eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 28

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डॉ . आंबेडकर ने ज्ोतिबा फु ले को अपना गुरु क्यों माना ?

प्रेम शुक्ल

धुनिक भारत में शपूद्रों-अतिशपूद्रों , महिलाओं और किसानों के मुक्त-संघर्ष के पहले नायक जोतीराव फुले हैं , जिनहें जयोसतबा फुले नाम से भी जाना जाता है । डॉ . आंबेडकर ने गौतम बुद और कबीर के साथि जयोसतबा फुले को अपना तीसरा गुरु माना है । अपनी किताब ‘ शपूद्र कौन थिे ?’ महातमा फुले को समर्पित करते हुए बाबा साहब डॉ भीम राव आंबेडकर ने लिखा है कि ‘ जिनहोंने हिन्दू समाज की छोटी जातियों को उच् वरषों के प्रति उनकी ग़ुलामी की भावना के संबंध में जागृत किया और जिनहोंने सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना को विदेशी शासन से मुक्त पाने से भी अधिक महत्व्पूर्ण बताया , उस आधुनिक भारत के महान शपूद्र महातमा फुले की ्मृसत में सादर समर्पित ।’

फुले ने ‘ जाति भेद विवेकानुसार ’ ( 1865 ) में लिखा कि ‘ धर्मग्रंथों में वर्णित विककृत जाति-भेद ने हिंदुओं के दिमाग को सदियों से ग़ुलाम बना रखा है . उनहें इस पाश से मु्त करने के अलावा
कोई दपूसरा महत्व्पूर्ण काम नहीं हो सकता है । बाबा साहेब अपनी चर्चित ककृसत जाति वयवस्था का विनाश यानी ‘ एनिहिलेशन ऑफ का्ट ’ में ठीक इसी सिदांत को आगे बढ़ाते हुए जाति वयवस्था के स्ोत- धर्मग्रंथों को नष्ट करने का आह्ान करते हैं । जोतीराव फुले का जनम 11 अप्रैल 1827 को शपूद्र वर्ण की माली जाति में महाराष्ट्र में हुआ थिा । उनके नाम में फुले श्द माली जाति के होने की वजह से आया है । उनके पिता का नाम गोविनदराव और माता का नाम चिमणाबाई थिा । फुले जब एक वर्ष के थिे , तभी उनकी मां चिमणाबाई का निधन हो गया । उनका पालन-पोषण उनके पिता की मुंहबोली बुआ सगुणाबाई ने किया । सगुणाबाई ने उनहें आधुनिक चेतना से लैस किया ।
1818 में भीमा कोरेगांव युद के बाद पेशवा का शासन भले ही अंग्ेजों ने खतम कर दिया , पर सामाजिक जीवन पर उनकी जातिवादी विचारधारा का नियंत्रण कायम थिा । पुणे में शपूद्रों-अतिशपूद्रों और महिलाओं के लिए शिक्ा के दरवाजे बंद थिे । सबसे पहले ईसाई मिशनरियों ने शपूद्रों-अतिशपूद्रों और महिलाओं के लिए शिक्ा के दरवाजे खोले । सात वर्ष की उम्र में जोतीराव को ्ढ़ने के लिए स्कूल भेजा गया , लेकिन जलदी ही सामाजिक दबाव में जोतीराव के पिता गोविंदराव ने उनहें स्कूल से बाहर निकाल लिया । वे अपने पिता के साथि खेतों में काम करने लगे । उनकी जिज्ासा और प्रतिभा से उदपू ्ण-फारसी के जानकार गफफार बेग और ईसाई धर्मप्रचारक लिजीट साहब बहुत
प्रभावित थिे । उनहोंने गोविंदराव को सलाह दी कि वे जोतीराव को ्ढ़ने के लिए भेजें और फिर से जोतीराव स्कूल जाने लगे ।
इसी बीच 13 वर्ष की उम्र में ही 1840 में जोतीराव का विवाह 9 वषटीय सावित्रीबाई फुले से कर दिया गया । 1847 में जोतीराव ्कॉसटश मिशन के अंग्ेजी स्कूल में ्ढ़ने लगे । यहीं पर होनहार विद्ाथिटी जोतीराव का परिचय आधुनिक ज्ान-विज्ान से हुआ । ्कासटश मिशन स्कूल में दाखिले के बाद जोतीराव फुले के रग-रग में समता और ्वतंत्रता का विचार बसने लगा । उनके सामने एक नई दुनिया खुल गई । तर्क उनका सबसे बड़ा हसथियार बन गया । हर चीज को वे तर्क और नयाय की कसौटी पर कसने लगे । अपने आस-पास के समाज को एक नए नज़रिए से देखने लगे । इसी दौरान उनहें वयक्तगत जीवन में जातिगत अपमान का सामना करना पड़ा । इस घटना ने भी वर्ण-जाति वयवस्था और रिाह्मणवाद
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