eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 20

विदेशी शासकयों ने बोया जातिवाद का विष

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पु्तक भारत की सामाजिक और आसथि्णक संरचना और संस्कृति के मपूल ततव , पृष्ठ 247 पर उललेख किया है कि मुगलकाल में लाल चमड़ा काबुल के मार्ग से फरगाना , बुखारा और बदखशां से हिनदु्थिान में आता थिा । इस प्रकार चर्म के विविध प्रकार के उत्ाद अरब से हिनदु्थिान में आता थिा , किनतु एक और सनदभ्ण इस सनदभ्ण में दृष्टिगत है । चौबे और श्रीवा्तव द्ारा लिखित पु्तक मधयकालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति के पृष्ठ-502 पर लिखा है कि सलतनत काल में गुजरात कच्े चमड़े का महत्वपूर्ण निर्यातक केंद्र थिा । यदि डॉ आंबेडकर के निष्कर्ष को आधार मानकर अस्ृ्यता का समबनध गोवध , चर्मकर्म एवं गो-मांसाहार से लगाया जाये तो यह बात सपष्ट हो जाति है कि गोवध , गो मांसाहार एवं चर्मकर्म मधयकाल के विदेशी मुस्लम तुर्क एवं मुग़ल शासकों के शासन काल ( सलतनत काल ) से प्रारमभ हुआ । फिर यह ्वतः ््ष्ट हो जाता है कि हिनदुओं में अस्ृ्यता का आधार अ्वचछ पेशा थिा एवं अ्वचछ पेशे में एक कर्म चमड़े से समबंसधत भी थिा । हिनदु्थिान में मधय काल एवं उस काल का प्रभाव हिन्दू संस्कृति , हिन्दू धर्म एवं हिनदु्थिान पर ्या थिा ? यह एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है । इसी शोध के निष्कर्ष पर दलित विषयक सम्या का समाधान भी प्रापत हो सकता है ।

विदेशी शासकयों ने बोया जातिवाद का विष

समृसदशाली , वैभवशाली एवं गौरवशाली राष्ट्र हिनदु्थिान पर जब विदेशी आरिांताओं का आरिमण होता थिा तो उसका प्रतयुत्र तो सम्पूर्ण देश ही देता थिा , किनतु धर्म रक्ा के नाम पर रिाह्मण एवं देश के नाम पर क्सत्रय सचकनहत थिे । हिन्दू धर्म और संस्कृति के आलोक में ्पूरा हिन्दू समाज चार श्रेणी में विभ्त थिा , जिसे वर्ण वयवस्था भी कहा जाता थिा । रिाह्मण , क्सत्रय , वै्य एवं शपूद्र में विभ्त सम्पूर्ण हिन्दू समाज सवर्ण थिा । डॉ आंबेडकर ने ही अपनी पु्तक अछूत कौन और कैसे के पृष्ठ -100 पर लिखा है-सवर्ण हिन्दू और आवरण अछूत यानी जो
अछूत थिे , वे अवर्ण थिे । शपूद्र कभी भी अस्ृ्य नहीं थिा , इसलिए शपूद्र भी सवर्ण थिे । विदेशी आरिांताओं के आरिमण के समय धर्म एवं संस्कृति संरक्र का उत्रदायितव रिाह्मणों पर एवं देश किए सीमा एवं जान-धन किए रक्ा का उत्रदायितव क्सत्रयों पर थिा । वह ही प्रमुखता के साथि विदेशी आरिांताओं के साथि उनके आरिमण का उत्र भयानक प्रतिशोध के रूप में युद से देते थिे । परिणाम्वरूप उन विदेशी तुर्क , मुस्लम और मुग़ल आरिांता शासकों के आरिोश , अनयाय , अतयाचार एवं शत्रुता का प्रमुख शिकार यही धर्म और संस्कृति रक्क रिाह्मण एवं राष्ट्र रक्क क्सत्रयों को होना पड़ता थिा । वा्तव में विदेशी आरिांताओं के घृणा एवं आरिोश के कारण परा्त होने पर रिाह्मण एवं क्सत्रयों को खोज खोज कर उत्ीसड़त किया जाता थिा । उनके बहु-बेटियों की मर्यादा लुटाने एवं उनकों लाखों की संखया में दास बनाकर अरब की सड़कों पर कौड़ियों के दाम पर नीलम किया जाता थिा ।
के . एस . लाल ने अपनी पु्तक ट्वलाइ्स आफ दी सुलतान के पृष्ठ-65 पर लिखा है कि मुस्लम सामंतों के भय से धनी हिन्दू नगरों में निर्धनों की तरह रहते थिे । के . एस . लाल ने अपनी एक और पु्तक ्टडीज इन मैंडिवल सह्ट्री के पृष्ठ-90 एवं 91 पर लिखा है कि गयासुद्ीन की सोच थिी कि हिन्दू ग्ामीणों के पास में उतना ही धन रहे , जिससे वह दीन-हीं बनकर रहे । ई्वरी प्रसाद ने सह्ट्री ऑफ़ करोना टै्स के पृष्ठ-67 एवं 74 पर लिखा है कि मुहममद तुगलक ने ग्ामीणों पर इतने अतयाचार किये कि वह गांव छोड़कर भाग जाते थिे एवं तब उनकों ( हिनदुओं ) आखेट करके मार डाला जाता थिा । ई्वरी प्रसाद ने मधय युग का इतिहास के पृष्ठ 255 पर उललेख किया है कि परनतु हिंदुओं के प्रति उस समय भी अलाउद्ीन की ही नीति अनुसरण किया गया थिा । ताकि वे ( हिन्दू ) धनवान न हो सके और दीन-हीं बनकर जीवन यापन करने के लिए बाधय रहे । अब इन स्थापित इतिहासकारों ्वरा प्रमाणित और बेहद संवेदनशील तथयों के आलोक में मधयकाल का सव्लेषण होना चाहिए । मधयकाल की काली
रात्रि हिनदुओं के लिए बेहद दुखदायी थिी तो हमारे महान इतिहासकारों की दृस्ट में मधयकाल हिनदु्थिान के लिए ्वसर्णम काल कैसे हो सकता है ?
हिनदु्थिान के इतिहास का मपूल श्रोत या तो समय समय पर हिनदु्थिान के बारे में जानकारी के लिए आते विदेशी यात्री के सं्मरणों पर या मधयकाल के विदेशी तुर्क , मुस्लम या मुग़ल आरिांता शासकों की चाटुकारिता में लिखे गए प्रशस्त्त्र पर आधारित है । चाटुकारिता एवं प्रशस्तगान करने वाले चाटुकारों ने तो अपने अपने नवाबों एवं बादशाहों का इतिहास बढ़ा- चढ़ा कर लिखा ही थिा किंदु हिनदु्थिान के इतिहास लेखन के समबनध में विदेशी यात्रियों के सं्मरण पर ्पूरा भरोसा किया जा सकता है । ऐसे में हिन्दू प्रताड़ना एवं मधयकाल की सामाजिक , आसथि्णक एवं प्रशासनिक वयवस्था की कल्ना की जा सकती है । मधयकाल में हिन्दू उत्ीड़न पराकाष््ा पर थिा । उनमें भी प्रारंभिक यानी आरिमण काल में आरिोश एवं शत्रुता के कारण विदेशी आरिांताओं का प्रचंड उत्ीड़न , ्वासभमानी एवं धर्माभिमानी एवं योदा हिनदुओं को सहना पड़ा । युद में बंदी बनाये गए
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