eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 21

बाबा साहब ने रखा सच को सामने
लोगों के सममान , ्वासभमान एवं धर्माभिमान के साथि खिलवाड़ हुआ । जो हिन्दू कमजोर थिे एवं प्रचंड उत्ीड़न और अतयाचार के समक् घुटने टेक दिए थिे , वह धर्म बदलकर मु्लमान बन गए , किनतु कट्टर एवं धर्माभिमानी हिनदुओं के अ्वचछ कर्म ्वीकार किया , लेकिन हिन्दू धर्म को तयागने से इंकार कर दिया । इसका एक परिणाम यह भी निकला कि मुस्लम धर्म को सिरे से ठुकरा देने वाले हिनदुओं के सामाजिक , आसथि्णक , राजवंशीय एवं धार्मिक ्तर पर छिन्न- भिन्न कर दिया गया । अपनी धन-दौलत , मकान , किला , भपूसम इतयासद छीन लिए और उनहें गरीबी और विपरीत स्थितियों में में जीवन जीने के लिए बाधय किया गया । कालांतर में उनहें बल्पूव्णक अ्वचछ कायषों में लगा दिया गया , जिससे वह अपने ही हिन्दू समाज में पवित्रता की अवधारणा के अनुसार अस्ृ्य होते चले गए । उनहोंने सर पर मैला ढोना और मृत गाय के चर्म को उकेरना ्वीकार करके अस्ृ्य हिन्दू बनना तो ्वीकार कर लिया पर इ्लाम को ्पूरी तरह से ठुकरा दिया ।
हिन्दू समाज में वैदिक काल से लेकर मधयकाल के पहले तक स्थायी रूप से अस्ृ्यता
कभी नहीं थिी । डॉ आंबेडकर ने अछूत कौन और कैसे ? पृष्ठ-49 एवं 50 पर लिखा है कि रिाह्मण , क्सत्रय , वै्य और शपूद्र सभी दास होते थिे । दास प्रथिा अनुलोम रिम से थिा वैसे भी महाभारत का वह प्रकरण जिसमें भगवान श्री ककृष्र ्वयं असतसथियों के भोजन करने के बाद उनके जपू्े ्त्ल उठाये थिे । हिन्दू लोक जीवन में अस्थायी अस्ृ्यता का पाया जाना अतयंत साधारण बात है , किनतु स्थायी अस्ृ्यता तो अनतयज , चांडाल एवं शपूद्रों के साथि भी नहीं थिा । कोई वयक्त स्थायी रूप से अस्ृ्य नहीं हो सकता है । जब तक कोई वयक्त या समपूह किसी कार्य या परिस्थिति विशेष में होता है , तभी तक उसे अस्ृ्य माना जाता है । शौचादि के समय वयक्त के साथि अस्ृ्यता की स्थिति प्रायः प्रतिदिन होती है किनतु स्ान के बाद वह अस्ृ्यता मु्त हो जाता है । सपूतक काल में सम्पूर्ण परिवार ही दस दिनों तक अस्ृ्य रहता है । इसी प्रकार क्त्रयां अपने मासिक धर्म काल में अस्ृ्य मानय हैं , किनतु उसके उपरांत वह धर्मादि अनुष््ान इतयासद में सामानय रूप से भागीदारी करती हैं । हिन्दू संस्कृति में अपवित्रता एवं अस्ृ्यता दो अलग अलग विषय हैं । हिन्दू धर्म के दस ततवों का विवरण मनु्मृसत के 92 ्लोक में इस प्रकार है-धृति ( धैर्य ), क्मा , दम ( त््या ), अ्तेय ( चोरी न करना ) शौच ( पवित्रता ) इकनद्रय सनग्ह , ज्ान , विद्ा , सतय तथिा अरिोध ( अहिंसा ) यानी हिन्दू धर्म में शौचम अथिा्णत पवित्रता का स्थान अतयंत महत्वपूर्ण है । ऐसे में पवित्रता की मानयता अ्वचछ वृसत् ( मैला ढोना , सफाई कर्म , चर्म कर्म , गोमांसाहार ) इतयासद से बुरे ढंग से प्रभावित थिी । यही कारण है कि मधयकाल में विदेशी शासकों द्ारा धर्माभिमानी एवं कट्टर हिनदुओं से बल्पूव्णक अ्वचछ वृसत् करवाकर उनहें अस्ृ्यता की श्रेणी में धकेल दिया । इस प्रकार धर्म एवं संस्कृति रक्ा के नाम पर रिाह्मणों एवं जन-धन एवं सीमा सुरक्ा के नाम पर क्सत्रयों के साथि विदेशी शासकों द्ारा आरिोशवश अ्वचछ कार्य कराकर उनके हिन्दू ्वासभमान को तोड़ने का प्रयास किया गया । वा्तव में हिन्दू समाज ने अपवित्रता एवं अस्ृ्यता में
अंतर न करके एक चपूक की और इसका परिणाम आज बिखरा हुआ हिन्दू समाज सव्व के सामने है ।

बाबा साहब ने रखा सच को सामने

जाति सम्या के समाधान के लिए मधयकाल में बनी दलित , अस्ृ्य एवं अनुसपूसचत जातियों का एक और प्रमाण डॉ आंबेडकर ने अपनी पु्तक अछूत कौन और कैसे ( छठे खंड का तीसरा भाग , पृष्ठ-96 ) में बताया गया है कि ्मृसतयां ( हिन्दू ग्न्थ ) में दी गयी जातियां ( अस्ृ्य ) की अधिक से अधिक संखया केवल 12 है , लेकिन कौंसिल आदेश ( सरिटिश भारत सरकार की अनुसपूसचत जातियों के लिए घोषित प्रथिम सपूची ) में इनके नाम नहीं है । डॉ आंबेडकर ने ््ष्ट रूप से कहा कि ्मृसतयों की केवल बारह जातियां 1935 में जारी अनुसपूसचत जाति की सपूची में 429 कैसे हो गयी ? इसका सीधा समबनध मधयकाल के आरिमण , उत्ीड़न एवं विदेशी आरिांताओं के आरिोश का परिणाम है । इसी प्रकार हिनदुओं ने अपने परिवार , सगे-समबनधी , अपने आस-पास के लोगों को भयानक विदेशी आरिांताओं के अतयाचार और उत्ीड़न से बचाने के लिए संगठित होकर जातियों और उपजातियों में बटते चले गए । इस तरह मधयकाल में प्रतयेक जातियां एवं वगषों में अनगिनत जातियां , उपजातियां के साथि विविध मतमतानतर एवं डेरे इतयासद का निर्माण होता चला गया ।
जाति सम्या का समाधान करने के लिए आसथि्णक और राजनीतिक प्रयासों के स्थान पर सामाजिक समाधान की दिशा में समझने के लिए इन तथयों की बड़ी उपयोगिता है । यदि मधयकाल में हिनदुओं के वया्क एवं प्रचंड उत्ीड़न की घटना नहीं हुई होती तो कम से कम वर्तमान भारतीय मुस्लम वर्ग की उत्सत् तो नहीं ही होती । जिस प्रकार ्वासभमानी हिनदुओं को दबाकर कुचलकर मधयकाल में उनका दलन करके उनहें अ्वचछ वयवसाय में लगाकर एवं उनहें अस्ृ्य एवं दलित की पहचान दी गयी ,
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