eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 18

भारतीय सामाजिक व्यवस्ा और जाति भेद
वर्तमान दलित जातियां प्राचीनकालीन िदूद्र नहीं

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शासन की आयु लमबा एवं ्वतंत्रता के संघर्ष को रोकने हेतु अनेक प्रयास हुए । इस आधार पर हिन्दू समाज में वयापत कुरीतियां एवं दलितों के अपमान एवं तिर्कार इतयासद विषय को योजनाबद रूप में प्रचारित करने के लिए हिन्दू धर्म ग्रंथो में मिलावट की गयी । भेदभाव रहित हिन्दू समाज के प्रारंभिक ्वरूप की सामाजिक समरसता को समापत कर उसमें सामाजिक विषमता का प्रदर्शन निश्चत रूप से विदेशी शासकों के शासनादेश एवं कुचरिों का ही दुष्परिणाम है ।
हिन्दू समाज में मुस्लम आरिांताओं एवं शासकों के आने से पहले कभी धार्मिक , सामाजिक या आसथि्णक विषमता नहीं थिी । हिन्दू समाज पर किये गए भयंकर अतयाचार एवं उत्ीड़न का परिणाम सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारतवर्ष देश न केवल गरीब बकलक बदहाली का शिकार होकर सामाजिक , धार्मिक एवं आसथि्णक विषमता वाले समाज में परिवर्तित हो गया । प्रागैतिहासिक काल , वेदकाल , रामायण एवं महाभारत काल में वर्तमान विषमतरूपी समाज का कहीं भी उललेख या प्रसंग नहीं मिलता है । हिन्दू समाज में कटुता पैदा करने वाले कसथित नेतृतव करने वालों एवं राष्ट्र में ससरिय राष्ट्र विरोधी ताकतों एवं ततवों से सावधान रहने की आव्यकता है ।

भारतीय सामाजिक व्यवस्ा और जाति भेद

डॉ भीम राव रामजी आंबेडकर का कहना थिा कि हिनदु्थिान के दलितों की स्थिति प्राचीनकाल के शपूद्रों , अनतयजों एवं चाणडालों से बदतर है । कम से कम वो अछूत तो नहीं थिे । वा्तव में हिनदु्थिान में जाति के नाम पर दलितों के जिस वर्ग को समाज में पैदा किया , उस वर्ग की दयनीय स्थिति , तिरस्कृत जीवन एवं हिन्दू समाज का उनके प्रति पूर्वाग्रहयु्त , ्पूव्ण निर्धारित मानसिकता , डॉ आंबेडकर के चिंतन को सतयास्त करता है । गत 170 वषषों के अंतराल में जो भी प्रयास हुए , उनके प्रतिफल तो मिले किनतु परिणाम अपेक्ा के अनुरूप या तो कम
थिे या मिले ही नहीं । इसका कारण ््ष्ट थिा , वह यह कि हमारे जो भी प्रयास हुए वह आसथि्णक और राजनीतिक ्तर पर दलित समाज की भागीदारी दिलाने की दिशा में हुआ । वा्तव में दलित विषयक सम्या की जड़ आसथि्णक एवं राजनीतिक विषयों से आगे सामाजिक वयवस्था की जड़ में है । हम दलित वर्ग की दयनीय स्थिति एवं उनके साथि समाज में हो रहरे दुवय्णवहार आज परोक् दिखाई देते हैं । इस सनदभ्ण में समाजशाक्त्रयों ने जो देखा , उसी का समाधान निकलना प्रार्ध कर दिया । वा्तव में दलित विषयक सम्या की जड़ में जाने का प्रयास मात्र दिखावा थिा ।
जाति से जुडी सम्या के समाधान के लिए समाज में परिवर्तन आव्यक हैं , लेकिन यह परिवर्तन " ्या और कैसे हो ?" यह एक चिंतन का विषय है । इस समबनध में डॉ अमबेडकर जैसे विद्ान के लिए किये गए कायषों के आलोक में कदम बढ़ाना श्रेय्कर एवं फलदायी प्रतीत होता है । इसके दो लाभ है प्रथिम दलित समाज के साथि ्पूरे देश को भी डॉ आंबेडकर पर भरोसा है । इसलिए इसकी ्वीकारिता शंकारहित होगी । दपूसरा यह है कि वर्तमान समय में जाति सम्या के लिए डॉ आंबेडकर से जयादा शोधपरक वया्क अधययन किसी वयक्त का न होने के कारण इसका ्पूरा लाभ भी इस प्रयास की पृ््भपूसम में सिदांत एवं तर्क का पर्याय रहेगा । डॉ आंबेडकर की तीन पु्तक रिमशः शपूद्रों की खोज , अछूत कौन और कैसे ? एवं जाति भेद का उचछेद एवं डॉ अमबेडकर के भाषण और लेख इतयासद पु्तकों एवं संकलनों की सहायता से सामाजिक क्ेत्र में दलित विषयक सम्या के सामाजिक समाधान का सिदांत प्रतिपादित किया जा सकता है ।
डॉ आंबेडकर ने अपनी पु्तक शपूद्रों की खोज ( समयक प्रकाशन , ्लब रोड , पश्चम ्पूरी नयी दिलली ) के प्राक्कथन के दपूसरे एवं तीसरे पैराग्ाफ में दो महत्वपूर्ण विषय का उललेख किया है । प्रथिम -सम्टर शेरिंग की पु्तक ' हिन्दू ट्राइ्स एंड का्ट , खंड-1 , पृष्ठ-1 ' पर लिखे पैराग्ाफ को उद्ेसलत किया है । इसमें लिखा है
कि आज शपूद्र कहीं जाने वाली कुछ जनजातियां वा्तव में कुछ और न होकर रिाह्मण एवं क्सत्रय हैं । सद्तीय डॉ आंबेडकर ने वर्तमान दलितों को एवं प्राचीनकाल के शपूद्रों को अलग अलग माना है । उनहोंने ््ष्ट उललेख किया है कि यह विचित्र लगता है कि उनके ( शपूद्रों ) के वयवहार के लिए जो संहिता थिी , वह आज भी ससरिय बनी हुई है । और अब उसे निचले वर्ग ( दलित ) के सभी हिनदुओं पर लागपू किया जाता है , जिनका शपूद्रों से कोई लेनादेना नहीं है । आज तथिाकसथित शपूद्र ( दलित ) मपूल अथि्ण में शपूद्र न होते हुए भी इस संहिता के दायरे में आ गए । हिन्दू विधिकारों में यदि समुचित बोध होता और वह यह समझ पाते कि मपूल शपूद्र आज के निम्नवगटीय ( दलित ) समझे जाने वर्ग से भिन्न थिे तो दस शता्दी से जारी इस नरसंहार को टाला जा सकता थिा ।

वर्तमान दलित जातियां प्राचीनकालीन िदूद्र नहीं

डॉ आंबेडकर ने ््ष्ट कर दिया कि वर्तमान दलित संवगटीय जातियां शपूद्र नहीं हैं , इसलिए यह प्रश्न उठना ्वाभाविक है कि वर्तमान दलित कौन ? डॉ आंबेडकर ने शोधपरक अधययन के साथि अथिक परिश्रम से शपूद्रों की खोज तो ्पूर्ण कर ली , लेकिन वर्तमान जाति विषयक सम्या का समाधान तो दलितों की खोज या दलित कौन नामक विषय के अनावरण ही में थिा और
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