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ठीक उसी प्रकार वर्तमान भारतीय मु्लमान भी ठीक इसी परिस्थिति में बल्पूव्णक धर्मानतरण करके बनाये गए । आज भी मुसलमानों की छठी एवं सातवीं पीढ़ी को प्रमाणित तथय हिन्दू ्पूव्णजों के रूप में प्रापत होता है । यह ्पूर्ण प्रमाणित और वा्तव में सर्वविदित है कि वर्तमान सम्पूर्ण दलित वर्ग प्राचीन काल के ्वासभमानी हिन्दू योदा एवं योदा जातियों के परिवर्तित वंशज है । लगभग सभी दलित जातियां अपने को क्सत्रय या राज्पूत या ऐसी अनय योदा प्रजातियों से अपनी उत्सत् का प्रमाण देती है । लेकिन इस सनदभ्ण में प्रमाणिकता एवं तथय ्पूर्ण शोध कायषों का अभाव है ।
सर्वप्रथिम दलित श्द 1931 की जनगणना में अंग्ेजों द्ारा सडप्रे्ड ्लास के रूप में प्रयोग हुआ । कालांतर में डॉ आंबेडकर ने इसे मराठी में दलित श्द के रूप में प्रयोग किया । अस्ृ्य या अ्वचछ वयवसाय आज भी भले ही समाज ने ्वीकार कर लिया हो किनतु सैकड़ों वर्ष पहले ्वासभमानी हिनदुओं को विदेशी शासकों के दुर्भावना और आरिोशवश इस श्रेणी में लाया गया । असीमित उत्ीड़न एवं अतयाचार सहकर भी हिन्दू बने रहे उन महान हिन्दू धर्माभिमानी को मधयकाल के ्वतंत्रतानिम्न जाति का सेनानी की मानयता मिलनी चाहिए , न कि उनहें निम्न जाति का कहकर उनके तयाग , बलिदान एवं हिन्दू धर्म रक्ा के महान योगदान को नकारने अथिवा उपेक्ा की आव्यकता है । आज दलित यानि जाति विषयक सम्या का समाधान वर्तमान में हो रहे प्रयासों से हटकर करने की आव्यकता है । दलित विषयक सम्या का समाधान वर्तमान में हो रहे प्रयासों से हटकर करने की आव्यकता है । लमबे काल से होे रहा इस सम्या का सामाधान अथिवा सामाजिक समरसता का प्रयास आज ्वतंत्रता के 62 वषवो बाद भी फलीभपूत नहीं हो सका । इन तकवो एवं तथयों के साथि अकनतम रूप से इस निष्कर्ष पर पहुचा जा सकता है कि वर्तमान दलित समाज कम से कम शपूद्र नहीं है । उसे शपूद्र कहकर अपमानित करने का प्रयास अब बंद होना चाहिए । प्राचीन काल मंब शपूद्रों के लिए जो नियम कानपून
बने थिे , वे दलितों पर न लागपू होते है न दलित समाज उसकी अपेक्ा करता है । सम्पूर्ण दलित समाज प्राचीन योदा प्रजाति का विशेष कर रिामहर एवं क्सत्रय वरटीय जातियों से है ।
मधयकाल के विदेशी आरिांताओं के परिणाम ्वरूप दलित वर्ग एवं उनकी जातियां तथिा उपजातियाॅ बनी । एक समय थिा जब हिन्दू समाज में मात्र चार वर्ण एवं एक सौ सत्रह गोत्र थिा , किनतु मधयकालीन संरिमणकाल के उपरानत हजारों जातियाॅ एवं उपजातियों की उत्सत् हुई । तथिाकसथित दलितों का कोई पृथिक वर्ण नहीं थिा , मधयकालीन दलन के उपरानत चारों वर्ण के लोग उनमें मुखयतः रिामहर एवं क्सत्रय दलित बनते चले गये । उनही दिनों हिनदु्थिान में पृथिक मुस्लम वर्ग का उदय हुआ । विदेशी मुस्लम , तुर्क एवं मुगल आरिांता शासकों ने ्वासभमानी , धर्माभिमानी एवं हिन्दू योदाओं को समाजिक और आसथि्णक रूप से नष्ट-भ्रष्ट करके उनका प्रचणड उत्ीड़न एवं दलन के उपरानत उनहे ‘ दलित ’ बनाकर उनको ‘ अ्वचछ ’ कार्यवृसत् में लगा दिया । अ्वचछ कार्यवृसत् से रिाह्मणों ने घृणावश तथिाकसथित दलितों का उपनयन बनद कर दिया । उपनयन बनद होने से दलितों का समाजिक अवनयन हुआ और वे स्थायी रूप से अस्ृ्य होकर अस्ृ्यता यु्त जातियों की श्रेणी में पहुंचे । तत््चात् एक नये हिन्दू वर्ग यानी दलित वर्ग का निर्माण हो गया । अस्ृ्यता के कारण जिस प्रकार अवर्ण यानी जो हिन्दू नहीं
थिे , उनही के समान किनतु हिन्दू होते हुए भी हिन्दू , दलित हिन्दू समाज में अलग-अलग होते चले गये । चपूसक तथिाकसथित हिन्दू दलितों का अवनयन हिन्दू ्वसभमान , धर्माभिमान , हिन्दू धर्म एवं हिनदु्थिान की रक्ा के लिए हुआ थिा , यही कारण है कि अस्ृ्य एवं हिन्दू समाज से अलग- अलग होने के उपरानत भी सम्पूर्ण दलित वर्ग हिन्दू बना ही रहा ।
हिन्दू समाज का इन सनष्कषवो पर अतयनत तीखी प्रसतसरिया हो सकती है । इसमें भी आ्चय्ण नहीं कि दलित समबकनधत विषयों के विशेषज्ों , दलित विषय समबकनधत साहितयकारों एवं ्वयं हिन्दू दलित वर्ग के चिनतकों का इन सनष्कषवो से प्रारकमभक सामयता की अपेक्ा भी नहीं है । वैसे इन प्र्तुत विचारों में एक मौलिकता है । यह मत सर्वमानय है या नहीं , यह उन पर निर्भर करता है जो इस विषय के विशेषज् है एवं उनमें दलित सम्या के समाधान की अभिरूचि है । दलितोत्थान के वा्तसवक ससदानत का आधार समाजिक है , नकि आसथि्णक । समाजिक ससदानत के आधार पर दलित सम्या के निदान का यह एक नपूतन ससदानत है । चिनतकों एवं विचारकों के लावा हिन्दू समाज की रोचक प्रसतसरिया की कल्ना किया जा सकता है । आज भी समाज कानपून से नियंत्रित होता है किनतु चलता तो समाजिक बल से ही है । सामाजिक बल को प्रभावित करने के लिए उसमें ह्तक्े् करना एवं हिन्दू दलित समाज के ्क् में सामाजिक बल को ह्तानतरित कराना , इस शोध का एक उद्े्य है । यदि हिन्दू समाज में हिन्दू दलितो के ्क् में सामाजिक बल को ह्तानतरण करनें में हम सफल हुए तो आने वाले समय में अमानवीय , तिस्कृत एवं भेदभावयु्त जीवन जीने वाले दलित समाज में एक ्वसर्णम प्रातः होगा । इसलिए हमें अथिा्णत दलित वर्ग को यह समझना ही होगा कि डॉ आंबेडकर ने हिन्दू धार्मिक ग्न्थ मनु्मृसत के उन चुने हुए अंशों को असनि के हवाले किया थिा , जिन अंशों को सरिटिश सत्ा ने अपने लाभ के लिए , हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए और भारत में मुस्लम सत्ा का भविष्य तय करने के उद्े्य से साजिश के तहत जोड़े गए थिे । �
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