपने साहितय द्ारा उनके जीवन को उन्नत करने का प्रयास कीजिए । उसमें सच्ी मानवता निहित है ।’ बाबा साहब का सासहकतयक विचार मानवतावाद पर आधारित है ।
वर्तमान समय में दुनिया का अधिकांश सर्वश्रेष्ठ साहितय आजादी की चाह के लिए ही लिखा जाता है । अगर हम भारतीय संदर्भ में बात करे तो यहां के दलित विषयक साहितय में भी सदियों से प्रताड़ित , शोषित , दमित , पराजित दलितों की आवाज और आकांक्ा वय्त होती है । दलित विषयक साहितय में सामाजिक ऐतिहासिक , अनुभवों की गहरी अभिवयक्त और मानव जीवन की दशाओं के बारे में अपनी अलग अंतर्दृष्टि है इसमें विरोध एवं आरिोश का ्वर है इसमें रिाह्मणवादी वयवस्था से पीड़ित और प्रताड़ित वयक्त की आवाज सुनाई देती है , इसमें वयवस्था से आजादी या ्वतनत्रता के साथि समता और बंधुतव की भावनाओं की गहरी अभिवयक्त मिलती है । अतः वर्तमान में हिनदी दलित विषयक साहितयकार अपनी धारदार कलम से कविता , कहानी , उपनयास , नाटक , सं्मरण , इतिहास एवं आलोचना आदि विधाओं के माधयम से दलित एवं शोषित समाज को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान कर रहे है । वर्तमान में हिनदी दलित विषयक साहितय आनदोलन हिनदी साहितय की मुखयधारा बन चुका है । दलितों की प्रसतष््ा , सममान और अस्मता , शिक्ा , संघर्ष और संगठन , तार्किक सोच आदि सब मुद्े जो मनुष्यता की जरूरी शततें है जिसे दलित विषयक साहितय उठाता है । अतः दलित विषयक साहितयकार जहां अपनी ककृसतयों में समानता , भाईचारा और न्ल या रंग के आधार पर किसी भी विभेद को नकारता है , वहीं वह धर्म , धन , सत्ा , दर्शन और जनम के आधार पर किसी श्रेष्ठता और निककृष्टता की अवधारणा को भी अ्वीकार है । इस प्रकार वह केवल दलित के लिए ही नहीं
वरन् ्पूरे समाज के लिए इन विभेदों को मिटाना चाहता है । डॉ . आंबेडकर का मानना है कि दलितों को ्वयं अपना नेतृतव विकसित करना चाहिए । दलित विषयक साहितय का नेतृतव निश्चत रूप से दलितों के हाथि में होना चाहिए अन्यथा वह अपना असली ्वरूप खो बैठेगा । यही बात सासहकतयक संगठनों पर लागपू होती है । आज दलित विषयक पत्रिकाओं , दलित विषय पर आयोजित सममेलनों , गोष्ठियों , सभाओं ने भी सामाजिक चेतना के ्क् में साथि्णक कार्य कर परिवर्तन का मार्ग प्रश्त किया है । आज का दलित विषयक साहितयकार आधुनिकता बोध से अपने समाज , इतिहास और परम्रा का मपूलयांगन करके मानतावाद के लिए संघर्ष कर रहा है ।
आज दलित विषयक साहितय के मपूल में बोधिसतव डॉ . आंबेडकर का जीवन दर्शन है । आज भिन्न-भिन्न प्रदेशों के लोग अपनी-अपनी प्रादेशिक भाषाओं में डॉ . आंबेडकर के सभी आनदोलनों से प्रेरित होकर आतमकथिा , कविता , कहानी , उपनयास , नाटक , गीत आदि लिखने लगे है । बौद धर्म ्वीकार करने से ्पूव्ण ही बोधिसतव डॉ . आंबेडकर ने तीन सपूत्र – सशसक्त बनो , संगठित रहो , संघर्ष करो का नारा दिया । आज दलित साहितय की पृष्ठभपूसम में यह तीनों सपूत्र विधमान है । अतः मानव मुक्त की लड़ाई में डॉ . डॉ . आंबेडकर ने भारतीय समाज वयवस्था पर ही प्रश्न चिनह लगा दिया । उनहोंने भारतीय समाज वयवस्था को नकारा ही नहीं उसके विरुद संघर्ष भी किया । उनके इनहीं विचारों में दलित साहितय के बीज छिपे हैं । डॉ . आंबेडकर द्ारा सम्ासदत एवं प्रकाशित मपूकनायक , बसहष्ककृत भारत , समता प्रबुद भारत इतयासद पत्रिकाओं में दलित चेतना के ्वरों को प्रमुखता दी गयी । डॉ . आंबेडकर के इनहीं विचारों को दलित विषयक साहितय की आरकमभक अवस्था कही जा सकती है । इनहीं पत्रिकाओं द्ारा दलित विषयक साहितय के समबकनधत बहुत सा साहितय प्रकाशन में आया । इसलिए डॉ . आंबेडकर को दलित साहितय का प्रेरणा स्ोत कहा जाता है । �
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