eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 31

की पहचान होती थिी ्योंकि भारत की चातुर्वणय वयवस्था में प्राचीन प्रजातियों को शपूद्रों की श्रेणी में रखा जाता थिा । समाज में बसहष्ककृत शपूद्रों को ््श्ण करने से वयक्त अपवित्र हो जाता थिा । इस मानयता के आधार पर शपूद्रों को ‘ अस्ृ्य ’ कह कर पुकारा जाने लगा थिा जिसे आज भारतीय संविधान में ‘ अनुसपूसचत जाति ’ कह कर पुकारा जाता है ।
सासहकतयक दृष्टि से देखें तो हिनदी साहितय का अधययन भारतीच एवं पा्चातय साहितय- ससदानतों के आधार पर हुआ है । इस साहितय परम्रा में दलित दृष्टि को कोई स्थान प्रापत
नहीं हुआ है । यत्र-तत्र हिनदी साहितय में शपूद्रों की दीन-हीन दशा एवं छुआछूत का वर्णन अव्य हुआ है । परनतु आज पारम्रिक साहितय शा्त्र से अलग हटकर दलित सैदाकनतकी का ्वरूप विकसित हो रहा है । भारतीय साहितय में दलित सैदाकनतकी का प्रथिम ्वरूप बौद साहितय में ््ष्ट होता है । बौद साहितय में सामाजिक समरसता एवं दलित रिाकनत का दर्शन दृष्टिगोचर होता है । महातमा बुद सव्व के प्रथिम महापुरुष थिे जिनहोंने उदघोष किया थिा- ‘ अनत दीपो भव , अनत नाथिो भव ’ अथिा्णत अपना दीपक ्वयं बनो । यह वा्य दलित विषयक साहितय
का ससदानत बनकर सामने आया । पालि साहितय ऐसे 90 दलितों का उललेख मिलता है , जिनहोंने बौद धर्म में उच् स्थान प्रापत किया थिा । आगे चलकर बौद धर्म की शाखाओं से सिद्ों और नाथिों की परम्रा का जनम हुआ । हिनदी साहितय में परम्रा का जनम हुआ । हिनदी साहितय में 84 ससदों और 9 नाथि कवियों का उललेख मिलता है । इनमें दलित कवियों की संखया पर्यापत मात्रा में देखने को मिलती है । इन कवियों ने जन भाषा अपभ्रंश में सामाजिक समरसता के विचारों को अभिवयक्त दी । आगे चलकर महाराष्ट्र में नाथि ससदों की शाखा से वारकरी समप्रदाय उत्न्न
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